Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 2:14 - "व इज़ा लकुल्लजीना आमनू कालू आमन्ना व इज़ा खलाव इला शयातीनिहिम कालू इन्ना मअकुम इन्नमा नह्नु mustahzi'oon" (وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا إِلَىٰ شَيَاطِينِهِمْ قَالُوا إِنَّا مَعَكُمْ إِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِئُونَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की चौदहवीं आयत (2:14) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:14 - "व इज़ा लकुल्लजीना आमनू कालू आमन्ना व इज़ा खलाव इला शयातीनिहिम कालू इन्ना मअकुम इन्नमा नह्नु mustahzi'oon" (وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا إِلَىٰ شَيَاطِينِهِمْ قَالُوا إِنَّا مَعَكُمْ إِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِئُونَ)

हिंदी अर्थ: "और जब (ये मुनाफिक) ईमान वालों से मिलते हैं तो कहते हैं, 'हम ईमान ला चुके हैं,' और जब ये अपने शैतानों (नेताओं) के पास अकेले होते हैं तो कहते हैं, 'निस्संदेह हम तो तुम्हारे साथ हैं, हम तो सिर्फ मज़ाक कर रहे थे।'"

यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के दोहरे चरित्र और उनकी धोखेबाज़ी को बहुत ही स्पष्ट रूप से चित्रित करती है। यह दर्शाती है कि कैसे वे अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग रंग दिखाते हैं।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • व इज़ा (Wa izaa): और जब (And when)

  • लकु (Laqoo): मिलते हैं (They meet)

  • अल्लजीना आमनू (Allazeena aamanoo): उन लोगों से जो ईमान लाए (Those who believe)

  • कालू आमन्ना (Qaaloo aamanna): वे कहते हैं, "हम ईमान ला चुके हैं" (They say, "We believe")

  • व इज़ा (Wa izaa): और जब (And when)

  • खलाव (Khalaaw): अकेले हो जाते हैं (They are alone)

  • इला शयातीनिहिम (Ila shayaateenihim): अपने शैतानों के पास (To their devils)

  • कालू (Qaaloo): वे कहते हैं (They say)

  • इन्ना मअकुम (Inna ma'akum): निश्चय ही हम तुम्हारे साथ हैं (Indeed, we are with you)

  • इन्नमा नह्नु mustahzi'oon (Innamaa nahnu mustahzi'oon): हम तो केवल मज़ाक करने वाले हैं (We are only mockers)


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

यह आयत मुनाफिक़ीन के दोहरे व्यक्तित्व को दो दृश्यों के माध्यम से दर्शाती है:

दृश्य 1: ईमान वालों के सामने (In Front of the Believers)

  • स्थिति: जब मुनाफिक़ीन सच्चे मुसलमानों के सामने होते हैं।

  • उनका व्यवहार: वे दिखावा करते हैं और दावा करते हैं, "आमन्ना" (हम ईमान ला चुके हैं)।

  • उद्देश्य:

    • मुसलमानों का विश्वास हासिल करना।

    • अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना।

    • मुस्लिम समाज में अपनी जगह बनाए रखना।

    • मुसलमानों के बीच रहकर उनकी कमजोरियों का पता लगाना।

दृश्य 2: अपने असली साथियों के साथ (With Their Real Companions)

  • स्थिति: जब वे मुसलमानों की नजरों से दूर, अपने असली साथियों के साथ अकेले में होते हैं।

  • "शयातीन" (शैतान) कौन हैं? यहाँ "शैतान" से तात्पर्य सिर्फ जिन्नात से नहीं है, बल्कि उनके काफिर नेता, बुद्धिजीवी और साथी हैं जो उन्हें इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ उकसाते हैं। ये वे लोग हैं जो उनकी असली मानसिकता को साझा करते हैं।

  • उनका व्यवहार: अकेले में वे अपना असली चेहरा दिखाते हैं:

    1. "इन्ना मअकुम" (निश्चय ही हम तुम्हारे साथ हैं): वे अपने काफिर साथियों के प्रति वफादारी का इज़हार करते हैं और स्पष्ट करते हैं कि उनका दिल और विश्वास उन्हीं के साथ है।

    2. "इन्नमा नह्नु mustahzi'oon" (हम तो केवल मज़ाक करने वाले हैं): वे सच्चे मुसलमानों के साथ किए गए अपने व्यवहार को "मज़ाक" बताते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने मुसलमानों को बेवकूफ बनाया है और उनके सामने ईमान का दिखावा करना केवल एक तमाशा है।


3. महत्वपूर्ण बारीकियाँ (Important Nuances)

  • धोखे की गहराई: यह आयत दर्शाती है कि मुनाफिक़ीन का धोखा सिर्फ एक साधारण झूठ नहीं है। यह एक सुनियोजित और द्वैतपूर्ण जीवनशैली है। उनका पूरा जीवन एक झूठ पर टिका होता है।

  • ईमान के साथ मज़ाक: वे ईमान जैसी पवित्र और गंभीर चीज को भी "मज़ाक" समझते हैं। यह उनकी आध्यात्मिक मृत्यु और अंधेपन को दर्शाता है। उन्हें अल्लाह के कोप और सख्त सजा का कोई भय नहीं है।

  • अल्लाह का ज्ञान: यह आयत एक संकेत है कि अल्लाह उनकी हर गुप्त बातचीत और हर छिपे हुए इरादे को जानता है। वे चाहे जितना छिपाएँ, अल्लाह के लिए सब कुछ खुला है।


4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • ईमानदारी की शिक्षा: यह आयत हर मुसलमान को सिखाती है कि उसे हर हाल में ईमानदार और सच्चा बनना चाहिए। व्यक्ति का बाहरी और आंतरिक रूप एक जैसा होना चाहिए। दिखावा और पाखंड एक भयानक बीमारी है।

  • सतर्कता: यह आयत मुसलमान समुदाय को सिखाती है कि उसे लोगों को सिर्फ उनके दावों पर नहीं, बल्कि उनके कर्मों, चरित्र और निरंतरता पर परखना चाहिए। बाहरी दिखावे से भ्रमित नहीं होना चाहिए।

  • अल्लाह की नजर का एहसास: यह आयत हमें यह याद दिलाती है कि अल्लाह हर राज जानता है। कोई भी छिपी हुई बात उससे छिपी नहीं है। इसलिए, इंसान को हमेशा इस एहसास के साथ जीना चाहिए कि अल्लाह उसे देख रहा है।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:14 मुनाफिक़ीन के चरित्र की जड़ तक पहुँचती है। यह दर्शाती है कि कैसे वे समाज में धोखे और छल का एक जाल बुनते हैं। वे मुसलमानों को धोखा देने को अपनी "चतुराई" और "सफलता" समझते हैं, जबकि वास्तव में वे अपने आप को सबसे बड़े घाटे और यातना की ओर धकेल रहे हैं। यह आयत हर इंसान के लिए एक सबक है कि वह अपने जीवन में कभी भी दिखावे और पाखंड को स्थान न दे, क्योंकि अल्लाह तो वह सब कुछ देख और जान रहा है जो वे गुप्त बातचीत में करते हैं।