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कुरआन की आयत 2:122 की पूरी व्याख्या

 यहाँ कुरआन की आयत 2:122 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:

﴿يَـٰبَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَتِىَ ٱلَّتِىٓ أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّى فَضَّلْتُكُمْ عَلَى ٱلْعَـٰلَمِينَ﴾

हिंदी अनुवाद:

"हे बनी इसराईल! मेरे उस अहसान को याद करो जो मैंने तुम पर किया और (यह भी याद करो) कि मैंने तुम्हें सारे जहान (अपने समय के लोगों) पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) दी थी।"


शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • يَـٰبَنِىٓ : हे संतानों

  • إِسْرَٰٓءِيلَ : इसराईल (हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम) की

  • ٱذْकُرُوا۟ : याद करो / स्मरण करो

  • نِعْمَتِىَ : मेरे अहसान (उपकार) को

  • ٱلَّتِىٓ : जिसे

  • أَنْعَمْتُ : मैंने अनुग्रह किया / अहसान किया

  • عَلَيْكُمْ : तुम पर

  • وَأَنِّى : और (याद करो) कि मैंने

  • فَضَّلْتُكُمْ : तुम्हें फ़ज़ीलत दी / श्रेष्ठ बनाया

  • عَلَى : पर

  • ٱلْعَـٰلَمِينَ : सारे जहान वालों (अपने युग के लोगों) पर


पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):

यह आयत बनी इसराईल (यहूदियों) को संबोधित करती है और उन्हें अल्लाह के पिछले अनगिनत अहसानों की याद दिलाती है। यह एक तरह की तज़क्किर (याद दिलाना) और इनज़ार (चेतावनी) दोनों है।

आयत के मुख्य बिंदु:

  1. संबोधन और याद दिलाना (या बनी इसराईल उज़कुरू निमती):

    • अल्लाह उन्हें "बनी इसराईल" कहकर संबोधित करता है, जो उनके पूर्वज हज़रत याकूब (अलैहिस्सलाम) का नाम है। यह उनकी गौरवशाली विरासत की याद दिलाता है।

    • "मेरे उस अहसान को याद करो" - यहाँ "अहसान" बहुवचन में है, जो अल्लाह के अनगिनत उपकारों की ओर इशारा करता है।

  2. अहसानों की फेहरिस्त (जो पिछली आयतों में बयान हुई):

    • फिरऔन के शासन से मुक्ति दिलाना।

    • दरिया-ए-नील को फाड़कर रास्ता देना।

    • मन्न और सलवा (दिव्य भोजन) उतारना।

    • पानी का चमत्कार दिखाना।

    • कोह-ए-तूर पर तौरात का अवतरण।

    • उन्हें अनेक पैगंबर देना।

  3. श्रेष्ठता का रहस्य (व अन्नी फज़्ज़लतुकुम अलल आलमीन):

    • "और (याद करो) कि मैंने तुम्हें सारे जहान पर फ़ज़ीलत दी थी।"

    • यहाँ "आलमीन" से मतलब उस ज़माने की दुनिया के लोगों से है।

    • यह श्रेष्ठता अनुवांशिक (जाति या नस्ल के आधार पर) नहीं थी, बल्कि इसके कारण थे:

      • दिव्य ज्ञान: उन पर अल्लाह की किताब (तौरात) का अवतरण।

      • मार्गदर्शन: उन्हें सीधा रास्ता दिखाया गया।

      • पैगंबरों की एक लंबी श्रृंखला: उनके बीच बार-बार पैगंबर भेजे गए।

मकसद: यह याद दिलाने का मकसद यह है कि जब अल्लाह ने तुम्हें इतनी श्रेष्ठता और इतने अहसान दिए, तो तुम्हारा फर्ज़ बनता था कि तुम कृतज्ञ बनो और अल्लाह के आखिरी पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाओ। लेकिन तुमने अहसानफरामोशी और अहंकार दिखाया।


शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • अहसानफरामोशी (कृतघ्नता) न करें: अल्लाह के अहसानों को भूल जाना सबसे बड़ी नाशुक्री है।

  • श्रेष्ठता का आधार: अल्लाह के नज़दीक श्रेष्ठता का आधार जाति या नस्ल नहीं, बल्कि तक्वा (ईश्वर-भय) और अल्लाह के अहसानों के प्रति कृतज्ञता है।

  • विरासत पर घमंड न करें: बाप-दादा की धार्मिक विरासत पर घमंड करना और उसी पर टिके रह जाना गुमराही का कारण बन सकता है।

  • अतीत के गौरव को वर्तमान का मार्गदर्शक बनाएँ: अतीत के गौरव का सही उपयोग यह है कि उसे याद करके वर्तमान में अल्लाह के आदेशों का पालन किया जाए।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत मदीना के यहूदियों के लिए एक सीधा संदेश थी, जो अपने अतीत के गौरव पर घमंड करते थे लेकिन वर्तमान में अल्लाह के आखिरी पैगंबर को स्वीकार नहीं कर रहे थे। यह उनके अहंकार को तोड़ने का प्रयास था।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • यहूदी समुदाय के लिए: आज का यहूदी समुदाय भी अपने आप को "चुना हुआ समुदाय" मानता है। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि यह श्रेष्ठता उनकी जाति के कारण नहीं, बल्कि अल्लाह के अहसान के कारण थी, और उसके लिए शर्त अल्लाह के आखिरी पैगंबर पर ईमान लाना था।

    • मुसलमानों के लिए चेतावनी: आज कुछ मुसलमान भी यह सोचने लगते हैं कि सिर्फ़ "मुसलमान" होने भर से वे श्रेष्ठ हैं। यह आयत सिखाती है कि श्रेष्ठता तब तक नहीं रहती जब तक अल्लाह के अहसानों के प्रति कृतज्ञ न रहा जाए और उसके आदेशों का पालन न किया जाए। मुसलमानों ने भी अल्लाह का बहुत बड़ा अहसान (कुरआन और पैगंबर) पाया है।

    • सामान्य मानवीय सबक: हर इंसान के जीवन में अल्लाह के अहसान हैं। इस आयत की सीख है कि हमें अहसानफरामोश नहीं बनना चाहिए।

  • भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत हमेशा एक सबक के तौर पर कायम रहेगी कि:

    • ईश्वर की दी हुई श्रेष्ठता और नेमतों पर घमंड इंसान को बर्बाद कर देता है।

    • असली श्रेष्ठता वह है जो ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और आज्ञापालन से हासिल हो।

    • कोई भी समुदाय अपनी विरासत के भरोसे हमेशा के लिए श्रेष्ठ नहीं रह सकता।
      यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को नश्वर श्रेष्ठता के घमंड से बचने और सच्ची कृतज्ञता की ओर बुलाती रहेगी।