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कुरआन की आयत 2:115 की पूरी व्याख्या

 यहाँ कुरआन की आयत 2:115 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:

﴿وَلِلَّهِ ٱلْمَشْرِقُ وَٱلْمَغْرِبُ ۚ فَأَيْنَمَا تُوَلُّوا۟ فَثَمَّ وَجْهُ ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ وَٰسِعٌ عَلِيمٌ﴾

हिंदी अनुवाद:

"और पूरब और पश्चिम सब अल्लाह ही का है। तो तुम जिधर भी मुख करो, उधर ही अल्लाह का मुख है। निश्चय ही अल्लाह बड़ा विस्तार वाला, जानने वाला है।"


शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَلِلَّهِ : और अल्लाह के लिए है / अल्लाह की है

  • ٱلْمَشْرِقُ : पूरब (सूर्योदय का स्थान)

  • وَٱلْمَغْرِبُ : और पश्चिम (सूर्यास्त का स्थान)

  • فَأَيْنَمَا : तो जहाँ कहीं भी

  • تُوَلُّوا۟ : तुम मुड़ो (रुख़ करो)

  • فَثَمَّ : तो वहाँ है

  • وَجْهُ ٱللَّهِ : अल्लाह का मुख / अल्लाह की सत्ता

  • إِنَّ ٱللَّهَ : निश्चित रूप से अल्लाह

  • وَٰسِعٌ : विस्तार वाला / सर्वव्यापी

  • عَلِيمٌ : जानने वाला / सर्वज्ञ


पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):

यह आयत एक बहुत ही गहरा और सांत्वनापूर्ण संदेश देती है, और इसके उतरने के कई संदर्भ हो सकते हैं:

ऐतिहासिक संदर्भ:

  1. क़िबला बदलने के बाद: जब क़िबला बैतुल मुक़द्दस (यरूशलम) से काबा (मक्का) की ओर बदला गया, तो कुछ मुसलमानों के मन में यह सवाल उठा कि पहले की पढ़ी गई नमाज़ें क्या ख़राब हो गईं? इस आयत ने उन्हें आश्वस्त किया कि अल्लाह का वास्तविक क़िबला तो "हर दिशा" है जहाँ इबादत का इरादा अल्लाह के लिए हो।

  2. यात्रा या मजबूरी की स्थिति: रात की नमाज़ में या सफ़र व मजबूरी की हालत में जब क़िबला का सही पता न हो, तो इंसान जिस भी दिशा में नमाज़ पढ़े, अल्लाह उसे क़बूल करता है। यह आयत उसी आसानी और रहमत को बताती है।

आयत का गहन अर्थ:

  1. "व लिल्लाहिल मशरिकु वल मग़रिब" (पूरब और पश्चिम अल्लाह ही का है): यह बताता है कि दिशाएँ अल्लाह की बनाई हुई और उसी के अधीन हैं। वह इन सबसे परे और इन सबका मालिक है। पूरब-पश्चिम का उल्लेख संपूर्ण दिशाओं को दर्शाता है, यानी हर दिशा अल्लाह की है।

  2. "फ़ैनमा तवल्लू फ़सम्मा वजहुल्लाह" (तो तुम जिधर भी मुख करो, उधर ही अल्लाह का मुख है): यह इस आयत का मुख्य संदेश है। यहाँ "वज्हुल्लाह" (अल्लाह का मुख) से मतलब यह नहीं है कि अल्लाह शरीर रखता है और एक दिशा में है। बल्कि इसका अर्थ है:

    • अल्लाह की सत्ता, उसकी दृष्टि और उसकी रहमत हर दिशा में व्याप्त है।

    • इबादत का सार इबादत करने वाले के इरादे और एकाग्रता में है, न कि सिर्फ़ एक भौतिक दिशा में मुख करने में।

    • क़िबला (काबा) एक केन्द्र बिंदु (Focal Point) है जो मुसलमानों की एकता और अनुशासन के लिए है, लेकिन अल्लाह की महानता उस एक बिंदु तक सीमित नहीं है।

  3. "इन्नल्लाहा वासिउन अलीम" (निश्चय ही अल्लाह बड़ा विस्तार वाला, जानने वाला है): आयत का अंत अल्लाह की दो सर्वोच्च विशेषताओं के साथ होता है:

    • वासिअ (विस्तार वाला): उसकी रहमत, उसका ज्ञान और उसकी सत्ता असीम है। वह किसी एक स्थान या दिशा में सीमित नहीं है।

    • अलीम (जानने वाला): वह उसके बंदे के इरादे, परिस्थितियों और कठिनाइयों को पूरी तरह जानता है। इसलिए, वह हर ईमानदार इबादत को, चाहे वह किसी भी दिशा में हो, क़बूल करता है।


शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • अल्लाह की सर्वव्यापकता: अल्लाह किसी एक स्थान या दिशा तक सीमित नहीं है। वह हर जगह मौजूद है और हर चीज़ को जानता है।

  • इरादे की शुद्धता का महत्व: इस्लाम में रूप और शरीयत के साथ-साथ इरादे और भावना (नीयत) को सर्वोच्च महत्व दिया गया है। अगर इरादा शुद्ध है, तो अल्लाह मजबूरी में की गई छोटी-मोटी त्रुटियों को माफ़ कर देता है।

  • आसानी और रहमत का धर्म: इस्लाम लोगों पर कोई तंगी या कठोरता नहीं डालता। मजबूरी और अज्ञानता की स्थितियों में यह आसानी प्रदान करता है।

  • एकता में केन्द्रित, सत्ता में विस्तृत: क़िबला मुसलमानों को एक केन्द्र बिंदु पर एकत्रित करता है, लेकिन यह आयत यह समझाती है कि अल्लाह की सत्ता इस एकता के केन्द्र से कहीं अधिक विशाल है।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के लिए एक दिव्य आश्वासन थी, खासकर क़िबला बदलने और विभिन्न चुनौतियों (सफर, युद्ध) का सामना करते समय। इसने उनके विश्वास को मजबूत किया कि अल्लाह हर स्थिति में उनके साथ है।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

    • वैश्विक मुस्लिम समुदाय: आज मुसलमान दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं। उत्तरी ध्रुव के पास या घने जंगलों में रहने वाले मुसलमानों के लिए क़िबला का सही पता लगाना मुश्किल हो सकता है। यह आयत उन्हें आश्वस्त करती है कि उनकी इबादत उनके शुद्ध इरादे के कारण क़बूल होगी।

    • आध्यात्मिक संदेश: यह आयत एक गहरा आध्यात्मिक संदेश देती है: ईश्वर हर जगह है। आप चाहे कहीं भी हों, आप सीधे उससे जुड़ सकते हैं। आपको उस तक पहुँचने के लिए किसी मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं है।

    • सहिष्णुता का पाठ: यह आयत संकीर्णतावादी सोच को दूर करती है। यह सिखाती है कि ईश्वर की कृपा और दृष्टि सभी दिशाओं में है, जो एक सार्वभौमिक और समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

  • भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: जैसे-जैसे तकनीक विकसित होगी और मनुष्य नए ग्रहों और आवासों की खोज करेगा, क़िबला निर्धारित करना और भी जटिल हो सकता है। यह आयत भविष्य की सभी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन के रूप में काम करेगी, यह सिखाते हुए कि ईश्वर की सत्ता पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है और वह हर उस इबादत को जानता और स्वीकार करता है जो ईमान और शुद्ध इरादे से की जाती है। यह इस्लाम की सार्वभौमिकता और लचीलेपन का एक शाश्वत प्रमाण है।