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क़ुरआन 2:154 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ يُقْتَلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتٌ ۚ بَلْ أَحْيَاءٌ وَلَٰكِنْ لَا تَشْعُرُونَ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • وَلَا تَقُولُوا: और तुम मत कहो (and do not say)

  • لِمَنْ: उसके लिए जिसे (about the one who)

  • يُقْتَلُ: मार दिया जाता है (is killed)

  • فِي سَبِيلِ اللَّهِ: अल्लाह की राह में (in the way of Allah)

  • أَمْوَاتٌ: मुर्दे हैं (they are dead)

  • بَلْ: बल्कि (rather)

  • أَحْيَاءٌ: जिंदा हैं (they are alive)

  • وَلَٰكِنْ: लेकिन (but)

  • لَا تَشْعُرُونَ: तुम महसूस नहीं करते (you do not perceive)

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों के क्रम में आती है जहाँ अल्लाह ने मोमिनीन को सब्र और नमाज़ का सहारा लेने का आदेश दिया था। अब वह उस सबसे बड़ी परीक्षा की ओर संकेत करता है जिसमें सबसे ऊँचे दर्जे का सब्र चाहिए – अल्लाह की राह में शहादत (शहीद होना)।

इस आयत का संदर्भ इस्लाम के प्रारंभिक दौर का है जब मुसलमानों को कुफ्फार-ए-मक्का के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ रही थी। ऐसे में, लोग यह सोच सकते थे कि जो लोग मारे गए, वह सब कुछ खोकर चले गए।

इसी सोच को दूर करने के लिए अल्लाह यह आयत नाज़िल करता है:

"और तुम उन लोगों के बारे में मत कहो जो अल्लाह की राह में मारे जाते हैं कि वे मुर्दे हैं। बल्कि वह जिंदा हैं, लेकिन तुम्हें (उनकी इस ज़िंदगी का) एहसास नहीं होता।"

इस आयत में दो महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं:

  1. निषेध (मना करना): "उन्हें मुर्दा मत कहो।" यह एक स्पष्ट आदेश है कि शहीदों की स्थिति को सामान्य मौत नहीं समझना चाहिए। यह एक गलत धारणा और कमजोर ईमान की निशानी है।

  2. सत्य का प्रकटीकरण: "बल्कि वह जिंदा हैं।" अल्लाह स्पष्ट करता है कि शहीदों की मौत साधारण मौत नहीं है। वह एक ऐसा पद है जहाँ इंसान को मौत के बाद की ज़िंदगी (आखिरत) का अनुभव होने से पहले ही एक विशेष जीवन प्रदान किया जाता है। हदीसों में इस जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है:

    • उनकी रूहें हरे रंग के पक्षियों के शरीर में जन्नत में आज़ाद घूमती हैं।

    • उन्हें अल्लाह के अर्श के नीचे एक विशेष स्थान प्राप्त होता है।

    • उन्हें जन्नत के सभी ऐश्वर्यों का आनंद मिलता है, सिवाय एक चीज़ के – वह अपने रब से मिलने की इच्छा रखते हैं, जिसे कयामत के बाद पूरा किया जाएगा।

  3. सीमा बताना: "लेकिन तुम्हें एहसास नहीं होता।" यह हमारी सीमा बताता है। हम अपनी भौतिक इंद्रियों से उनके इस जीवन को नहीं देख या महसूस नहीं कर सकते। यह ग़ैब (अदृश्य) की दुनिया का मामला है, जिस पर ईमान लाना हर मोमिन का कर्तव्य है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. शहादत का ऊँचा दर्जा: शहीद का दर्जा अल्लाह के नज़दीक बहुत ऊँचा है। शहादत ईमान की पराकाष्ठा और अल्लाह की राह में सबसे बड़ी कुर्बानी है।

  2. मृत्यु का वास्तविक दृष्टिकोण: इस्लाम मृत्यु को अंत नहीं मानता, बल्कि एक दुनिया से दूसरी दुनिया में स्थानांतरण मानता है। शहीद के लिए तो यह स्थानांतरण और भी शानदार है।

