यहाँ कुरआन की आयत 2:116 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:
﴿وَقَالُوا۟ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدًا ۗ سُبْحَـٰنَهُۥ ۖ بَل لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ كُلٌّ لَّهُۥ قَـٰنِتُونَ﴾
हिंदी अनुवाद:
"और उन्होंने (यहूदियों, ईसाइयों और मूर्तिपूजकों ने) कहा कि अल्लाह ने (कोई) संतान बना ली है। वह (इन बातों से) पवित्र है। बल्कि आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। सब उसके आज्ञाकारी हैं।"
शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَقَالُوا۟ : और उन्होंने कहा
ٱتَّخَذَ : बना लिया / ठहरा लिया
ٱللَّهُ : अल्लाह ने
وَلَدًا : एक संतान / बेटा
سُبْحَـٰنَهُۥ : वह पवित्र है / सब तरह की बुराई से मुक्त है
بَل : बल्कि / इसके विपरीत
لَّهُۥ : उसी का है
مَا : जो कुछ
فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ : आकाशों में
وَٱلْأَرْضِ : और धरती में
كُلٌّ : सब / प्रत्येक
لَّهُۥ : उसके लिए / उसके वश में
قَـٰنِتُونَ : आज्ञाकारी / फरमाबरदार
पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):
यह आयत उन झूठे और निंदनीय विश्वासों का खंडन करती है जो अल्लाह के बारे में अलग-अलग समुदाय रखते थे।
ऐतिहासिक संदर्भ:
अरब के मूर्तिपूजक मानते थे कि फरिश्ते अल्लाह की बेटियाँ हैं।
यहूदी कहते थे कि उज़ैर (एज्रा) अल्लाह का बेटा है।
ईसाई यह मानते थे कि हज़रत ईसा (ईसा मसीह) अल्लाह के बेटे हैं।
इन सभी विश्वासों का सार एक ही था - अल्लाह के लिए संतान का होना। यह आयत इसी केंद्रीय भ्रांति को दूर करती है।
आयत का खंडन तीन चरणों में:
पवित्रता का एलान (सुब्हानहु): सबसे पहले अल्लाह अपनी पवित्रता का एलान करता है - "सुब्हानहु"। यह शब्द अरबी में किसी भी बुराई, कमी, अशुद्धता या अयोग्यता से पवित्र और मुक्त होने को दर्शाता है। संतान होने का विचार ही इस बात पर आधारित है कि अल्लाह को किसी की आवश्यकता है या वह मनुष्यों जैसा है, जबकि "सुब्हानहु" कहकर अल्लाय इन सभी भ्रांतियों का एक झटके में खंडन कर देता है।
सच्चाई का बयान (बल लहू मा फिस्समावाति वल-अर्द): फिर अल्लाह सच्चाई बताता है - "बल्कि आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है।" यह बताने का तर्क है:
संतान की ज़रूरत तब होती है जब किसी को वारिस या सहायक की आवश्यकता हो। लेकिन अल्लाह तो पूरे ब्रह्मांण का मालिक है। उसे किसी वारिस की क्या आवश्यकता?
संतान मनुष्यों की शारीरिक और भावनात्मक कमज़ोरी का प्रतीक है। अल्लाह सभी कमियों से पाक है।
जो चीज़ पहले से ही आपकी संपत्ति और आपके अधीन है, उसे आप अपनी संतान कैसे कह सकते हैं?
सृष्टि की वास्तविक स्थिति (कुल्लुन लहू कानितून): आयत का अंत एक बहुत ही महत्वपूर्ण सत्य के साथ होता है - "सब उसके आज्ञाकारी हैं।"
"कानितून" का अर्थ है पूर्णतः आज्ञाकारी, विनम्र और अधीन।
यह बताता है कि पूरी सृष्टि, चाहे फरिश्ते हों, इंसान हों, जानवर हों या नदी-पहाड़, सभी अल्लाह के नियमों के आगे समर्पित हैं।
इसलिए, किसी एक प्राणी (जैसे फरिश्ता, ईसा या उज़ैर) को "संतान" कहकर विशेष दर्जा देना एक गलत और शिर्क (अल्लाह के साथ साझी ठहराना) वाली बात है। सभी तो बराबर रूप से उसके बंदे और आज्ञाकारी हैं।
शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
अल्लाह की पवित्रता (तंज़ीह): अल्लाह की ज़ात (सत्ता) हर उस बात से पाक है जो उसकी महानता के अनुरूप नहीं है, जैसे शरीर रखना, संतान होना, जगह या समय में बंधा होना आदि।
तौहीद (एकेश्वरवाद) की रक्षा: इस आयत का मुख्य उद्देश्य तौहीद की रक्षा करना है। अल्लाह के लिए संतान ठहराना शिर्क की सबसे खतरनाक शक्लों में से एक है।
ईश्वर की सही अवधारणा: ईश्वर सृष्टि का पालनहार और स्वामी है, न कि कोई पिता या पुत्र जैसे मानवीय रिश्तों में बंधा हुआ।
विनम्रता का पाठ: सारी सृष्टि अल्लाह के आगे विनम्र है, तो फिर इंसान को घमंड क्यों हो? हमें भी उसकी इबादत और आज्ञापालन में विनम्र रहना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत 7वीं सदी के अरब के मूर्तिपूजकों, यहूदियों और ईसाइयों के उन विश्वासों का सीधा खंडन थी जो अल्लाह के लिए संतान का दावा करते थे। यह इस्लाम के केंद्रीय सिद्धांत - तौहीद - को स्थापित करती है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
ईसाई मिशनरी गतिविधियाँ: ईसाई मिशनरी अक्सर यह प्रचार करते हैं कि ईसा अल्लाह के बेटे हैं। यह आयत इस दावे का स्पष्ट और दृढ़ खंडन करती है।
नास्तिकों के तर्क: कुछ नास्तिक यह तर्क देते हैं कि "ईश्वर" की अवधारणा मनुष्यों ने अपने ही समान बनाई है (Anthropomorphism)। यह आयत इसका जवाब देती है कि इस्लाम का ईश्वर मनुष्यों की कल्पना से परे और हर मानवीय कमी से पवित्र है।
आध्यात्मिक अवधारणा: आज भी कई लोग संतों, पैगंबरों या अवतारों को ईश्वर का रूप या संतान मानते हैं। यह आयत उन सभी के लिए एक सचेत करने वाला संदेश है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: जब तक दुनिया में विभिन्न धर्म और विश्वास रहेंगे, तब तक ईश्वर के स्वरूप को लेकर भ्रांतियाँ बनी रहेंगी। यह आयत क़यामत तक आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए अल्लाह की पवित्रता और एकता के सिद्धांत की रक्षा करती रहेगी। यह इस्लाम के तौहीद के सिद्धांत को एक स्थायी और अटल आधार प्रदान करती है, जो हर युग में मानव निर्मित ईश्वर-अवधारणाओं के खिलाफ एक मजबूत किले की तरह खड़ा रहेगा।