यहाँ कुरआन की आयत 2:137 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:
﴿فَإِنْ ءَامَنُوا۟ بِمِثْلِ مَآ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهْتَدَوا۟ ۖ وَّإِن تَوَلَّوْا۟ فَإِنَّمَا هُمْ فِى شِقَاقٍ ۖ فَسَيَكْفِيكَهُمُ ٱللَّهُ ۚ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْعَلِيمُ﴾
हिंदी अनुवाद:
"फिर अगर वे (यहूदी और ईसाई) उसी तरह ईमान ले आएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो निश्चय ही वे सीधे मार्ग पर आ गए। और यदि वे मुँह मोड़ लें, तो वे सिर्फ़ विरोध में पड़े हैं। तो अल्लाह ही तुम्हारे लिए उनके मुक़ाबले में काफ़ी होगा। और वह सुनने वाला, जानने वाला है।"
शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
فَإِنْ : फिर यदि
ءَامَنُوا۟ : वे ईमान लाए
بِمِثْلِ : उसी के समान
مَآ : जिस पर
ءَامَنتُم : तुम ईमान लाए
بِهِۦ : उस पर
فَقَدِ : तो निश्चित रूप से
ٱهْتَدَوا۟ : वे मार्ग पा गए
وَإِن : और यदि
تَوَلَّوْا۟ : वे मुड़ गए / मुँह मोड़ लिया
فَإِنَّمَا : तो केवल
هُمْ : वे हैं
فِى : में
شِقَاقٍ : विरोध / फूट
فَسَيَكْفِيكَهُمُ : तो जल्द ही बस करेगा तुम्हारे लिए उनसे
ٱللَّهُ : अल्लाह
وَهُوَ : और वह है
ٱلسَّمِيعُ : सुनने वाला
ٱلْعَلِيمُ : जानने वाला
पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):
यह आयत पिछली आयतों का तार्किक निष्कर्ष है। जब मुसलमानों ने यहूदियों और ईसाइयों के सामने सच्चे ईमान का सार्वभौमिक सिद्धांत पेश किया (आयत 136), तो अब अल्लाह तआला उनके संभावित प्रतिक्रियाओं और उसके परिणामों के बारे में बता रहा है।
आयत के तीन मुख्य भाग:
1. ईमान लाने की शर्त और उसका परिणाम (फ़ैन आमनू बि मिस्लि मा आमनतुम बिही फ़कदिह्तदौ):
"फिर अगर वे उसी तरह ईमान ले आएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो निश्चय ही वे सीधे मार्ग पर आ गए।"
"बि मिस्लि मा आमनतुम बिही" (उसी के समान जिस पर तुम ईमान लाए) - यहाँ "मिस्ल" (समान) शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है कि ईमान आंशिक या संशोधित नहीं, बल्कि पूर्ण और वैसा ही होना चाहिए जैसा कि मुसलमानों ने अभी-अभी पेश किया है। यानी:
अल्लाह पर
कुरआन पर
सभी पैगंबरों पर बिना किसी भेदभाव के
सभी दिव्य किताबों की मूल शिक्षाओं पर
अगर वे इस तरह ईमान लाते हैं, तो वही "हिदायत" (मार्गदर्शन) पा जाएँगे जिसका वे दावा करते हैं।
2. इनकार करने की स्थिति और उसकी वास्तविकता (व इन तवल्लौ फ़इन्नमा हुम फी शिक़ाक):
"और यदि वे मुँह मोड़ लें, तो वे सिर्फ़ विरोध में पड़े हैं।"
"तवल्लौ" (मुँह मोड़ लेना) - यह सक्रिय इनकार है।
"फ़ी शिक़ाक" (विरोध/फूट में) - यह बताता है कि उनका इनकार सत्य को न समझने के कारण नहीं, बल्कि जिद, हठ और विरोध के कारण है। वे सत्य को जानते-समझते हुए भी, केवल अपने समुदायिक अहंकार के कारण उसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
