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क़ुरआन 2:143 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِّتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا ۗ وَمَا جَعَلْنَا الْقِبْلَةَ الَّتِي كُنتَ عَلَيْهَا إِلَّا لِنَعْلَمَ مَن يَتَّبِعُ الرَّسُولَ مِمَّن يَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ ۚ وَإِن كَانَتْ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى الَّذِينَ هَدَى اللَّهُ ۗ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَانَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • وَكَذَٰلِكَ: और इसी तरह (इस प्रकार)

  • جَعَلْنَاكُمْ: हमने बना दिया तुम्हें

  • أُمَّةً: एक समुदाय

  • وَسَطًا: न्यायसंगत, संतुलित, बीच का

  • لِّتَكُونُوا: ताकि तुम हो जाओ

  • شُهَدَاءَ: गवाह

  • عَلَى النَّاسِ: लोगों पर

  • وَيَكُونَ: और ताकि हो जाए

  • الرَّسُولُ: पैगंबर (मुहम्मद सल्ल.)

  • عَلَيْكُمْ: तुम पर

  • شَهِيدًا: गवाह

  • وَمَا جَعَلْنَا: और हमने नहीं बनाया

  • الْقِبْلَةَ: किब्ला (दिशा)

  • الَّتِي كُنتَ عَلَيْहَا: जिस पर तुम (पैगंबर) थे

  • إِلَّا: केवल

  • لِنَعْلَمَ: ताकि हम जान लें

  • مَن يَتَّبِعُ الرَّسُولَ: कौन पैगंबर का अनुसरण करता है

  • مِمَّن يَنقَلِبُ: उससे जो पलट जाता है

  • عَلَىٰ عَقِبَيْهِ: अपनी एड़ियों पर (पीछे हट जाता है)

  • وَإِن كَانَتْ: और बेशक वह (परीक्षा) थी

  • لَكَبِيرَةً: बहुत बड़ी (कठिन)

  • إِلَّا عَلَى: सिवाय उन पर

  • الَّذِينَ هَدَى اللَّهُ: जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्शन दिया

  • وَمَا كَانَ اللَّهُ: और अल्लाह ऐसा नहीं है

  • لِيُضِيعَ: कि वह बर्बाद करे

  • إِيمَانَكُمْ: तुम्हारे ईमान को

  • إِنَّ اللَّهَ: निश्चय ही अल्लाह

  • بِالنَّاسِ: लोगों के साथ

  • لَرَءُوفٌ: अत्यंत दयालु, कोमल

  • رَّحِيمٌ: बहुत मेहरबान

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों के क्रम में आती है, जहाँ किब्ला बदले जाने पर मूर्ख लोगों की आलोचनाओं का जवाब दिया गया था। अब अल्लाह इस परिवर्तन के गहरे उद्देश्य और इससे जुड़े फैसलों को समझाता है।

पहला भाग: उम्मत-ए-वसत का दर्जा (The Status of a Just Community)
अल्लाह फरमाता है: "और इसी प्रकार हमने तुम्हें (मुसलमानों को) एक न्यायसंगत समुदाय बनाया है।" 'वसत' का अर्थ है बीच वाला, संतुलित, न्यायपूर्ण और सर्वोत्तम। यह इस उम्मत (समुदाय) की विशेषता है कि वह अतिवाद और कट्टरपन से दूर, हर मामले में न्याय और संतुलन का रास्ता अपनाए। इसका उद्देश्य है: "ताकि तुम लोगों पर गवाह बनो और पैगंबर तुम पर गवाह बनें।" यानी कयामत के दिन, अन्य समुदायों के अपने पैगंबरों से इनकार करने पर, यह उम्मत इस बात की गवाही देगी कि पैगंबरों का संदेश उन तक पहुँचा था। और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) स्वयं इस उम्मत के कर्मों के गवाह होंगे।

दूसरा भाग: किब्ला परिवर्तन की हिकमत (The Wisdom Behind Changing the Qibla)
फिर अल्लाह किब्ला बदलने का असली रहस्य बताता है: "और (हे पैगंबर) जिस किब्ले पर आप पहले थे, हमने उसे केवल इसलिए बनाया था ताकि हम यह पहचान लें कि कौन पैगंबर का अनुसरण करता है और कौन अपनी एड़ियों पर पलट जाता है।" यह एक परीक्षा थी। सच्चे मोमिन ने बिना सवाल किए अल्लाह और उसके रसूल के आदेश का पालन किया। जबकि कमजोर ईमान वालों और मुनाफिकों (पाखंडियों) ने इसका विरोध किया और इस्लाम छोड़कर पीछे हट गए। इस तरह अल्लाह ने सच्चे और झूठे ईमान वालों के बीच अंतर कर दिया।

