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क़ुरआन 2:153 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • يَا أَيُّهَا: हे ...! (O ...!)

  • الَّذِينَ آمَنُوا: जो लोग ईमान लाए (those who believe)

  • اسْتَعِينُوا: मदद माँगो, सहारा लो (seek help)

  • بِالصَّبْرِ: सब्र (धैर्य) के साथ (with patience)

  • وَالصَّلَاةِ: और नमाज़ के साथ (and with prayer)

  • إِنَّ اللَّهَ: निश्चय ही अल्लाह (Indeed, Allah)

  • مَعَ: साथ है (is with)

  • الصَّابِرِينَ: सब्र करने वालों के (the patient ones)

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत एक नए विषय की शुरुआत करती है। पिछली आयतों में किब्ला के परिवर्तन और पैगंबर की नेमत का वर्णन था। अब अल्लाह मोमिनीन को उनकी आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करता है। यह आयत जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों और परीक्षाओं का सामना करने के लिए अल्लाह की ओर से दो शक्तिशाली हथियार प्रदान करती है।

पहला भाग: संबोधन और आदेश (The Address and Command)
अल्लाह संबोधन करता है: "हे ईमान वालो!" यह संबोधन हर मोमिन का ध्यान खींचता है कि अब जो आदेश दिया जा रहा है, वह सीधे उनसे और उनके जीवन से जुड़ा हुआ है।
फिर आता है आदेश: "सब्र और नमाज़ के सहारे मदद माँगो।"

  • सब्र (الصَّبْرِ): सब्र का अर्थ केवल "रुक जाना" या "सहन करना" नहीं है। यह एक सक्रिय और सकारात्मक गुण है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं:

    1. अल्लाह की इबादत पर डटे रहना, भले ही दिल नहीं भी लगे।

    2. गुनाहों और प्रलोभनों से खुद को रोकना।

    3. मुसीबतों और दुखों पर धैर्य रखना।

  • नमाज़ (الصَّلَاةِ): नमाज़ सिर्फ एक रस्म (ritual) नहीं है। यह अल्लाह के साथ सीधा संवाद (connection) है। यह मोमिन के लिए एक ऐसा स्रोत है जहाँ से वह आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक शांति और अंदरूनी ताकत हासिल करता है।

दूसरा भाग: अल्लाह का वादा (Allah's Promise)
आयत का दूसरा भाग एक शक्तिशाली आश्वासन के साथ समाप्त होता है: "निश्चय ही अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।"

  • यह केवल एक सुंदर वाक्य नहीं है; यह एक दिव्य वादा है।

  • "साथ होना" इसका मतलब है उनकी मदद करना, उन्हें मार्गदर्शन देना, उनकी कठिनाइयों को आसान करना और उन्हें अकेलापन महसूस नहीं होने देना।

  • यह वादा मोमिन के दिल में एक अद्भुत हौसला और दृढ़ता पैदा करता है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. जीवन संघर्ष का नाम है: इस्लाम यह नहीं सिखाता कि ईमान लाने के बाद जीवन में कोई मुश्किल नहीं आएगी। बल्कि, यह सिखाता है कि मुश्किलों का सामना कैसे किया जाए।

  2. सब्र और नमाज़ दो शक्तिशाली हथियार हैं: जीवन की हर चुनौती – चाहे वह व्यक्तिगत हो, सामाजिक हो या आर्थिक – का सामना करने के लिए ये दोनों हथियार सर्वोत्तम हैं।

  3. अल्लाह का साथ सबसे बड़ी कामयाबी है: अगर इंसान के पास दुनिया की हर चीज़ हो लेकिन अल्लाह का साथ न हो, तो वह असफल है। और अगर उसके पास कुछ भी न हो लेकिन अल्लाह का साथ हो, तो वह सबसे अमीर इंसान है।

  4. सब्र एक सक्रिय गुण है: सब्र करना पलायन नहीं है, बल्कि डटकर सामना करना है। यह हार न मानने की मानसिकता है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • यह आयत पैगंबर (सल्ल.) और सहाबा के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक थी। मक्का की यातनाएँ, हिजरत की कठिनाइयाँ, ग़ज़वात (युद्ध) का डर – इन सबका सामना करने के लिए यह आयत उनके लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत और ताकत का स्रोत थी।

    • इस आयत ने उन्हें यह हौसला दिया कि चाहे हालात कितने भी खराब क्यों न हों, अगर वे सब्र और नमाज़ को पकड़े रहेंगे तो अल्लाह उनके साथ है और अंत में जीत उन्हीं की होगी।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • व्यक्तिगत संकट: आज का इंसान तनाव, चिंता, अवसाद, बीमारी, आर्थिक मुश्किलों और रिश्तों के संकट से जूझ रहा है। इस आयत का पालन (सब्र और नमाज़) इन सभी समस्याओं का एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करता है। नमाज़ मानसिक शांति देती है और सब्र हिम्मत।

    • सामुदायिक चुनौतियाँ: मुस्लिम समुदाय आज दुनिया भर में अनेक चुनौतियों (भेदभाव, इस्लामोफोबिया, युद्ध) का सामना कर रहा है। इस स्थिति में, हिंसा या निराशा में डूबने के बजाय, सामूहिक रूप से सब्र और नमाज़ का सहारा लेना ही सबसे बुद्धिमानी की बात है।

    • धार्मिक प्रतिबद्धता: एक आधुनिक मुसलमान के लिए, अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखना एक चुनौती है। इसके लिए सब्र (लोगों की टिप्पणियों और प्रलोभनों पर धैर्य) और नमाज़ (अल्लाह से जुड़े रहना) ही उसका सबसे बड़ा सहारा है।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • शाश्वत उपाय: मानव जीवन जितना भी आधुनिक हो जाए, उसकी मूलभूत चुनौतियाँ (दुःख, मृत्यु, असफलता) कभी खत्म नहीं होंगी। इसलिए, "सब्र और नमाज़" का सिद्धांत कयामत तक हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक रहेगा।

    • प्रौद्योगिकी और आध्यात्मिकता: भविष्य की दुनिया और भी अधिक तेज़ और जटिल होगी। ऐसे में, नमाज़ एक ऐसा ब्रेक (विराम) होगी जो इंसान को भौतिकवाद के चक्रव्यूह से निकालकर अल्लाह से जोड़ेगी और सब्र उसे डिजिटल दुनिया की अशांति में संतुलन बनाए रखना सिखाएगा।

    • आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह आश्वासन देती रहेगी कि कोई फर्क नहीं पड़ता कि हालात कितने खराब हैं, अगर तुम सब्र करोगे और नमाज़ के द्वारा अल्लाह से जुड़े रहोगे, तो तुम अकेले नहीं हो। अल्लाह तुम्हारे साथ है और उसका साथ ही सच्ची सफलता है।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत हर मोमिन के लिए एक व्यावहारिक जीवन-मंत्र है। यह निराशा के अंधकार में आशा की किरण, कमजोरी में ताकत और अकेलेपन में साथ का एहसास दिलाती है। यह सिखाती है कि ईमान की राह में चलने वाले के पास अल्लाह का दिया हुआ दो अजेय हथियार हमेशा मौजूद हैं – सब्र और नमाज़।