यहाँ कुरआन की आयत 2:139 की पूरी व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत की जा रही है:
﴿قُلْ أَتُحَآجُّونَنَا فِى ٱللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ وَلَنَآ أَعْمَـٰلُنَا وَلَكُمْ أَعْمَـٰلُكُمْ وَنَحْنُ لَهُۥ مُخْلِصُونَ﴾
हिंदी अनुवाद:
"(ऐ पैगंबर!) आप कह दें: 'क्या तुम हमसे अल्लाह के बारे में झगड़ा करते हो, जबकि वह हमारा भी रब है और तुम्हारा भी रब? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम उसी के लिए इख़्लास (ईमान को शुद्ध) रखने वाले हैं।'"
शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
قُلْ : (आप) कह दें
أَتُحَآجُّونَنَا : क्या तुम झगड़ा करते हो हमसे
فِى : के बारे में
ٱللَّهِ : अल्लाह
وَهُوَ : और वह
رَبُّنَا : हमारा रब है
وَرَبُّكُمْ : और तुम्हारा रब है
وَلَنَآ : और हमारे लिए हैं
أَعْمَـٰلُنَا : हमारे कर्म
وَلَكُمْ : और तुम्हारे लिए हैं
أَعْمَـٰلُكُمْ : तुम्हारे कर्म
وَنَحْنُ : और हम हैं
لَهُۥ : उसके लिए
مُخْلِصُونَ : इख़्लास रखने वाले / शुद्ध भक्त
पूर्ण व्याख्या (Full Explanation):
यह आयत यहूदियों और ईसाइयों के उस व्यवहार का जवाब है जब वे मुसलमानों से अल्लाह के बारे में तर्क-वितर्क और झगड़ा किया करते थे। अल्लाह अपने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को एक दृढ़ और तार्किक उत्तर देने का निर्देश देता है।
आयत के चार मुख्य तर्क:
1. तर्क की निरर्थकता (कुल अतुहाज्जूना फिल्लाह):
"(ऐ पैगंबर!) आप कह दें: 'क्या तुम हमसे अल्लाह के बारे में झगड़ा करते हो...'"
"तुहाज्जूना" शब्द में ज़ोरदार बहस और विवाद का भाव है।
यह सवाल इस बात की विसंगति को उजागर करता है कि जब अल्लाह ही सबका पालनहार है, तो फिर उसके बारे में झगड़ा करना कितना बेमानी है।
2. एक ही रब का सिद्धांत (व हुवा रब्बुना व रब्बुकुम):
"...जबकि वह हमारा भी रब है और तुम्हारा भी रब?"
यह एक बहुत मजबूत तार्किक आधार है। अगर अल्लाह हम सबका रब है, तो फिर उसके बारे में सच्चाई जानने का स्रोत भी वही होना चाहिए, न कि हमारी अपनी-अपनी धारणाएँ।
3. व्यक्तिगत जिम्मेदारी का सिद्धांत (व लना आ'मालुना व लकुम आ'मालुकुम):
"और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म।"
यह पिछली आयत 134 में बताए गए सिद्धांत को दोहराता है।
इसका मतलब है: तुम्हारे झगड़े और तर्क-वितर्क से कोई फायदा नहीं। अंततः हर व्यक्ति को अपने ही कर्मों का फल भोगना है। तुम्हारे गलत विश्वासों का दंड हमें नहीं मिलेगा और हमारे सही विश्वासों का फल तुम्हें नहीं मिलेगा।
4. इख़्लास (शुद्ध भक्ति) की श्रेष्ठता (व नह्नु लहू मुख्लिसून):
"और हम उसी के लिए इख़्लास (ईमान को शुद्ध) रखने वाले हैं।"
"मुख्लिसून" वे लोग हैं जिन्होंने "इख़्लास" अपना लिया है। इख़्लास का अर्थ है किसी भी प्रकार की शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) से अपने ईमान और इबादत को पूरी तरह शुद्ध कर लेना।
यह मुसलमानों की सबसे बड़ी श्रेष्ठता है। वे अल्लाह की इबादत में किसी को साझी नहीं ठहराते, जबकि यहूदी और ईसाई किसी न किसी रूप में शिर्क करते थे।
शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
व्यर्थ के विवादों से बचो: सत्य स्पष्ट होने के बाद झगड़ा करना बेकार है।
इख़्लास सबसे महत्वपूर्ण है: अल्लाह के नज़दीक सबसे कीमती चीज़ इबादत और ईमान की शुद्धता (इख़्लास) है।
अपने कर्मों पर ध्यान दो: दूसरों से झगड़ने के बजाय अपने कर्मों को सुधारो, क्योंकि हर व्यक्ति अपने ही कर्मों का जवाबदेह है।
सत्य को दृढ़ता से पेश करो: सत्य को तार्किक और दृढ़ता के साथ पेश करना चाहिए।
अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत मदीना के यहूदियों और ईसाइयों के साथ हुए धार्मिक विवादों में मुसलमानों के लिए एक मार्गदर्शक उत्तर थी।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
अंतर्धार्मिक संवाद: आज जब मुसलमानों का सामना दूसरे धर्मों के लोगों से होता है, तो यह आयत उन्हें सिखाती है कि विवाद के बजाय स्पष्ट और तार्किक रुख अपनाएँ।
आंतरिक एकता: मुसलमानों के बीच होने वाले फ़िरकाबंदी के झगड़ों के लिए भी यह आयत मार्गदर्शन है - "व लना आ'मालुना व लकुम आ'मालुकुम"।
इख़्लास की कमी: आज कई मुसलमान दिखावे (रियां) और शिर्क (कब्रपूजा, टोना-टोटका) में फंसे हैं। यह आयत उन्हें "मुख्लिसून" बनने की याद दिलाती है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता: यह आयत क़यामत तक मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में काम करेगी:
विवादों का समाधान: भविष्य में धार्मिक विवादों से निपटने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है।
आध्यात्मिक लक्ष्य: यह हर युग के मुसलमान को उसके असली लक्ष्य - "इख़्लास" - की याद दिलाती रहेगी।
व्यक्तिगत जिम्मेदारी: यह सिद्धांत कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का जिम्मेदार है, मुसलमानों को भीड़ की मानसिकता से बचाएगा और उन्हें व्यक्तिगत रूप से अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करेगा।
यह आयत मुसलमानों को एक संतुलित, तार्किक और आध्यात्मिक रूप से श्रेष्ठ पहचान प्रदान करती है। यह उन्हें सिखाती है कि विवादों में पड़े बिना, दृढ़ता और शुद्धता के साथ सत्य पर डटे रहना ही सच्ची कामयाबी है।