तीसरा भाग: सांत्वना और दया (Consolation and Mercy)
अल्लाह स्वीकार करता है कि यह परीक्षा वास्तव में बहुत कठिन थी: "और निश्चय ही यह (परीक्षा) बहुत बड़ी थी, सिवाय उन लोगों के लिए जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्शन दिया।" केवल वही लोग इस पर खरे उतरे जिनके दिलों को अल्लाह ने ईमान की रोशनी से मजबूत कर दिया।

फिर अल्लाह एक बहुत बड़ी सांत्वना और आश्वासन देता है: "और अल्लाह तुम्हारे ईमान को बर्बाद करने वाला नहीं है।" यहाँ 'ईमान' से तात्पर्य बैतुल मुक़द्दस की ओर मुंह करके की गई उन पिछली नमाज़ों से है। अल्लाह कह रहा है कि तुम्हारी उन नमाज़ों को स्वीकार किया जाएगा, वह बेकार नहीं जाएंगी। आयत का अंत इसी दया पर होता है: "निश्चय ही अल्लाह लोगों पर अत्यंत दयालु, बहुत मेहरबान है।"

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. गवाही का दायित्व: इस उम्मत को दुनिया में 'गवाह' बनाकर भेजा गया है। इसका मतलब है कि हमें हमेशा न्याय, सच्चाई और अच्छाई का पक्ष लेना है, चाहे वह स्वयं के खिलाफ ही क्यों न हो।

  2. संतुलन का जीवन: 'उम्मत-ए-वसत' होने का अर्थ है धार्मिक, सामाजिक और नैतिक हर पहलू में संतुलन बनाए रखना। अति या लापरवाही से बचना है।

  3. परीक्षा का दर्शन: अल्लाह का हर आदेश एक परीक्षा है। सच्चा ईमान वही है जो हर हाल में अल्लाह के आदेश को माने। कठिनाइयाँ सच्चे और झूठे को अलग करने का जरिया हैं।

  4. अल्लाह की दया पर भरोसा: अल्लाह अपने बंदों पर बेहद मेहरबान है। वह उनके छोटे-मोटे संकटों और भटकावों को माफ कर देता है और उनके अच्छे कर्मों को कभी बर्बाद नहीं करता।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • इस आयत ने मदीना के मुसलमानों को एक स्पष्ट पहचान और वैश्विक मिशन दिया। उन्हें समझ आया कि किब्ला का बदलना केवल एक दिशा का परिवर्तन नहीं, बल्कि एक बड़ी योजना का हिस्सा है।

    • इसने मुनाफिकों और सच्चे मोमिनों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींच दी।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • मुस्लिम पहचान: आज जब मुसलमान दुनिया भर में फैले हुए हैं और उन पर अतिवादी और उदारवादी होने के आरोप लगते हैं, यह आयत उन्हें उनकी असली पहचान 'उम्मत-ए-वसत' (न्यायसंगत और संतुलित समुदाय) की याद दिलाती है।

    • आंतरिक परीक्षाएं: आज भी मुसलमानों को विभिन्न परीक्षाओं का सामना है। यह आयत सिखाती है कि इन परीक्षाओं का उद्देश्य उनके ईमान को शुद्ध करना और उनकी वफादारी को परखना है।

    • अल्लाह की रहमत का संदेश: व्यक्तिगत जीवन में जब कोई व्यक्ति पिछली गलतियों को लेकर चिंतित रहता है, यह आयत उसे अल्लाह की असीम दया और रहमत का आश्वासन देती है।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • वैश्विक भूमिका: भविष्य में मानवता जब और भी भटकाव और अतिवाद का शिकार होगी, इस 'उम्मत-ए-वसत' की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी। उन्हें ही न्याय, शांति और संतुलन की गवाही देनी है।

    • शाश्वत सिद्धांत: 'वसतिय्यत' (संतुलन) का सिद्धांत एक शाश्वत मार्गदर्शन है। भविष्य की हर चुनौती का सामना इसी सिद्धांत के आधार पर किया जा सकता है।

    • आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह आश्वासन देती रहेगी कि अल्लाह की दया उसके बंदों से हमेशा जुड़ी हुई है और वह उनके ईमान और अच्छे कर्मों को कभी बर्बाद नहीं करेगा।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण नहीं है, बल्कि यह पूरी मुस्लिम उम्मत को उसका लक्ष्य, उसकी पहचान और उसके लिए अल्लाह की दया का प्रमाण पत्र प्रदान करती है, जो कल, आज और कल हर युग में उसके लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।