3. मुसलमानों के लिए सांत्वना और आश्वासन (फ़स-यक्फ़ीकहुमुल्लाह):
"तो अल्लाह ही तुम्हारे लिए उनके मुक़ाबले में काफ़ी होगा।"
यह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ी सांत्वना और आश्वासन है।
इसका मतलब है कि अगर वे ईमान नहीं लाते और विरोध करते हैं, तो उनसे निपटने की ज़िम्मेदारी अल्लाह की है। वही उन्हें रोकेगा, उनकी चालों को विफल करेगा और मुसलमानों को उनके बुरे प्रभाव से बचाएगा।
4. अल्लाह के गुणों का स्मरण (व हुवस समीउल अलीम):
"और वह सुनने वाला, जानने वाला है।"
अस-समीउ: वह सब कुछ सुनता है - उनके इनकार के शब्द, उनकी साजिशें।
अल-अलीम: वह सब कुछ जानता है - उनके दिलों की जिद, उनकी मंशा, और मुसलमानों की मजबूरी।
शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
ईमान की शर्तें स्पष्ट हैं: ईमान आंशिक नहीं हो सकता। उसे पूर्ण और बिना शर्त स्वीकार करना होगा।
विरोध का कारण: सत्य का इनकार अक्सर अज्ञानता के कारण नहीं, बल्कि अहंकार और जिद के कारण होता है।
अल्लाह पर भरोसा: सत्य के मार्ग पर चलने वालों को चाहिए कि वे विरोधियों से घबराएँ नहीं, बल्कि अल्लाह पर भरोसा रखें कि वही उनकी रक्षा करेगा।
दावत का उद्देश्य: दावत (प्रचार) का उद्देश्य केवल सत्य को पहुँचाना है, लोगों को मजबूर करना नहीं।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत प्रारंभिक मुसलमानों के लिए एक बहुत बड़ा सहारा थी, जब मक्का और मदीना के काफिर और अहले-किताब उनका विरोध कर रहे थे। इसने उन्हें दृढ़ता और अल्लाह पर भरोसा करना सिखाया।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
दाइयों (प्रचारकों) के लिए मार्गदर्शन: आज इस्लाम के दाइयों के लिए यह आयत एक रोडमैप है। उनका काम सिर्फ़ स्पष्टता के साथ सत्य पेश करना है। अगर लोग "शिकाक" (विरोध) के कारण नहीं मानते, तो चिंता की बात नहीं, अल्लाह "काफी" है।
मुसलमानों के लिए सबक: आज भी मुसलमानों का सामना इस्लामोफोबिया और मीडिया के हमलों से होता है। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि अल्लाह उनके लिए "काफी" है।
आध्यात्मिक शांति: व्यक्तिगत स्तर पर, जब कोई व्यक्ति सत्य को स्वीकार नहीं करता, तो यह आयत हमें निराश नहीं होने देती।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत क़यामत तक सत्य के सेवकों के लिए एक स्थायी सहारा बनी रहेगी:
भरोसे का स्रोत: जब भी सत्य का विरोध होगा, मुसलमान यह जानेंगे कि अल्लाह उनके लिए "काफी" है।
धैर्य की शिक्षा: यह आयत हमेशा सिखाती रहेगी कि दावत के काम में धैर्य और अल्लाह पर भरोसा सबसे ज़रूरी हथियार हैं।
सत्य की विजय का वादा: "फस-यक्फीकहुमुल्लाह" का वाक्य हर युग में सत्य की अंतिम विजय का आश्वासन देता रहेगा।
यह आयत मुसलमानों के लिए आत्मविश्वास, धैर्य और दृढ़ता का स्रोत है, जो उन्हें सिखाती है कि सत्य का मार्ग अपनाने के बाद बाकी सब अल्लाह के भरोसे छोड़ देना चाहिए।