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क़ुरआन 2:152 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • فَاذْكُرُونِي: तो तुम मुझे याद करो (So remember Me)

  • أَذْكُرْكُمْ: मैं तुम्हें याद करूँगा (I will remember you)

  • وَاشْكُرُوا: और कृतज्ञता प्रकट करो (and be grateful)

  • لِي: मेरी (to Me)

  • وَلَا تَكْفُرُونِ: और मेरी कृतघ्नता न करो (and do not be ungrateful to Me)

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत बहुत ही संक्षिप्त है, लेकिन इसका अर्थ अत्यंत गहरा और व्यापक है। यह अल्लाह और बंदे के बीच एक पवित्र वादा और एक पूर्ण जीवन-दर्शन प्रस्तुत करती है। पिछली आयत (2:151) में अल्लाह ने पैगंबर के माध्यम से अपनी महान नेमत (अनुग्रह) का वर्णन किया था। इस आयत में वह बताता है कि उस नेमत के बदले में एक बंदे का अल्लाह के प्रति क्या कर्तव्य है।

यह आयत तीन भागों में बंटी हुई है:

1. द्विपक्षीय वादा (The Bilateral Promise): "फ़ज़कुरूनी अज़कुरकुम" - तो तुम मुझे याद करो, मैं तुम्हें याद करूँगा।
यह अल्लाह और बंदे के बीच एक पवित्र समझौता है।

  • बंदे का कर्तव्य (फ़ज़कुरूनी): "ज़िक्र" का अर्थ है याद करना। लेकिन इस्लाम में ज़िक्र एक व्यापक अवधारणा है। इसमें शामिल है:

    • जुबानी ज़िक्र: अल्लाह के नामों का जाप करना, तस्बीह पढ़ना, कुरआन पढ़ना।

    • दिली ज़िक्र: हर समय अल्लाह की उपस्थिति और निगरानी के भाव को दिल में जगाए रखना।

    • अमली ज़िक्र: अल्लाह के आदेशों के अनुसार अपना पूरा जीवन व्यतीत करना। हर अच्छा काम, चाहे वह नमाज़ हो या दूसरों की मदद करना, अल्लाह का ज़िक्र ही है।

  • अल्लाह का वादा (अज़कुरकुम): जब बंदा अल्लाह को याद करता है, तो अल्लाह भी उसे याद करता है। इसका मतलब है:

    • उसे अपनी रहमत और बरकत से नवाज़ना।

    • उसकी मुश्किलों में मदद करना।

    • उसके गुनाहों को माफ़ करना।

    • उसे कयामत के दिन शर्मिंदगी से बचाना।

2. कृतज्ञता का आदेश (The Command of Gratitude): "वशकुरू ली" - और मेरे प्रति कृतज्ञता दिखाओ।

  • "शुक्र" या कृतज्ञता का अर्थ है अल्लाह की दी हुई नेमतों को उसी के बताए हुए तरीके से इस्तेमाल करना।

  • अगर अल्लाह ने स्वास्थ्य दिया है, तो उसका इस्तेमाल उसकी इबादत और इंसानों की सेवा में करना शुक्र है।

  • अगर धन दिया है, तो उसमें से ज़कात और दान देना शुक्र है।

  • शुक्र सिर्फ जुबान से "अल्हम्दुलिल्लाह" कहने का नाम नहीं, बल्कि पूरे अस्तित्व से उसकी कृतज्ञता व्यक्त करना है।

3. कृतघ्नता से मनाही (The Prohibition of Ingratitude): "वला तकफुरून" - और मेरी कृतघ्नता न करो।

  • "कुफ्र" का मूल अर्थ है "ढंकना"। इस्लामी शब्दावली में इसके दो मुख्य अर्थ हैं:

    1. अल्लाह, उसके पैगंबर या उसकी आयतों का इनकार करना (अविश्वास)।

    2. अल्लाह की नेमतों की कद्र न करना और उन्हें नकारना (कृतघ्नता)।

  • यहाँ दूसरा अर्थ अधिक प्रासंगिक है। अल्लाह की नेमतों को उसकी मर्जी के खिलाफ इस्तेमाल करना, उनपर गर्व करना, यह समझना कि यह मेरी अपनी मेहनत का नतीजा है – यह सब "कुफ्र" (कृतघ्नता) की श्रेणी में आता है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. अल्लाह का सीधा और निजी रिश्ता: यह आयत हर इंसान को यह एहसास दिलाती है कि उसका अल्लाह के साथ एक सीधा और निजी रिश्ता है। अगर वह अल्लाह की ओर एक कदम बढ़ाता है, तो अल्लाह उसकी ओर दस कदम बढ़ाता है।

