1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
الَّذِينَ: जो लोग (Those who)
إِذَا: जब (When)
أَصَابَتْهُم: उन्हें पहुँचती है (befalls them)
مُّصِيبَةٌ: कोई मुसीबत (a calamity)
قَالُوا: कहते हैं (they say)
إِنَّا: निश्चय ही हम (Indeed, we)
لِلَّهِ: अल्लाह के लिए हैं (belong to Allah)
وَإِنَّا: और निश्चय ही हम (and indeed, we)
إِلَيْهِ: उसी की ओर (to Him)
رَاجِعُونَ: लौटने वाले हैं (will return)
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत सीधे तौर पर पिछली आयत 2:155 से जुड़ी हुई है, जहाँ अल्लाह ने विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का वर्णन किया था और सब्र करने वालों को खुशखबरी सुनाने का आदेश दिया था। अब यह आयत बताती है कि वे "सब्र करने वाले" (अस-साबिरीन) कौन हैं और मुसीबत के समय उनका व्यवहार क्या होता है।
यह आयत उन लोगों की पहचान बताती है: "जो लोग, जब उन्हें कोई मुसीबत पहुँचती है, तो कहते हैं: 'निश्चय ही हम अल्लाह के लिए हैं और निश्चय ही हम उसी की ओर लौटने वाले हैं।'"
यह वाक्य, जिसे "इस्तिरजा" (इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन) कहा जाता है, सिर्फ एक दुआ या सहनशीलता का वाक्य नहीं है। यह एक पूर्ण इस्लामी दर्शन और जीवन का सिद्धांत है, जिसके दो मूलभूत सत्य हैं:
1. पहला सत्य: "इन्ना लिल्लाह" - निश्चय ही हम अल्लाह के लिए हैं।
इसका अर्थ है कि हमारा अस्तित्व, हमारी जान, हमारा माल, हमारे प्रियजन – वास्तव में कुछ भी हमारा अपना नहीं है। सब कुछ अल्लाह की अमानत (एक trust) है।
जब कोई मुसीबत आती है, तो यह एहसास होता है कि अल्लाह ने अपनी अमानत वापस ले ली। मालिक अपनी चीज़ वापस ले रहा है, तो नौकर (बंदा) को किस बात का विरोध या शिकायत हो सकती है?
यह बात इंसान के दिल से मालिकी के गर्व और अधिकार के भाव को समाप्त कर देती है।
2. दूसरा सत्य: "व इन्ना इलैहि राजिऊन" - और निश्चय ही हम उसी की ओर लौटने वाले हैं।
इसका अर्थ है कि यह दुनिया की जिंदगी अंतिम नहीं है। हम सभी की यात्रा का अंत बिंदु अल्लाह के पास ही है।
मुसीबत चाहे जान की हो, माल की हो या किसी और चीज़ की, यह एक अस्थायी घटना है। अंतिम फैसला और सच्चा इनाम-दंड तो आखिरत (परलोक) में मिलेगा।
यह बात इंसान को दुनिया की क्षणिक कठिनाइयों और नुकसानों से ऊपर उठाकर एक शाश्वत और बेहतर जीवन की आशा देती है।
इस प्रकार, यह छोटा सा वाक्य मुसीबत के समय इंसान के दिल और दिमाग में एक क्रांति ला देता है। यह उसे शिकायत और निराशा के बजाय, समर्पण, स्वीकृति और आशा की ओर ले जाता है। यही सच्चा सब्र है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
सब्र की वास्तविक परिभाषा: सच्चा सब्र मुसीबत के समय धैर्य रखने के साथ-साथ, जुबान से अल्लाह को याद करना और दिल से यह स्वीकार करना है कि हमारा सब कुछ अल्लाह का है।
जीवन दर्शन का सार: यह आयत इस्लामी जीवन दर्शन को संक्षेप में प्रस्तुत करती है – अल्लाह की स्वामित्व में विश्वास और आखिरत पर दृढ़ ईमान।
मानसिक शांति का रहस्य: मुसीबत के समय "इन्ना लिल्लाह..." पढ़ना अल्लाह की याद में डूब जाना है, जो सबसे बड़ी मानसिक शांति और सांत्वना का स्रोत है।
शिकायत का अंत: यह दुआ इंसान की जुबान को शिकायत, गिला-शिकवा और असंतोष से बचाती है और उसे अल्लाह की प्रशंसा और उसकी मर्जी के आगे समर्पण की ओर मोड़ देती है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
पैगंबर (सल्ल.) और सहाबा ने हर कठिन घड़ी में इसी दुआ को अपना सहारा बनाया। चाहे वह पैगंबर की प्यारी पत्नी हज़रत खदीजा (र.ज़ि.) और चाचा अबू तालिब का साया सिर से उठना हो, या युद्ध में साथियों का शहीद होना। इस दुआ ने उन्हें टूटने नहीं दिया।
यह उनके लिए केवल शब्द नहीं, बल्कि एक जीवंत आस्था और जीवन शैली थी।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
व्यक्तिगत संकट: आज जब कोई व्यक्ति किसी प्रियजन को खोता है, बीमारी का सामना करता है, नौकरी या व्यापार में नुकसान उठाता है, तो "इन्ना लिल्लाह..." का पाठ उसके लिए सबसे बड़ी सांत्वना और हिम्मत का स्रोत है। यह उसे मानसिक रूप से संतुलित रखता है।
सामूहिक त्रासदियाँ: भूकंप, बाढ़, महामारी (जैसे कोविड-19) या युद्ध जैसी सामूहिक मुसीबतों में, यह दुआ पूरे मुस्लिम समुदाय को एकजुट करती है और उन्हें यह याद दिलाती है कि उनकी ताकत का स्रोत अल्लाह पर भरोसा और उसकी मर्जी के आगे समर्पण है।
आधुनिक तनाव और चिंता: आज के तनावपूर्ण युग में, यह आयत एक थेरेपी (चिकित्सा) की तरह है। यह इंसान को भौतिक नुकसानों से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक शांति की ओर ले जाती है।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत समाधान: जब तक इंसान इस दुनिया में रहेगा, उसे मुसीबतों और नुकसान का सामना करना पड़ेगा। यह आयत और यह दुआ कयामत तक हर पीढ़ी के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शन और मानसिक सहारा बनी रहेगी।
प्रौद्योगिकी और आध्यात्मिकता: भविष्य में प्रौद्योगिकी चाहे जितनी उन्नत हो जाए, यह इंसान के दिल के दर्द और मौत के सदमे को दूर नहीं कर सकती। इसकी एकमात्र दवा यही आध्यात्मिक दृष्टिकोण है।
आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह संदेश देती रहेगी कि हर मुसीबत का अंत अल्लाह की ओर लौटने में है, और वह लौटना कोई डरावना नहीं, बल्कि अपने असली मालिक और घर की ओर वापसी है, जहाँ अनंत काल का सुख और शांति है।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक दुआ नहीं है; यह जीवन का एक दर्शन है। यह इंसान को उसकी वास्तविक हैसियत (अल्लाह का बंदा) और उसके अंतिम लक्ष्य (अल्लाह की ओर लौटना) का एहसास कराती है। यह मुसीबत के समय हताशा और निराशा के अंधकार में आशा और समर्पण का दीपक जलाती है। यह सिखाती है कि सच्चा सब्र वह है जो इंसान को अल्लाह के करीब ले जाए, न कि उससे दूर।