यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की सत्रहवीं आयत (2:17) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:17 - "मसलुहुम कमसलिल्लजिस्तौआदा नारन फलम्मा अज़ाअत मा हौला अल्लाहु बि नूरिहिम व तरकहुम फी ज़ुलुमातिल ला युब्सिरून" (مَثَلُهُمْ كَمَثَلِ الَّذِي اسْتَوْقَدَ نَارًا فَلَمَّا أَضَاءَتْ مَا حَوْلَهُ ذَهَبَ اللَّهُ بِنُورِهِمْ وَتَرَكَهُمْ فِي ظُلُمَاتٍ لَّا يُبْصِرُونَ)
हिंदी अर्थ: "उनकी मिसाल (दृष्टांत) ऐसे व्यक्ति जैसी है जिसने आग जलाई, फिर जब उस (आग) ने उसके चारों ओर (सब कुछ) रोशन कर दिया, तो अल्लाह ने उनकी रोशनी ले ली और उन्हें अंधेरों में छोड़ दिया, (अब) वे कुछ देख नहीं सकते।"
यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) की हकीकत को समझाने के लिए एक बेहद सुंदर और गहरा दृष्टांत (Analogy) पेश करती है। यह दृष्टांत उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत, चरमोत्कर्ष और अंतिम पतन को चित्रित करता है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
मसलुहुम (Mathaluhum): उनकी उपमा / मिसाल (Their example)
कमसलिल्लजी (Kamasalillazi): उस व्यक्ति की मिसाल के समान (Like the example of one who)
इस्तौक़दा (Istawqada): जलाई / प्रज्वलित की (Lit)
नारन (Naaran): आग (A fire)
फलम्मा (Falamma): फिर जब (Then when)
अज़ाअत (Adaa'at): रोशन कर दिया (It illuminated)
मा हौलहू (Maa hawlahu): जो कुछ उसके आस-पास था (What was around him)
ज़हबल्लाहु (Zahaballahu): अल्लाह ने ले लिया (Allah took away)
बि नूरिहिम (Bi noorihim): उनकी रोशनी (Their light)
व तरकहुम (Wa tarakahum): और छोड़ दिया उन्हें (And left them)
फी ज़ुलुमातिन (Fee zulumatin): अंधेरों में (In darkness)
ला युब्सिरून (La yubsiroon): वे देख नहीं सकते (They cannot see)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह दृष्टांत तीन चरणों में मुनाफिक़ीन की कहानी कहता है:
चरण 1: आग जलाना (Lighting the Fire - इस्तौक़दा नारन)
आग क्या है? यह आग ईमान का प्रकाश है। जब मुनाफिक़ीन पहली बार इस्लाम के संपर्क में आए, तो उन्होंने इसकी सच्चाई को महसूस किया। उनके दिल में एक क्षणिक चिंगारी जली। उन्होंने जाना कि यही सत्य है और उन्होंने बाहरी तौर पर ईमान कबूल किया।
इस चरण में, वे एक ऐसे व्यक्ति की तरह हैं जो अंधेरी रात में रास्ता ढूंढ रहा है और उसने अपने लिए आग जला ली है।
चरण 2: चारों ओर प्रकाश फैलना (The Illumination - अज़ाअत मा हौलहू)
प्रकाश क्या है? जैसे आग जलने से आस-पास का सब कुछ दिखने लगता है, वैसे ही ईमान की इस आग ने उनके लिए जीवन के सारे सत्य स्पष्ट कर दिए।
उन्हें पता चल गया कि अल्लाह कौन है।
उन्हें पता चल गया कि हलाल और हराम क्या है।
उन्हें पता चल गया कि आख़िरत में क्या होगा।
इस चरण में, वे पूरी तरह से "रोशनी" में आ गए। उनके पास सब कुछ स्पष्ट था।
चरण 3: प्रकाश का लुप्त होना और पूर्ण अंधकार (The Extinction of Light and Complete Darkness - ज़हबल्लाहु बि नूरिहिम)
प्रकाश क्यों लुप्त हुआ? क्योंकि उन्होंने अपने पाखंड, संदेह और दुनियावी लालच के कारण उस ईमान की रोशनी को बुझा दिया। उन्होंने सत्य को जानकर भी उस पर अमल नहीं किया और दिखावा करना शुरू कर दिया।
अल्लाह का "ले लेना": यह अल्लाह की दंडात्मक व्यवस्था है। जब इंसान लगातार सत्य को ठुकराता है, तो अल्लाह उसे उसकी गुमराही में ही छोड़ देता है और उसके दिल से समझ और रोशनी की क्षमता छीन लेता है (जैसा कि आयत 2:7 में बताया गया)।
परिणाम: अब वे "ज़ुलुमात" (अंधेरों) में हैं। यह अंधेरा संदेह का, भ्रम का, पाखंड का और आशाहीनता का है। वे इतने अंधे हो चुके हैं कि अब सही और गलत का फर्क भी नहीं देख पाते (ला युब्सिरून)।
3. दृष्टांत का सारांश (Summary of the Analogy)
| दृष्टांत का चरण | आध्यात्मिक अर्थ | मुनाफिक़ीन की स्थिति |
|---|---|---|
| आग जलाना | ईमान की प्रारंभिक चिंगारी | इस्लाम को समझना और बाहरी तौर पर स्वीकार करना |
| चारों ओर प्रकाश | ईमान से मिलने वाली पूर्ण समझ | सत्य को पहचान लेना और उसके प्रमाण देख लेना |
| प्रकाश का लुप्त होना | ईमान की रोशनी का खत्म होना | पाखंड के कारण दिल के मर जाने और आध्यात्मिक अंधेपन में गिर जाना |
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
ईमान की हिफाजत: यह आयत हर मुसलमान के लिए एक चेतावनी है कि ईमान की रोशनी एक नाजुक चीज है। इसे पाखंड, गुनाह और लापरवाही से बचाकर रखना चाहिए। अगर इसे बुझने दिया गया, तो फिर से रोशनी पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
सच्चे ईमान की पहचान: यह आयत सिखाती है कि असली ईमान वह है जो दिल से हो और जो कर्मों में दिखे। सिर्फ बाहरी दिखावा एक ऐसी आग की तरह है जो कुछ पल चमककर बुझ जाती है और इंसान को पहले से भी ज्यादा अंधेरे में छोड़ देती है।
अल्लाह से रोशनी की दुआ: हमें हमेशा अल्लाह से दुआ करते रहना चाहिए: "रब्बना ला तुज़िग़ कुलूबना बअदा इज़ हदैतना" (हे हमारे पालनहार! हमें सीधा मार्ग दिखाने के बाद हमारे दिलों को टेढ़ा न कर) - (सूरह आले इमरान, 3:8)।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:17 मुनाफिक़ीन की आध्यात्मिक त्रासदी को एक अद्भुत दृष्टांत के माध्यम से प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि कैसे उन्होंने ईमान की रोशनी पाकर भी उसे अपने पाखंड के कारण गँवा दिया और पूर्ण अंधेरे में जीने के लिए अभिशप्त हो गए। यह आयत हर इंसान से कहती है कि ईमान की रोशनी को संभालकर रखो, क्योंकि एक बार यह बुझ गई तो फिर जीवन के सभी अर्थ और दिशा खो जाएंगे।