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कुरआन 2:16 - "उलाइकल्लजीनश्तरवल दलालता बिल हुदा फमा रबिहत तिजारतुहुम व मा कानू मुहतदीन" (أُولَٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوا مُهْتَدِينَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की सोलहवीं आयत (2:16) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:16 - "उलाइकल्लजीनश्तरवल दलालता बिल हुदा फमा रबिहत तिजारतुहुम व मा कानू मुहतदीन" (أُولَٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوا مُهْتَدِينَ)

हिंदी अर्थ: "यही वे लोग हैं जिन्होंने गुमराही को हिदायत के बदले में खरीद लिया, तो न तो उनका सौदा ही मुनाफे वाला रहा और न ही वे सीधे मार्ग पर आए।"

यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के जीवन के सबसे बड़े आर्थिक और आध्यात्मिक घाटे को एक शक्तिशाली रूपक (Metaphor) के माध्यम से समझाती है। यह उनकी पूरी जीवनशैली को एक "व्यापारिक सौदे" के रूप में पेश करती है और बताती है कि यह सौदा कितना घाटे का साबित हुआ।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • उलाइका (Ulaaika): यही लोग (Those are the ones)

  • अल्लजीना (Allazeena): जिन्होंने (Who)

  • इश्तरव (Ishtaraw): खरीद लिया (Purchased)

  • अद-दलालता (Ad-dalalata): गुमराही को (The misguidance)

  • बिल हुदा (Bil-huda): हिदायत के बदले में (In exchange for guidance)

  • फमा (Famaa): तो नहीं (So not)

  • रबिहत (Rabihat): मुनाफ़ा दिया / लाभदायक रही (Profited)

  • तिजारतुहुम (Tijaaratuhum): उनका व्यापार / सौदा (Their business)

  • व मा (Wa maa): और न (And not)

  • कानू (Kaanuu): वे थे (They were)

  • मुहतदीन (Muhtadeen): मार्ग पाने वाले / सीधे रास्ते पर (Rightly guided)


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

यह आयत एक व्यापारिक सौदे के रूपक (Metaphor) के जरिए मुनाफिक़ीन की आध्यात्मिक दिवालियापन को दर्शाती है। इसे तीन भागों में समझा जा सकता है:

1. एक मूर्खतापूर्ण सौदा (A Foolish Transaction)

  • "इश्तरवद दलालता बिल हुदा" - "गुमराही को हिदायत के बदले में खरीद लिया।"

  • "हिदायत" (मार्गदर्शन) एक अनमोल संपत्ति है जो उनके पास पहले से मौजूद थी। यानी, उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया था, उनके सामने कुरआन और पैगंबर का संदेश आ चुका था।

  • "दलालत" (गुमराही) एक बेकार और हानिकारक चीज है।

  • एक सामान्य व्यापारी सोने के बदले में मिट्टी नहीं खरीदता। लेकिन इन मुनाफिक़ीन ने यही किया। उन्होंने अपना कीमती "सोना" (हिदायत) देकर बेकार "मिट्टी" (गुमराही) खरीद ली।

  • उन्होंने यह सौदा क्यों किया? दुनिया के छोटे-छोटे फायदों (सुरक्षा, सम्मान, धन) के लिए, जो कि एक झूठे और अस्थायी लाभ हैं।

2. घाटे में रहा व्यापार (A Losing Business)

  • "फमा रबिहत तिजारतुहुम" - "तो न तो उनका सौदा ही मुनाफे वाला रहा।"

  • यह इस सौदे का नतीजा है। कोई भी व्यापारी सौदा इसलिए करता है कि उसे मुनाफा हो। लेकिन इनका सौदा पूरी तरह से घाटे का सौदा साबित हुआ।

  • घाटा क्या हुआ?

    • दुनिया में: उन्हें हमेशा डर और अशांति में रहना पड़ता है। उनका अपना अंतर्मन उन्हें कचोटता रहता है। समाज में उनकी कोई वास्तविक इज्जत नहीं होती।

    • आख़िरत में: यह सबसे बड़ा घाटा है। उन्होंने अनंत काल का सुख और जन्नत गँवा दी और इसके बदले में जहन्नम की यातना खरीद ली।

3. मार्गदर्शन से वंचित (Deprived of Guidance)

  • "व मा कानू मुहतदीन" - "और न ही वे सीधे मार्ग पर आए।"

  • यह उनकी स्थिति का अंतिम सत्य है। नतीजा यह हुआ कि न तो उन्हें दुनिया का सच्चा लाभ मिला और न ही आख़िरत का। सबसे बड़ी बात यह है कि वे हिदायत से वंचित रह गए।

  • "मुहतदीन" वे लोग हैं जो सीधे रास्ते पर चल पड़े और अपनी मंजिल तक पहुँच गए। मुनाफिक़ इस स्थिति से कोसों दूर हैं। वे न तो सच्चे मोमिन बन पाए और न ही खुले काफिर। उनकी कोई स्पष्ट हैसियत नहीं रह गई।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • जीवन के वास्तविक लाभ-हानि की पहचान: यह आयत हमें सिखाती है कि इंसान को हमेशा दूरदर्शी बनकर सोचना चाहिए। एक छोटे से दुनियावी फायदे के लिए आध्यात्मिक और अनंत लाभ (हिदायत और जन्नत) को नहीं गँवाना चाहिए।

  • आत्म-जांच: हमें अपने जीवन के "सौदों" पर गौर करना चाहिए। कहीं हम भी तो किसी छोटे लाभ (जैसे, किसी की खुशामद, एक झूठ, एक गुनाह) के लिए अपने ईमान, अपनी नेकी या अपनी आत्मिक शांति का सौदा तो नहीं कर रहे?

  • ईमान की कीमत: यह आयत बताती है कि ईमान सबसे बड़ी पूंजी है। इसे किसी भी कीमत पर नहीं गँवाना चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:16 मुनाफिक़ीन के जीवन को इतिहास का सबसे बुरा व्यापारिक सौदा बताती है। उन्होंने अनमोल हिदायत (मार्गदर्शन) देकर तुच्छ गुमराही खरीदी और इस तरह दुनिया और आख़िरत दोनों में घाटे में रहे। यह आयत हर इंसान के लिए एक सबक है कि वह अपने जीवन में वास्तविक लाभ और वास्तविक हानि के बीच अंतर करना सीखे। असली सफलता और मुनाफा ईमान और हिदायत में है, न कि दुनिया के धोखे और गुमराही में।