  3. ईमान बिल-ग़ैब (अदृश्य पर विश्वास): एक मोमिन को उन सभी बातों पर विश्वास करना चाहिए जिन्हें अल्लाह और उसके रसूल ने बताया है, भले ही वह उसकी समझ में न आए। शहीदों का जीवन भी इसी में शामिल है।

  4. हौसला और प्रेरणा: यह आयत मोमिनीन के दिलों में जिहाद और संघर्ष के लिए एक अद्भुत हौसला और प्रेरणा भरती है। यह बताती है कि अल्लाह की राह में कुर्बान होने वाला व्यक्ति हारा हुआ नहीं, बल्कि सच्चे अर्थों में जीतने वाला है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • इस आयत ने पैगंबर (सल्ल.) के सहाबा को बद्र, उहुद जैसे युद्धों में अपने साथियों के शहीद होने पर अत्यधिक दुख की स्थिति में अद्भुत सांत्वना और हिम्मत दी।

    • इसने उनके ईमान को मजबूत किया और उन्हें यह समझाया कि उनके साथी मारे नहीं गए बल्कि एक बेहतर जीवन पा गए हैं। इसने उनके जज़्बात को कमज़ोर होने से बचाया।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • शहीदों के परिवारों के लिए सांत्वना: आज दुनिया के कई हिस्सों (फिलिस्तीन, कश्मीर, म्यांमार, आदि) में मुसलमान अल्लाह की राह में शहीद हो रहे हैं। यह आयत उनके परिवार वालों और पूरे समुदाय के लिए एक ढाढस और सब्र का स्रोत है। यह उन्हें बताती है कि उनका अपना खोया नहीं, बल्कि एक शानदार जीवन जी रहा है।

    • आत्मिक संघर्ष (जिहाद-ए-नफ्स): "अल्लाह की राह" का दायरा बहुत व्यापक है। इसमें वह व्यक्ति भी शामिल है जो अपनी बुरी इच्छाओं और शैतान के खिलाफ जिहाद (संघर्ष) करते हुए मर जाता है। वह भी शहीद का दर्जा पा सकता है। यह आयत हर उस मोमिन के लिए प्रेरणा है जो अपने अंदर की बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है।

    • भौतिकवादी सोच का खंडन: आज का युग भौतिकवाद का युग है, जहाँ मृत्यु को अंत माना जाता है। यह आयत इस सोच का सीधा खंडन करती है और आध्यात्मिक वास्तविकता की याद दिलाती है।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • शाश्वत सत्य: जब तक दुनिया में संघर्ष और बलिदान होते रहेंगे, यह आयत हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि सत्य के मार्ग में दिया गया बलिदान कभी बेकार नहीं जाता।

    • प्रेरणा का स्रोत: भविष्य में जब भी इस्लाम और मुसलमानों पर कोई संकट आएगा, यह आयत मोमिनीन के दिलों में यह हिम्मत भरती रहेगी कि अल्लाह की राह में कुर्बानी देने वाला व्यक्ति हारता नहीं, बल्कि शहीद के रूप में अमर हो जाता है।

    • आखिरत पर विश्वास को मजबूत करना: यह आयत कयामत तक आने वाले हर मोमिन के ईमान को मजबूत करेगी कि मृत्यु के बाद का जीवन एक सच्चाई है और शहीद इसका एक जीवंत प्रमाण है।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत मृत्यु और जीवन के प्रति इस्लाम के दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है। यह निराशा के समय में आशा, और हार के समय में जीत का संदेश देती है। यह हर मोमिन के दिल में यह विश्वास पैदा करती है कि अल्लाह की राह में दिया गया बलिदान सर्वोत्तम निवेश है, जिसका प्रतिफल न केवल जन्नत है बल्कि अल्लाह के यहाँ एक विशेष, जीवित स्थिति भी है।