1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِنَ الْخَوْفِ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِنَ الْأَمْوَالِ وَالْأَنْفُسِ وَالثَّمَرَاتِ ۗ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
- وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ: और हम अवश्य परखेंगे तुम्हें (And We will surely test you) 
- بِشَيْءٍ: कुछ चीज़ों से (with something) 
- مِنَ الْخَوْفِ: डर में से (of fear) 
- وَالْجُوعِ: और भूख (and hunger) 
- وَنَقْصٍ: और कमी (and loss) 
- مِنَ الْأَمْوَالِ: मालों में से (of wealth) 
- وَالْأَنْفُسِ: और जानों में से (and lives) 
- وَالثَّمَرَاتِ: और फलों में से (and fruits/produce) 
- وَبَشِّر: और (आप) खुशखबरी सुना दीजिए (and give glad tidings) 
- الصَّابِرِينَ: सब्र करने वालों को (to the patient ones) 
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत सीधे तौर पर पिछली दो आयतों (153 और 154) से जुड़ी हुई है। आयत 153 में अल्लाह ने सब्र और नमाज़ से मदद माँगने का आदेश दिया था। आयत 154 में शहादत के बाद जीवन की सच्चाई बताई थी। अब इस आयत में अल्लाह स्पष्ट करता है कि परीक्षा (इब्तिला) तो इस जीवन का एक निश्चित नियम है, और उसने विस्तार से बताया कि ये परीक्षाएँ किस रूप में आ सकती हैं।
पहला भाग: परीक्षा का सिद्धांत (The Principle of Trial)
आयत की शुरुआत एक बहुत ही दृढ़ और स्पष्ट वाक्य से होती है: "और हम अवश्य ही तुम्हें परखेंगे..."
'लनबलुवन्नकुम' में 'ला' और 'नुन' की शक्ति के कारण यह एक पक्के वादे और सुनिश्चित नियम जैसा लगता है। अल्लाह यहाँ कोई शक-शुबहा नहीं छोड़ता। हर इंसान, खासकर हर मोमिन, को इस दुनिया में अवश्य परखा जाएगा। यह जीवन की एक अनिवार्य सच्चाई है।
दूसरा भाग: परीक्षाओं के प्रकार (The Types of Trials)
फिर अल्लाह पाँच प्रकार की परीक्षाओं का उल्लेख करता है जो मोमिन के जीवन में आती हैं:
- डर (الْخَوْفِ): यह सुरक्षा का डर हो सकता है – युद्ध, दुश्मन का भय, आतंक। यह आर्थिक या भविष्य का डर भी हो सकता है। 
- भूख (وَالْجُوعِ): यह आर्थिक तंगी, अकाल, या व्यक्तिगत कठिनाई के कारण खाने-पीने की कमी हो सकती है। यह शरीर और इमान की परीक्षा है। 
- माल की कमी (وَنَقْصٍ مِنَ الْأَمْوَالِ): व्यापार में घाटा, नौकरी जाना, चोरी, या कोई अन्य आर्थिक नुकसान। धन एक बड़ी परीक्षा है। 
- जानों की कमी (وَالْأَنْفُسِ): यह प्रियजनों की मृत्यु, बीमारी, या अल्लाह की राह में शहादत के रूप में आती है। यह सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। 
- फसल/उपज की कमी (وَالثَّمَرَاتِ): यह किसानों के लिए फसल का नष्ट होना, व्यापारियों के लिए माल का बर्बाद होना, या सामान्य तौर पर रोज़ी-रोटी के साधनों में कमी आना है। यह आज के संदर्भ में किसी भी प्रकार की आय के स्रोत के नुकसान के रूप में देखा जा सकता है। 
तीसरा भाग: खुशखबरी का आदेश (The Command of Glad Tidings)
इन सभी कठिन परीक्षाओं का वर्णन करने के बाद, आयत का अंत एक बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक आदेश के साथ होता है: "और (हे पैगंबर) आप सब्र करने वालों को खुशखबरी सुना दीजिए।"
यह 'बशारत' (शुभ सूचना) है। यह बताता है कि इन परीक्षाओं में जो लोग सब्र करते हैं, उनके लिए अल्लाह के पास बहुत बड़ा इनाम है – उसकी रहमत, माफी, जन्नत और उसकी खुशनूदी। सब्र करने वाला हारता नहीं, बल्कि वही सच्चा विजेता है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
- परीक्षा जीवन का हिस्सा है: मुसीबतों और कठिनाइयों को देखकर यह नहीं सोचना चाहिए कि अल्लाह नाराज़ है। बल्कि, यह तो ईमान की परख का तरीका है। 
- सब्र ही मार्ग है: हर प्रकार की मुसीबत का एकमात्र समाधान सब्र है, जैसा कि आयत 153 में बताया गया था। घबराना, हताश होना या शिकायत करना समस्या का हल नहीं है। 
- विश्वास रखो कि अच्छा ही होगा: एक मोमिन को हमेशा यह विश्वास रखना चाहिए कि हर मुसीबत के पीछे अल्लाह की कोई हिकमत (बुद्धिमत्ता) है और उसका अंत भलाई में ही होगा। 
- खुशखबरी पर ध्यान केंद्रित करो: अल्लाह ने मुसीबतों का वर्णन करने के बाद सीधे सब्र करने वालों को खुशखबरी सुनाने का आदेश दिया। इसका मतलब है कि हमारा फोकस मुसीबत पर नहीं, बल्कि उसके बाद मिलने वाले इनाम और खुशखबरी पर होना चाहिए। 
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
- अतीत (Past) में प्रासंगिकता: - यह आयत मक्का और मदीना के मुसलमानों के लिए सीधे प्रासंगिक थी। उन्होंने मक्का में डर (कुफ्फार का अत्याचार), भूख (बहिष्कार) और माल की कमी (हिजरत में सब कुछ छोड़ना) का सामना किया। 
- इस आयत ने उन्हें पहले से ही आगाह कर दिया था कि तुम्हारी परीक्षा ली जाएगी, इसलिए तैयार रहो और सब्र से काम लो। 
 
- वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता: - व्यक्तिगत जीवन: आज हर इंसान इनमें से किसी न किसी परीक्षा से गुज़र रहा है – बीमारी का डर, महंगाई से भूख और आर्थिक तंगी, नौकरी जाने या व्यापार घाटे से माल की कमी, कोविड जैसी महामारी में प्रियजनों को खोने का दुख (जानों की कमी)। यह आयत हर मोमिन को बताती है कि यह एक परीक्षा है और सब्र ही इसकी कुंजी है। 
- सामुदायिक स्तर पर: मुस्लिम समुदाय दुनिया भर में युद्ध, अत्याचार और आर्थिक पिछड़ेपन की परीक्षा से गुज़र रहा है। यह आयत उन्हें हिम्मत और एकजुटता के साथ सब्र करने की प्रेरणा देती है। 
- आधुनिक चुनौतियाँ: 'थमरात' (फल) की कमी को आज के संदर्भ में निवेश का घाटा, स्टॉक मार्केट का गिरना, या किसी प्रोजेक्ट की विफलता के रूप में देखा जा सकता है। 
 
- भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता: - शाश्वत नियम: जब तक दुनिया कायम है, इंसान इन्हीं पाँच प्रकार की परीक्षाओं से दो-चार होता रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में काम करेगी। 
- प्रेरणा और आश्वासन: भविष्य की और भी जटिल चुनौतियों (जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट, नए युद्ध) में, यह आयत मोमिन को यह याद दिलाती रहेगी कि यह सब एक परीक्षा है और सब्र करने वालों के लिए अल्लाह की ओर से एक शानदार इनाम तैयार है। 
- मानसिक स्वास्थ्य: भविष्य में तनाव और चिंता जैसी समस्याएँ बढ़ेंगी। इस आयत में निहित संदेश – कि कठिनाइयाँ एक परीक्षा हैं और सब्र का फल बहुत अच्छा है – मानसिक शांति और लचीलापन (Resilience) विकसित करने में मदद करेगा। 
 
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत जीवन की एक कठोर लेकिन निर्विवाद सच्चाई को स्वीकार कराती है और फिर उससे निपटने का एक व्यावहारिक और आशावादी तरीका सुझाती है। यह हमें सिखाती है कि मुसीबतों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें अल्लाह की तरफ से एक परीक्षा समझकर सब्र और दृढ़ता के साथ उसका सामना करना चाहिए, क्योंकि सब्र का अंत बहुत ही खूबसूरत है।