1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
كَمَا أَرْسَلْنَا فِيكُمْ رَسُولًا مِّنكُمْ يَتْلُو عَلَيْكُمْ آيَاتِنَا وَيُزَكِّيكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُم مَّا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
كَمَا: जैसे कि (Just as)
أَرْسَلْنَا: हमने भेजा (We have sent)
فِيكُمْ: तुम्हारे बीच (among you)
رَسُولًا: एक पैगंबर (a Messenger)
مِّنكُمْ: तुम्हीं में से (from among yourselves)
يَتْلُو: पढ़कर सुनाता है (recites)
عَلَيْكُمْ: तुम्हें (to you)
آيَاتِنَا: हमारी आयतें (Our verses)
وَيُزَكِّيكُمْ: और तुम्हें पवित्र करता है (and purifies you)
وَيُعَلِّمُكُمُ: और सिखाता है तुम्हें (and teaches you)
الْكِتَابَ: किताब (the Book)
وَالْحِكْمَةَ: और हिकमत (and the Wisdom)
وَيُعَلِّمُكُم: और सिखाता है तुम्हें (and teaches you)
مَّا لَمْ تَكُونُوا: जो तुम नहीं जानते थे (what you did not know)
تَعْلَمُونَ: जानते हो (know)
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन और उनकी भूमिका का एक संपूर्ण और सुंदर विवरण प्रस्तुत करती है। यह अल्लाह की उस महान नेमत (अनुग्रह) का वर्णन करती है जिसका जिक्र पिछली आयत (2:150) में "लिउतिम्मा नेमती" (ताकि मैं अपनी नेमत तुम पर पूरी कर दूं) कहकर किया गया था। पैगंबर का आना ही अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है।
आयत चार क्रमिक चरणों में पैगंबर के मिशन को समझाती है:
1. दिव्य ज्ञान का प्रसार (प्रचार): "तुम्हारे बीच तुम्हीं में से एक पैगंबर भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है।"
यह पैगंबर के मिशन का पहला और मौलिक चरण है। वह अल्लाह का संदेशवाहक है जो लोगों तक कुरआन की आयतों को पहुँचाता है। यहाँ "तुम्हीं में से" होना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि पैगंबर कोई पराया या फरिश्ता नहीं, बल्कि एक इंसान हैं, जो उन्हीं की भाषा बोलते हैं, उन्हीं की परिस्थितियों को समझते हैं, इसलिए लोग उनसे जुड़ सकते हैं और उनकी बात को आसानी से समझ सकते हैं।
2. आत्मिक शुद्धि (पवित्रिकरण): "और तुम्हें पवित्र करता है।"
मात्र ज्ञान देना ही पर्याप्त नहीं है। पैगंबर का दूसरा काम लोगों के दिलों और आत्माओं को शिर्क (अल्लाह के साथ साझी ठहराना), बुराईयों, गलत आदतों और नैतिक बुराइयों से साफ़ करना है। यह "तज़किया" की प्रक्रिया है जो इंसान को अंदर से बदल देती है और उसे अल्लाह के करीब ले जाती है।
3. किताब और हिकमत की शिक्षा (शिक्षण): "और तुम्हें किताब और हिकमत सिखाता है।"
यह तीसरा चरण है। "किताब" से मुख्य रूप से कुरआन का ज्ञान और "हिकमत" से तात्पर्य सुन्नत (पैगंबर के कथन और कर्म) और जीवन के गूढ़ रहस्यों और नियमों की समझ है। यह चरण व्यक्ति को यह सिखाता है कि दैनिक जीवन में इस्लाम के सिद्धांतों को कैसे लागू किया जाए।
4. अज्ञात ज्ञान का प्रदान (प्रबोधन): "और तुम्हें वह ज्ञान सिखाता है जो तुम नहीं जानते थे।"
यह चौथा और अंतिम चरण है जो मानव ज्ञान के दायरे का विस्तार करता है। पैगंबर के माध्यम से अल्लाह मानवजाति को वह ज्ञान प्रदान करता है जिसे वे अपनी बुद्धि और अनुभव से हासिल नहीं कर सकते थे। इसमें गायब (अदृश्य) की दुनिया, पुनर्जीवन, स्वर्ग-नरक, और जीवन के आध्यात्मिक एवं नैतिक सिद्धांत शामिल हैं।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
