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क़ुरआन 2:142 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

سَيَقُولُ السُّفَهَاءُ مِنَ النَّاسِ مَا وَلَّاهُمْ عَن قِبْلَتِهِمُ الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا ۚ قُل لِّلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ ۚ يَهْدِي مَن يَشَاءُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • سَيَقُولُ: कहेंगे (भविष्य में)

  • السُّفَهَاءُ: मूर्ख, बुद्धिहीन लोग

  • مِنَ النَّاسِ: लोगों में से

  • مَا وَلَّاهُمْ: किस चीज़ ने उन्हें मोड़ दिया / फेर दिया

  • عَن قِبْلَتِهِمُ: उनके किब्ला से (जिस किब्ला की ओर वे रुख करते थे)

  • الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا: जिस पर वे (पहले) थे

  • قُل: (आप) कह दीजिए

  • لِّلَّهِ: अल्लाह का है

  • الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ: पूर्व और पश्चिम

  • يَهْدِي: मार्गदर्शन करता है

  • مَن يَشَاءُ: जिसे चाहता है

  • إِلَىٰ: की ओर

  • صِرَاطٍ: रास्ता

  • مُّسْتَقِيمٍ: सीधा

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत उस ऐतिहासिक घटना के संदर्भ में उतरी थी जब पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अल्लाह के आदेश से नमाज़ की दिशा (किब्ला) बैतुल मुक़द्दस (येरुशलम) से बदलकर मस्जिद-ए-हराम (मक्का) की ओर कर दी गई। यह परिवर्तन मदीना में हिजरत के लगभग 16-17 महीने बाद हुआ।

इस परिवर्तन पर मदीना के कुछ यहूदियों और मुनाफिकों (पाखंडियों) ने तंज कसना शुरू कर दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर पैगंबर का धर्म सच्चा है और बैतुल मुक़द्दस की दिशा में नमाज़ पढ़ना सही था, तो अब उसे बदला क्यों गया? उनका उद्देश्य मुसलमानों के दिलों में संदेह पैदा करना था।

इसी के जवाब में अल्लाह ने यह आयत उतारी। अल्लाह कहता है कि "लोगों में से मूर्ख (बुद्धिहीन लोग) कहेंगे: 'उन्हें उनके उस किब्ले से किस चीज़ ने फेर दिया जिस पर वे (पहले) थे?'"

फिर अल्लाह पैगंबर को जवाब देने का तरीका सिखाता है: "आप कह दीजिए: पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही का है।" यानी सारा ब्रह्मांड, हर दिशा अल्लाह की मल्कियत में है। उसके लिए किसी एक दिशा का कोई विशेष महत्व नहीं है। महत्व है तो केवल आज्ञाकारिता और आदेश का। किब्ला का मकसद अल्लाह के आदेश का पालन करना और एकता स्थापित करना है, न कि किसी दिशा की पूजा करना।

आयत के अंत में अल्लाह फरमाता है: "वह जिसे चाहता है सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है।" इसका अर्थ है कि सच्चा मार्गदर्शन अल्लाह की तरफ से है। वही यह तय करता है कि किस समय, किस उद्देश्य से कौन-सा आदेश देना है। जो लोग ईमान और समझदारी रखते हैं, वे इस आदेश में अल्लाह की हिकमत (बुद्धिमत्ता) को समझते हैं, जबकि मूर्ख लोग केवल सवाल उठाकर फितना (अशांति) पैदा करते हैं।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. आज्ञाकारिता की परीक्षा: किब्ला का बदलना मुसलमानों की आज्ञाकारिता और अल्लाह के आदेश पर तत्काल सर्मपण की परीक्षा थी। सच्चा मोमिन वही है जो अल्लाह के हर आदेश को बिना सवाल किए स्वीकार कर ले।

  2. मूर्खों की आलोचना से बचाव: दुनिया में हमेशा कुछ लोग ऐसे होंगे जो आपके धार्मिक निर्णयों और आदेशों पर सवाल उठाएंगे। ऐसे "सफहा" (मूर्खों) की बातों का जवाब अल्लाह ने यहाँ एक बहुत ही सटीक तरीके से दिया है।

  3. एकेश्वरवाद (तौहीद) की व्यापकता: "पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही का है" यह बात तौहीद के सिद्धांत को और मजबूती से स्थापित करती है। पूजा का केंद्र भले ही एक दिशा हो, लेकिन पूजा और आज्ञा सिर्फ एक अल्लाह की ही है।

  4. मार्गदर्शन अल्लाह के हाथ में है: सच्चा मार्गदर्शन देने वाला सिर्फ अल्लाह है। उसकी हिकमत पर भरोसा रखना चाहिए, भले ही हम उसका तत्काल कारण न समझ पाएं।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता: यह आयत सीधे तौर पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय में घटित एक ऐतिहासिक घटना से संबंधित है। इसने उस समय के मुसलमानों को यहूदियों और मुनाफिकों के सवालों का दमदार जवाब दिया और उनके ईमान को मजबूत किया। इसने इस्लाम को यहूदी धर्म से अलग एक स्वतंत्र पहचान दी।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • आलोचनाओं का सामना: आज भी मुसलमानों को विभिन्न मुद्दों पर आलोचनाओं और सवालों का सामना करना पड़ता है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें मूर्खतापूर्ण आलोचनाओं में उलझने के बजाय, अल्लाह के आदेशों पर दृढ़ रहना चाहिए और उसकी हिकमत पर भरोसा करना चाहिए।

    • धार्मिक सुधार और बदलाव: कभी-कभी धार्मिक व्यवस्था में समय और परिस्थिति के अनुसार बदलाव आवश्यक हो जाते हैं। यह आयत हमें यह सबक देती है कि ऐसे बदलाव का अधिकार सिर्फ अल्लाह और उसके द्वारा स्थापित स्रोतों (Quran & Sunnah) के पास है, न कि हर किसी के पास।

    • एकता का प्रतीक: किब्ला (काबा) आज पूरी दुनिया के मुसलमानों की एकता का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह आयत उसी एक केंद्र की ओर रुख करने के महत्व को दर्शाती है।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • हमेशा रहने वाली चुनौती: जब तक दुनिया है, सत्य के मार्ग पर चलने वालों की आलोचना और उन पर सवाल उठते रहेंगे। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि वे कैसे ऐसी स्थितियों में अपने ईमान और हौसले को कायम रख सकते हैं।

    • मार्गदर्शन का स्रोत: भविष्य में आने वाली सभी जटिलताएं और नई चुनौतियाँ, मार्गदर्शन के लिए मनुष्य को अंततः अल्लाह की ओर ही देखना होगा। यह आयत याद दिलाती है कि सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक केवल अल्लाह है।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक ऐतिहासिक घटना का ब्यौरा भर नहीं है, बल्कि यह मोमिन के जीवन के लिए एक सदाबहार मार्गदर्शन और दर्शन प्रस्तुत करती है, जो कल भी प्रासंगिक थी, आज भी है और कल भी रहेगी।