  2. ज़िक्र जीवन की चाबी है: एक मोमिन का जीवन ज़िक्र से ही सार्थक और शांतिपूर्ण होता है। ज़िक्र ही उसे गुनाहों से रोकता है और उसे हमेशा अल्लाह से जोड़े रखता है।

  3. शुक्र और सब्र: ईमान के दो पहिये हैं - शुक्र (कृतज्ञता) नेमत के समय और सब्र (धैर्य) मुसीबत के समय। शुक्र नेमतों को बढ़ाता है।

  4. कृतघ्नता सबसे बड़ा अत्याचार: इंसान की सबसे बड़ी गलती अल्लाह की नेमतों को भूल जाना और उनके लिए उसका शुक्र अदा न करना है। यही उसके लिए दुनिया और आखिरत में बर्बादी का कारण बनता है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • इस आयत ने पैगंबर (सल्ल.) और सहाबा के लिए हर परिस्थिति में अल्लाह पर भरोसा और उसका शुक्र अदा करने का मार्गदर्शन दिया। चाहे मुश्किलें आईं या सफलता मिली, उन्होंने हमेशा इस आयत को याद रखा।

    • इसने उनके दिलों में यह भावना पैदा की कि हर पल अल्लाह उनके साथ है और उन्हें देख रहा है।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • तनाव और अवसाद का इलाज: आज का इंसान भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद तनाव, चिंता और अवसाद से ग्रस्त है। इसकी एक बड़ी वजह अल्लाह को भूल जाना (ग़फलत) है। इस आयत का पालन (ज़िक्र और शुक्र) ही मानसिक शांति और आंतरिक सुकून का सबसे बड़ा स्रोत है।

    • भौतिकवाद के युग में: आज का युग भौतिकवाद का युग है। लोग हर सफलता को अपनी मेहनत का नतीजा मानते हैं और अल्लाह का शुक्र अदा करना भूल जाते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि हर नेमत का स्रोत अल्लाह है और उसका शुक्र अदा करना जरूरी है।

    • धार्मिक जीवन का सार: कई बार लोग धार्मिक रीति-रिवाजों में उलझ कर रह जाते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि धर्म का सार है "ज़िक्र-ए-इलाही" (अल्लाह को याद रखना) और "शुक्र-ए-नेमत" (उसकी नेमतों के प्रति कृतज्ञ रहना)।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक इंसान इस दुनिया में रहेगा, यह आयत उसके लिए शाश्वत मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी। यह हर पीढ़ी को यह सिखाती रहेगी कि जीवन का उद्देश्य अल्लाह को याद रखना और उसका शुक्रगिज़ार बनना है।

    • प्रौद्योगिकी और आध्यात्मिकता: भविष्य में प्रौद्योगिकी चाहे जितनी उन्नत हो जाए, इंसान की आध्यात्मिक जरूरतें बनी रहेंगी। यह आयत भविष्य के इंसान को बताएगी कि वास्तविक सुख और शांति का रहस्य अल्लाह के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करने में है।

    • आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए आशा का संदेश है। यह अल्लाह का वादा है कि अगर तुम उसे याद रखोगे, चाहे दुनिया कितनी भी कठिन हो जाए, वह तुम्हें कभी नहीं भूलेगा और तुम्हारी मदद के लिए हमेशा मौजूद रहेगा।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत अल्लाह और बंदे के बीच एक पवित्र वार्तालाप है। यह जीवन जीने का एक सरल लेकिन गहरा तरीका सिखाती है। यह हमें बताती है कि सफलता का मार्ग अल्लाह का ज़िक्र, उसकी नेमतों पर शुक्र और उसकी नाराज़गी से बचना है। यह आयत पूरे इस्लामी जीवन-दर्शन को समेटे हुए है।