पैगंबर का सम्मान और पालन: पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत और मानवजाति के लिए पूर्ण मार्गदर्शक हैं। उनके बताए हुए मार्ग (कुरआन और सुन्नत) पर चलना हर मुसलमान का कर्तव्य है।
ज्ञान का संपूर्ण स्रोत: सच्चे और पूर्ण ज्ञान का स्रोत केवल अल्लाह की वही (कुरआन) और उसके पैगंबर की शिक्षाएँ (सुन्नत) हैं।
ज्ञान और अमल का संतुलन: इस आयत से स्पष्ट है कि इस्लाम सिर्फ किताबी ज्ञान या रीति-रिवाजों का नाम नहीं है। इसमें ज्ञान ("किताब"), आंतरिक शुद्धि ("तज़किया") और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता ("हिकमत") तीनों का संतुलन है।
सीखने की महत्ता: आयत में "सिखाना" शब्द तीन बार आया है, जो इस्लाम में ज्ञान और शिक्षा के महत्व को दर्शाता है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
इस आयत ने पैगंबर (सल्ल.) के सहाबा (साथियों) के लिए उनकी भूमिका और महानता को स्पष्ट किया। इसने उन्हें यह समझाया कि पैगंबर सिर्फ एक संदेशवाहक ही नहीं, बल्कि एक शिक्षक, पथ-प्रदर्शक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं।
इसने अरब के लोगों को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान और सभ्यता के शिखर पर पहुँचा दिया।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
पैगंबर के मार्ग का अनुसरण: आज जब इस्लाम के बारे में कई गलतफहमियाँ फैली हुई हैं, यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि पैगंबर की शिक्षाओं (कुरआन और सुन्नत) पर वापस लौटना ही एकमात्र रास्ता है। उनका जीवन हमारे लिए एक आदर्श उदाहरण है।
संपूर्ण शिक्षा प्रणाली: आधुनिक शिक्षा प्रणाली अक्सर नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा से रहित है। यह आयत एक संपूर्ण शिक्षा प्रणाली की ओर इशारा करती है जो ज्ञान, नैतिकता और आध्यात्मिकता का समन्वय करती है।
आंतरिक सुधार: आज के समय में, मुसलमानों के लिए सबसे जरूरी काम "तज़किया" (आत्मशुद्धि) है। बाहरी रीति-रिवाजों के साथ-साथ अपने दिलों को बुराइयों से साफ़ करना भी उतना ही जरूरी है।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक दुनिया कायम है, मानवजाति के लिए पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) का जीवन और शिक्षाएँ मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेंगी। भविष्य की हर समस्या का समाधान कुरआन और सुन्नत में मौजूद है।
प्रगति की कुंजी: मुस्लिम उम्मा की वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब वह "किताब" (ज्ञान-विज्ञान) और "हिकमत" (बुद्धिमत्ता) दोनों को अपनाएगी और "तज़किया" (नैतिक शुद्धता) पर ध्यान देगी।
आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए आशा का संदेश है कि अल्लाह ने हमें एक ऐसा मार्गदर्शक भेजा है जो हर प्रकार के ज्ञान और पवित्रता से हमें संपन्न कर सकता है।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन का एक संक्षिप्त लेकिन अत्यंत गहरा विवरण प्रस्तुत करती है। यह हमें बताती है कि पैगंबर सिर्फ एक सन्देशवाहक ही नहीं, बल्कि एक शिक्षक, पवित्र करने वाले और मानवजाति के लिए अल्लाह की सबसे बड़ी कृपा हैं। उनके मार्ग का अनुसरण करना ही दुनिया और आखिरत में सफलता की कुंजी है।