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कुरआन की आयत 2:123 की पूरी व्याख्या

 यहाँ कुरआन की आयत 2:123 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:

﴿وَٱتَّقُوا۟ يَوْمًا لَّا تَجْزِى نَفْسٌ عَن نَّفْسٍ شَيْـًٔا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَـٰعَةٌ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ﴾

हिंदी अनुवाद:

"और उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कुछ भी बदला नहीं दे सकता, और न उससे कोई फिरौती (मुआवज़ा) स्वीकार की जाएगी, और न कोई सिफारिश उसके काम आएगी, और न ही उनकी कोई सहायता की जाएगी।"


शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَٱتَّقُوا۟ : और डरो / बचो

  • يَوْمًا : एक दिन से

  • لَّا : नहीं

  • تَجْزِى : बदला दे सकती है

  • نَفْسٌ : कोई व्यक्ति / प्राण

  • عَن : की तरफ से

  • نَّفْسٍ : किसी दूसरे व्यक्ति के

  • شَيْـًٔا : कुछ भी

  • وَلَا : और न

  • يُقْبَلُ : स्वीकार किया जाएगा

  • مِنْهَا : उससे

  • عَدْلٌ : फिरौती / मुआवज़ा / बदला

  • وَلَا : और न

  • تَنفَعُهَا : लाभदायक होगी उसके लिए

  • شَفَـٰعَةٌ : सिफारिश

  • وَلَا : और न

  • هُمْ : वे

  • يُنصَرُونَ : सहायता की जाएगी


पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):

यह आयत पिछली आयतों में दिए गए चेतावनी भरे स्वर को जारी रखते हुए क़यामत के दिन की भयावहता का एक बहुत ही स्पष्ट और डरावना चित्रण पेश करती है। यह बनी इसराईल और सभी इंसानों को यह समझाने का प्रयास है कि दुनियावी रिश्ते और संसाधन आख़िरत में किसी काम नहीं आएँगे।

आयत क़यामत के दिन चार प्रकार की निरर्थकता का वर्णन करती है:

  1. पारस्परिक बदले की असमर्थता (लां तज्ज़ी नफ़सुन अन नफ़सिन शैया):

    • "कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कुछ भी बदला नहीं दे सकता।"

    • इस दुनिया में एक बेटा पिता के कर्जे चुका सकता है या कोई दोस्त दूसरे दोस्त की सजा कटवा सकता है। लेकिन क़यामत के दिन हर इंसान अकेला होगा। कोई भी उसके पापों का भार या सजा अपने ऊपर नहीं ले सकता। हर व्यक्ति अपने अपने कर्मों का फल स्वयं भोगेगा।

  2. फिरौती (मुआवज़े) की अस्वीकृति (व ला युक़बलु मिन्हा अदलुन):

    • "और न उससे कोई फिरौती (मुआवज़ा) स्वीकार की जाएगी।"

    • अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मेरी जगह मेरी दौलत, मेरे बेटे या मेरी कोई और चीज़ ले लो और मुझे छोड़ दो, तो ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। उस दिन दौलत, सोना-चाँदी, ज़मीन-जायदाद - सब बेकार हो जाएँगे।

  3. सिफारिश का अकुशल होना (व ला तनफ़उहा शफाअतुन):

    • "और न कोई सिफारिश उसके काम आएगी।"

    • इस दुनिया में किसी बड़े आदमी की सिफारिश काम आ जाती है। लेकिन क़यामत के दिन बिना अल्लाह की इजाज़त के कोई भी पैगंबर, फरिश्ता या संत सिफारिश नहीं कर पाएगा। और अल्लाह उसी की सिफारिश क़बूल करेगा जिसके लिए वह इजाज़त देगा (जैसे ईमान वाले गुनाहगार मुसलमान)।

  4. बाहरी सहायता का अभाव (व ला हुम युन्सरून):

    • "और न ही उनकी कोई सहायता की जाएगी।"

    • उस दिन कोई सेना, कोई समर्थक समूह या कोई ताकत किसी की मदद के लिए नहीं आएगी। इंसान पूरी तरह अल्लाह की मर्जी के भरोसे होगा।

संदर्भ: यह आयत बनी इसराईल को चेतावनी दे रही है कि तुम अपने पैगंबरों के रिश्ते या अपनी जाति पर इतराना छोड़ दो। क़यामत के दिन यह सब बेकार है। तुम्हें सिर्फ़ तुम्हारे अपने अमल ही बचा सकते हैं।


शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • व्यक्तिगत जिम्मेदारी: हर इंसान स्वयं अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार है। किसी के सहारे बचने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

  • दुनियावी चीजों की सच्चाई: दौलत, रिश्ते और हैसियत - ये सब आख़िरत में बेकार हैं। इन पर भरोसा करना मूर्खता है।

  • असली तैयारी: समझदार इंसान वह है जो इस दुनिया में ही अच्छे कर्म करके आख़िरत के लिए तैयारी कर ले।

  • अल्लाह की रहमत पर भरोसा: अंत में, सच्चा बचाव सिर्फ़ अल्लाह की दया और रहमत पर है, जो उसे उसके ईमान और अच्छे कर्मों के कारण देगा।


अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत बनी इसराईल के उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो अपने पैगंबरों और धार्मिक विरासत के नाते खुद को सुरक्षित समझते थे। इसने उनकी इस गलतफहमी को दूर करने का प्रयास किया।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: आज के दौर में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

    • भौतिकवादी समाज: आज का इंसान पैसे, पावर और कनेक्शन पर ही भरोसा करता है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि मौत के बाद यह सब किसी काम नहीं आएगा।

    • धार्मिक अंधविश्वास: कुछ लोग सोचते हैं कि उनके पूज्य व्यक्ति (संत, पीर, मज़ार) उन्हें अल्लाह के यहाँ ज़रूर बचा लेंगे। यह आयत स्पष्ट करती है कि बिना अल्लाह की इजाज़त के कोई सिफारिश नहीं कर सकता।

    • नैतिक जिम्मेदारी: यह आयत हर इंसान में व्यक्तिगत नैतिक जिम्मेदारी की भावना पैदा करती है। आप जो कर रहे हैं, उसका हिसाब आपको स्वयं देना है।

  • भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत क़यामत तक इंसानियत के लिए एक स्थायी चेतावनी के रूप में काम करेगी। जब भी इंसान दुनिया के झूठे सहारों में खो जाएगा, यह आयत उसे जगाएगी और याद दिलाएगी कि:

    • तैयारी का दिन आज ही है।

    • असली पूँजी अच्छे कर्म हैं।

    • असली सुरक्षा सिर्फ़ अल्लाह की रहमत से मिल सकती है।
      यह आयत हमेशा मानव जाति को उसकी अंतिम मंजिल की याद दिलाती रहेगी और उसे सही रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी।