1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
وَلِكُلٍّ وِجْهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَا ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ أَيْنَ مَا تَكُونُوا يَأْتِ بِكُمُ اللَّهُ جَمِيعًا ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
وَلِكُلٍّ: और हर एक (समुदाय) के लिए
وِجْهَةٌ: एक दिशा (किब्ला/मार्ग) है
هُوَ مُوَلِّيهَا: जिसकी ओर वह मुड़ता है
فَاسْتَبِقُوا: तो तुम होड़ करो (बढ़-चढ़ कर करो)
الْخَيْرَاتِ: अच्छाइयों (नेकियों) में
أَيْنَ مَا تَكُونُوا: तुम जहाँ कहीं भी हो
يَأْتِ بِكُمُ: ले आएगा तुम्हें
اللَّهُ: अल्लाह
جَمِيعًا: सबको एक साथ
إِنَّ اللَّهَ: निश्चय ही अल्लाह
عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ: हर चीज़ पर
قَدِيرٌ: पूरी तरह सक्षम है
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत किब्ला के विवाद पर एक सुनहरा और अंतिम निष्कर्ष प्रस्तुत करती है। पिछली आयतों में अल्लाह ने अहले-किताब की हठधर्मिता को बेनकाब किया था और मुसलमानों को सत्य पर दृढ़ रहने का आदेश दिया था। अब यह आयत एक व्यापक और सार्वभौमिक सिद्धांत स्थापित करती है।
पहला भाग: धार्मिक स्वतंत्रता का सिद्धांत (The Principle of Religious Plurality)
अल्लाह फरमाता है: "और हर एक (समुदाय) के लिए एक दिशा है जिसकी ओर वह मुड़ता है।"
इसका एक अर्थ तो यह है कि हर धार्मिक समुदाय का अपना एक किब्ला या पूजा का तरीका है (जैसे यहूदियों का बैतुल मुक़द्दस और मुसलमानों का काबा)। लेकिन इसका एक गहरा और व्यापक अर्थ यह है कि हर समुदाय का जीवन का एक ढर्रा, एक मार्ग (विजहतुन) है जिसे वह सही मानता है और उसी पर चलता है। अल्लाह यहाँ यह स्वीकार कर रहा है कि दुनिया में विभिन्न मत और मार्ग मौजूद हैं।
दूसरा भाग: सच्ची प्रतिस्पर्धा का आह्वान (The Call for True Competition)
लेकिन अल्लाह मुसलमानों को यह कहकर नहीं छोड़ता कि हर कोई अपने-अपने रास्ते पर है। बल्कि, वह उन्हें सच्चे मुकाबले का लक्ष्य देता है: "तो (हे मोमिनिन!) तुम अच्छाइयों (नेकियों) में होड़ करो।"
यहाँ मामला सिर्फ किब्ला या रीति-रिवाजों का नहीं रह गया। असली मुकाबला "अच्छाइयों" (अल-खैरात) में आगे बढ़ने का है। अल-खैरात एक बहुत व्यापक शब्द है जिसमें ईमान, तक्वा (ईश्वर-भय), नेक अमल, नैतिकता, इंसानियत की सेवा, न्याय, दया और हर वह अच्छा काम शामिल है जिसकी शिक्षा इस्लाम देता है। अल्लाह का आदेश है कि दूसरे समुदायों से बहस करने के बजाय, तुम नेकियों में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करो।
तीसरा भाग: अल्लाह की शक्ति का स्मरण (The Reminder of Allah's Power)
फिर अल्लाह एक चेतावनी और आश्वासन देता है: "तुम जहाँ कहीं भी हो, अल्लाह तुम सबको एक साथ ले आएगा।"
यह एक तरफ कयामत का दृश्य है, जब अल्लाह सारी इंसानियत को एक मैदान में एकत्रित करेगा और हरेक को उसके अच्छे-बुरे अमल का हिसाब देगा। यह बात मुसलमानों को यह याद दिलाती है कि अंततः तुम्हें अपने कर्मों का जवाब देना है, इसलिए नेकियों में आगे बढ़ो। आयत का अंत इसी ताकत पर होता है: "निश्चय ही अल्लाह हर चीज़ पर पूरी तरह सक्षम है।" वह तुम्हें इकट्ठा करने, तुम्हें तुम्हारे कर्मों का फल देने और हर चीज़ को अंजाम तक पहुँचाने की पूरी शक्ति रखता है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
वास्तविक मुकाबला नेकी का है: असली प्रतिस्पर्धा (Competition) दूसरे धर्मों के लोगों से बहस करने या उन्हें नीचा दिखाने में नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों में आगे बढ़ने में है।
सकारात्मक कार्य पर ध्यान: समय और ऊर्जा को नकारात्मक बहसों और विवादों में बर्बाद करने के बजाय, उसे इमारती और रचनात्मक कामों में लगाना चाहिए।
अंतिम लक्ष्य याद रखो: हमारा अंतिम लक्ष्य अल्लाह की रज़ा और आखिरत (परलोक) में सफलता हासिल करना है। हर कर्म इसी कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
अल्लाह की शक्ति पर पूरा भरोसा: अल्लाह की ताकत असीमित है। वह हर किसी को जवाबदेह ठहराने के लिए एकत्रित करने में सक्षम है, इसलिए हमें अपने हर कदम में सावधान और जिम्मेदार रहना चाहिए।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
इस आयत ने मुसलमानों का ध्यान यहूदियों के साथ किब्ले के विवाद से हटाकर एक बड़े और महत्वपूर्ण लक्ष्य – "नेकियों में प्रतिस्पर्धा" – की ओर केंद्रित किया।
इसने उन्हें एक सकारात्मक और रचनात्मक जीवन शैली अपनाने का आदेश दिया, न कि नकारात्मक बहसों में उलझे रहने का।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
अंतर-धार्मिक संबंध: आज दुनिया एक ग्लोबल विलेज है, जहाँ विभिन्न धर्मों और मतों के लोग साथ-साथ रहते हैं। यह आयत मुसलमानों को सिखाती है कि दूसरे धर्मों के लोगों के साथ बहस और टकराव की बजाय, उन्हें अपने अच्छे आचरण, ऊँची नैतिकता और इंसानियत की सेवा के द्वारा इस्लाम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण पेश करना चाहिए।
आंतरिक सुधार: मुस्लिम समुदाय के भीतर भी, यह आयत हमें सिखाती है कि विभिन्न मसलक (सम्प्रदाय)ों के बीच के झगड़े और बहसें बेकार हैं। असली कोशिश ईमान और नेक अमल में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होनी चाहिए।
व्यक्तिगत विकास: हर मोमिन के लिए, यह आयत एक चुनौती है कि वह हर दिन पिछले दिन से बेहतर बने, अधिक नेक, अधिक ज्ञानी और अधिक उपयोगी इंसान बने।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: भविष्य में जब भी मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम बहुमत वाले समाज में रहेंगे या दूसरी सभ्यताओं के साथ संवाद करेंगे, यह आयत उनके लिए एक स्पष्ट रणनीति देगी – "फास्तबिक़ुल खैरात" – नेकियों में आगे बढ़ो।
प्रगति का मार्ग: मुस्लिम उम्मा की वास्तविक प्रगति और सम्मान उस समय ही संभव है जब वह विज्ञान, शिक्षा, नैतिकता, सामाजिक न्याय और इंसानियत की सेवा के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व करेगी। यह आयत उसी की ओर संकेत करती है।
जवाबदेही का भाव: "याति बिकुमुल्लाहु जमीआ" (अल्लाह तुम सबको एक साथ ले आएगा) का भाव भविष्य की हर पीढ़ी के दिल में अल्लाह के सामने जवाबदेही का डर पैदा करेगा, जो उन्हें गलत कामों से बचाएगा और अच्छे कामों के लिए प्रेरित करेगा।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह मुसलमानों को संकीर्ण बहसों और विवादों से निकालकर एक विशाल मैदान में ले जाती है, जहाँ असली जीत "अच्छाइयों" में दुनिया से आगे निकलने की है। यह इस्लाम की सार्वभौमिकता, सकारात्मकता और प्रगतिशीलता को दर्शाती है।