यहाँ कुरआन की आयत 2:121 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:
﴿ٱلَّذِينَ ءَاتَيْنَـٰهُمُ ٱلْكِتَـٰبَ يَتْلُونَهُۥ حَقَّ تِلَاوَتِهِۦٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِۦ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِهِۦ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَـٰسِرُونَ﴾
हिंदी अनुवाद:
"जिन लोगों को हमने किताब (तौरात, इंजील) दी है, वे उसे उसके योग्य (हक़) पढ़ते हैं, वे ही उस (कुरआन) पर ईमान लाते हैं। और जो कोई उसका इनकार करे, तो वही लोग घाटे में हैं।"
शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
ٱلَّذِينَ : जिन लोगों ने
ءَاتَيْنَـٰهُمُ : हमने उन्हें दिया
ٱلْكِتَـٰبَ : किताब (तौरात, इंजील)
يَتْلُونَهُۥ : वे उसे पढ़ते हैं
حَقَّ : योग्य / हक़ / वास्तविक
تِلَاوَتِهِۦٓ : उसके पढ़ने का
أُو۟لَـٰٓئِكَ : वे ही लोग
يُؤْمِنُونَ : ईमान लाते हैं
بِهِۦ : उस पर (कुरआन पर)
وَمَن : और जो कोई
يَكْفُرْ : इनकार करे
بِهِۦ : उसका
فَأُو۟لَـٰٓئِكَ : तो वे ही लोग
هُمُ : वे ही
ٱلْخَـٰسِرُونَ : घाटे में रहने वाले
पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):
यह आयत पिछली आयतों का तार्किक परिणाम है। जहाँ पहले यहूदियों और ईसाइयों के इनकार का ज़िक्र था, वहीं इस आयत में अल्लाह उनके बीच के एक विशेष वर्ग की पहचान कराता है जो सच्चे अर्थों में "अहले-किताब" हैं और जो कुरआन पर ईमान लाएँगे।
आयत के मुख्य बिंदु:
सच्चे अहले-किताब की पहचान (अल्लज़ीना आतैनाहुमुल किताब):
आयत उन लोगों का वर्णन करती है जिन्हें अल्लाह ने पहले की किताबें (तौरात, इंजील) दी थीं।
लेकिन यहाँ "अहले-किताब" से मतलब हर यहूदी-ईसाई नहीं है, बल्कि एक खास समूह है।
हक़-ए-तिलावत क्या है? (यतलूनहु हक्का तिलावतिही):
यह इस आयत का सबसे महत्वपूर्ण वाक्यांश है। "हक़-ए-तिलावत" के कई गहरे अर्थ हैं:
सही ढंग से पढ़ना: किताब को उसकी मूल भाषा में सही उच्चारण के साथ पढ़ना।
समझना और मनन करना: सिर्फ़ ज़बानी पढ़ाई नहीं, बल्कि उसके अर्थों पर गहराई से सोच-विचार करना।
आचरण में उतारना: किताब की शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करना।
उसके अनुसार फैसला करना: अपने जीवन के मामलों में किताब को ही फैसले का आधार बनाना।
भविष्यवाणियों को पहचानना: अपनी किताब में आखिरी पैगंबर (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की भविष्यवाणियों को पहचानना और उन पर विश्वास करना।
सच्चे ईमान का परिणाम (उलाइका यू'मिनूना बिही):
अल्लाह फ़रमाता है कि "वे ही उस (कुरआन) पर ईमान लाते हैं।"
जो व्यक्ति अपनी पुरानी किताब का "हक़-ए-तिलावत" करेगा, वह कुरआन में वही सत्य देखेगा जो उसकी अपनी किताब में मौजूद है। इसलिए, वह बिना किसी हिचकिचाहट के कुरआन और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान ले आएगा।
ऐतिहासिक उदाहरण: हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो एक यहूदी विद्वान थे और उन्होंने तौरात में पैगंबर के आने की भविष्यवाणी को पहचान कर इस्लाम क़बूल कर लिया।
इनकार करने वालों की हानि (व मन यकफुर बिही फा उलाइका हुमुल खासिरून):
आयत का अंत एक स्पष्ट चेतावनी के साथ होता है कि जो कोई कुरआन का इनकार करेगा, वही वास्तविक घाटे में रहने वाला है।
यह घाटा दुनिया और आख़िरत दोनों का है। दुनिया में वह हिदायत से वंचित रह जाता है और आख़िरत में जहन्नम की सजा भुगतता है।
शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
कुरआन का सही तिलावत: इस आयत से मुसलमानों के लिए सबक है कि उन्हें भी कुरआन का "हक़-ए-तिलावत" करना चाहिए - उसे सही तरीके से पढ़ना, समझना और अपनी ज़िंदगी में उतारना।
ज्ञान और अमल का रिश्ता: सिर्फ़ किताब होने या उसे पढ़ने भर से कुछ नहीं होता, ज़रूरी है उस पर अमल करना।
सत्य का मापदंड: सत्य का मापदंड किसी की जाति या समुदाय नहीं, बल्कि उसकी सत्यनिष्ठा और ज्ञान के प्रति ईमानदारी है।
ईमान की कसौटी: असली ईमान वह है जो सत्य को पहचान कर उसे स्वीकार कर ले, भले ही वह आपकी पुरानी मान्यताओं के विपरीत क्यों न हो।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत उन यहूदी और ईसाई विद्वानों के लिए एक मापदंड थी जो पैगंबर के समय में मौजूद थे। इसने सच्चे और झूठे अहले-किताब के बीच अंतर स्पष्ट किया। इसने उन लोगों के लिए मार्गदर्शन का काम किया जो सचमुच हक़ तलाश कर रहे थे।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:
मुसलमानों के लिए चेतावनी: आज बहुत से मुसलमान कुरआन को सिर्फ़ तिलावत (पढ़ने) की चीज़ समझते हैं, उसके मतलब और अमल को भूल गए हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि "हक़-ए-तिलावत" की ज़रूरत है।
अहले-किताब के लिए निमंत्रण: आज भी ईसाई और यहूदी विद्वान हैं जो अपनी किताबों का गहन अध्ययन करते हैं। यह आयत उनके लिए एक निमंत्रण है कि वे कुरआन का अध्ययन करें और उसमें छिपे सत्य को पहचानें।
वैचारिक खुलापन: यह आयत सिखाती है कि अगर कोई दूसरी किताब या विचारधारा सत्य का प्रमाण देती है, तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। यह संकीर्णतावादी सोच के खिलाफ है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: जब तक किताबें और ज्ञान रहेगा, यह आयत प्रासंगिक रहेगी। यह भविष्य की हर पीढ़ी को सिखाती रहेगी कि:
ज्ञान का उद्देश्य सिर्फ़ जानना नहीं, बल्कि उस पर अमल करना और सत्य को स्वीकार करना है।
सच्चा विद्वान वह है जो सत्य के सामने झुक जाता है।
कुरआन का इनकार करना मानव जाति के लिए सबसे बड़ा नुकसान है।
यह आयत हमेशा सत्य के seeker के लिए एक कसौटी और मार्गदर्शक बनी रहेगी।