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कुरआन 2:15 - "अल्लाहु यस्तह्जिउ बिहिम व यमुद्दुहुम फी तुगयानिहिम यअमहून" (اللَّهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की पंद्रहवीं आयत (2:15) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:15 - "अल्लाहु यस्तह्जिउ बिहिम व यमुद्दुहुम फी तुगयानिहिम यअमहून" (اللَّهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ)

हिंदी अर्थ: "अल्लाह (भी) उनसे मज़ाक करता है और उन्हें उनके अत्याचार में डगमगाते हुए छोड़ देता है कि वे भटकते फिरें।"

यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के विवरण का चरमोत्कर्ष है। पिछली आयत में उन्होंने कहा था कि वे ईमान और ईमान वालों से "मज़ाक" (इस्तहज़ा) कर रहे हैं। इस आयत में अल्लाह उन्हें उन्हीं के शब्दों में जवाब देता है और बताता है कि उनकी इस हरकत का दैवीय प्रतिफल क्या होगा।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • अल्लाहु (Allahu): अल्लाह (Allah)

  • यस्तह्जिउ (Yastahzi-u): मज़ाक करता है (Mocks)

  • बिहिम (Bihim): उनसे (Them)

  • व यमुद्दुहुम (Wa yamudduhum): और उन्हें बढ़ावा देता है / फैलाता है (And prolongs for them)

  • फी तुगयानिहिम (Fee tughyanihim): उनके अत्याचार / सीमा लांघने में (In their rebellion)

  • यअमहून (Ya'mahoon): वे भटकते / अंधे होकर इधर-उधर भटकते हैं (They wander blindly)


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

यह आयत अल्लाह के "मज़ाक" और उसके परिणाम को तीन चरणों में समझाती है:

1. अल्लाह का "मज़ाक" - एक दैवीय दंड (Allah's "Mockery" - A Divine Retribution)

  • "अल्लाहु यस्तह्जिउ बिहिम" - "अल्लाह (भी) उनसे मज़ाक करता है।"

  • यहाँ "मज़ाक" करना अल्लाह के लिए वैसा नहीं है जैसा इंसानों के लिए होता है। अल्लाह किसी का मज़ाक नहीं उड़ाता। यह एक अलंकारिक भाषा (Figurative Language) है जो एक गहन सत्य को दर्शाती है।

  • इसका अर्थ है कि अल्लाह उन्हें उन्हीं की चाल में फँसाएगा। जिस तरह वे दूसरों को धोखा देकर मज़ाक उड़ा रहे हैं, उसी तरह अल्लाह भी उनकी योजनाओं को विफल करके उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाएगा, और यही उनके साथ अल्लाह का "मज़ाक" है।

  • यह कारण और परिणाम के नियम का हिस्सा है। जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।

2. उनके पाप में वृद्धि (Prolonging Them in Their Transgression)

  • "व यमुद्दुहुम फी तुगयानिहिम" - "और उन्हें उनके अत्याचार में बढ़ावा देता है।"

  • "तुगयान" का अर्थ है सीमा से आगे बढ़ जाना, अत्याचार करना, अल्लाह की अवज्ञा में चरम पर पहुँच जाना।

  • यह अल्लाह की एक दंडात्मक व्यवस्था है। जब कोई समूह लगातार और जानबूझकर बुराई में डूबा रहता है, तो अल्लाह उन्हें और अवसर देता है, उनकी बुराइयों को और बढ़ने देता है। यह उनकी परीक्षा नहीं, बल्कि उनकी गुमराही को पूरा करना है।

  • यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी को रस्सी दी जाए और वह उसी से अपनी गर्दन बाँध ले। अल्लाह उन्हें और रस्सी (मौका) दे देता है।

3. अंधे होकर भटकना (Wandering Blindly)

  • "यअमहून" - "वे भटकते फिरते हैं।"

  • यह शब्द पूर्ण मानसिक और आध्यात्मिक अंधेपन को दर्शाता है। वे न तो सही रास्ता देख पाते हैं, न ही अपनी गलती का एहसास कर पाते हैं।

  • वे अपनी बुराईयों, षड्यंत्रों और पाखंड में इतने खो चुके हैं कि उन्हें सही और गलत का कोई भेद नहीं सूझता। वे एक भटकी हुई भेड़ की तरह इधर-उधर भटकते रहते हैं, कोई स्पष्ट लक्ष्य या मार्ग उनके सामने नहीं होता।


3. महत्वपूर्ण बारीकियाँ (Important Nuances)

  • दैवीय न्याय: अल्लाह का "मज़ाक" उसके न्याय का एक रूप है। यह दर्शाता है कि अल्लाह पाखंडियों की हर चाल को जानता है और उन्हें उन्हीं की चाल में फँसाकर उनका मज़ाक उड़ाएगा।

  • सजा का स्वरूप: उनकी सजा यह है कि उन्हें और अधिक पाप करने का मौका दिया जाएगा, जिससे उनका पाप और बढ़ेगा और आख़िरत में उनकी यातना और भी भयानक होगी।

  • भटकाव की स्थिति: "यअमहून" उनकी वर्तमान दुनियावी हालत है - भ्रम, असमंजस और मानसिक अशांति से भरा जीवन।


4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • चेतावनी: यह आयत हर उस व्यक्ति के लिए एक सशक्त चेतावनी है जो सोचता है कि वह अपने पाखंड और दिखावे से दुनिया को धोखा दे सकता है। यह बताती है कि अंततः धोखा तो उन्हीं का होगा।

  • ईमानदारी का महत्व: यह आयत फिर से ईमानदारी और इखलास (शुद्धता) के महत्व पर जोर देती है। अल्लाह के यहाँ केवल वही कर्म मायने रखते हैं जो ईमान और सच्ची नीयत के साथ किए गए हों।

  • आत्म-जांच: हमें अपने आप से पूछना चाहिए: कहीं हम भी किसी मामले में ऐसा तो नहीं सोच रहे कि हम दूसरों को बेवकूफ बना रहे हैं? कहीं हम भी अल्लाह के "मज़ाक" का शिकार तो नहीं बन रहे?


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:15 एक भयानक दैवीय चेतावनी है। यह स्पष्ट कर देती है कि जो लोग ईमान और ईमान वालों का मज़ाक उड़ाते हैं, अल्लाह उन्हें उन्हीं की चाल में फँसाकर उनका मज़ाक उड़ाएगा। उनकी सजा यह है कि उन्हें उनके पाप और अवज्ञा में और डूबा दिया जाएगा, जिससे वे जीवन भर अंधे होकर भटकते रहेंगे और आख़िरत में उनके लिए भयानक यातना तैयार है। यह आयत हर इंसान को सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।