1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
أُولَٰئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
أُولَٰئِكَ: वे लोग (Those are the ones)
عَلَيْهِمْ: उन पर (upon them)
صَلَوَاتٌ: दुरूदें, आशीर्वाद (blessings)
مِنْ رَبِّهِمْ: उनके पालनहार की ओर से (from their Lord)
وَرَحْمَةٌ: और दया (and mercy)
وَأُولَٰئِكَ: और वे ही लोग (and those are)
هُمُ: वही (they)
الْمُهْتَدُونَ: सीधे मार्ग पर चलने वाले (the guided ones)
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली दो आयतों (155 और 156) का सुंदर और पूरा परिणाम बताती है। आयत 155 में अल्लाह ने परीक्षा की घोषणा की, आयत 156 में सब्र करने वालों की पहचान बताई (जो "इन्ना लिल्लाह..." कहते हैं), और अब इस आयत 157 में वह उन सब्र करने वालों के लिए अल्लाह की ओर से तीन बड़े इनामों की घोषणा करता है।
यह आयत उन लोगों के बारे में है: "ऐसे लोगों पर उनके पालनहार की ओर से दुरूदें (आशीर्वाद) और दया है, और वे ही लोग सीधे मार्ग पर हैं।"
यहाँ उन सब्र करने वालों के लिए तीन इनाम बताए गए हैं:
1. पहला इनाम: "सलवात" (दुरूदें/आशीर्वाद)
"सलवात" (बहुवचन) का अर्थ है दुरूद, रहमत, आशीर्वाद और प्रशंसा।
इसका सबसे ऊँचा अर्थ यह है कि अल्लाह स्वयं अपने फरिश्तों के सामने उन सब्र करने वालों की प्रशंसा और तारीफ करता है। वह फरमाता है, "मेरे ये बंदे देखो, जिन्होंने मेरी परीक्षा में सब्र किया और मेरी मर्जी पर राजी रहे।"
यह एक ऐसा सम्मान है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। अल्लाह की तरफ से यह प्रशंसा ही सबसे बड़ा इनाम है।
2. दूसरा इनाम: "रहमत" (दया)
यह अल्लाह की विशेष दया और कृपा है जो उसके बंदे पर हर समय बरसती है।
इस रहमत में शामिल है:
दुनिया में उसकी मुश्किलों को आसान करना।
उसके गुनाहों को माफ करना।
कयामत के दिन उस पर दया करना और उसे जन्नत में दाखिल करना।
यह रहमत एक सुरक्षा कवच की तरह है जो बंदे को हर तरह की बुराई से बचाती है।
3. तीसरा इनाम: "हिदायत" (मार्गदर्शन)
"और वे ही लोग सीधे मार्ग पर हैं।"
यह सबसे बड़ा इनाम है। सब्र करने वालों को अल्लाह की ओर से एक विशेष मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
इसका मतलब यह है कि अल्लाह उनके दिल को सत्य के प्रति और अधिक खोल देता है, उन्हें गलत और सही की पहचान करने की विशेष समझ देता है, और उनके कदमों को हमेशा सीधे रास्ते पर चलाता है।
यह हिदायत उन्हें भटकने से बचाती है और उन्हें हर मुसीबत में सही फैसला लेने की ताकत देती है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
सब्र का फल बेहतरीन है: अल्लाह सब्र का फल सिर्फ जन्नत ही नहीं, बल्कि दुनिया में ही अपनी खास रहमत और मार्गदर्शन से देता है।
अल्लाह की नजर में मूल्य: एक इंसान की अल्लाह के नजदीक कीमत उसके धन या हैसियत से नहीं, बल्कि मुसीबत के समय उसके सब्र और उसकी जुबान से निकलने वाले शब्दों से आंकी जाती है।
हिदायत की कीमत: दुनिया की हर नेमत से बढ़कर अल्लाह का मार्गदर्शन है। सब्र करने वालों को यह अनमोल चीज आसानी से मिल जाती है।
आशावादी दृष्टिकोण: यह आयत हमें सिखाती है कि मुसीबत का सामना करने के बाद इंसान के लिए इतने बड़े इनाम तैयार हैं कि मुसीबत उसके सामने छोटी पड़ जाती है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
इस आयत ने पैगंबर (सल्ल.) और सहाबा को उनकी सभी कठिनाइयों (यातनाएँ, हिजरत, युद्ध) में एक अद्भुत हौसला और आश्वासन दिया। यह जानकर कि अल्लाह उन पर अपनी रहमत और दुरूदें भेज रहा है, उनका सब्र और भी मजबूत हो गया।
यह आयत उनके लिए एक वादा थी कि तुम्हारा संघर्ष व्यर्थ नहीं जाएगा और तुम्हें सच्ची हिदायत प्राप्त होगी।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
व्यक्तिगत संकट में सांत्वना: आज जब कोई व्यक्ति बीमारी, आर्थिक नुकसान, या रिश्तों की समस्या में सब्र करता है और "इन्ना लिल्लाह..." पढ़ता है, तो यह आयत उसे याद दिलाती है कि उस पर अल्लाह की खास रहमत और आशीर्वाद उतर रहे हैं। यह उसे आंतरिक शक्ति देता है।
हिदायत की तलाश: आज का मुसलमान अक्सर भ्रम और गलत सूचनाओं से घिरा रहता है। यह आयत उसे बताती है कि सब्र और अल्लाह पर भरोसा ही उसे सच्ची हिदायत (मार्गदर्शन) तक पहुँचा सकता है।
प्रेरणा का स्रोत: सामुदायिक उत्पीड़न या प्राकृतिक आपदाओं के समय, यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि उनका सब्र उन्हें अल्लाह के विशेष इनामों का हकदार बना रहा है।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत प्रतिज्ञा: यह आयत कयामत तक आने वाले हर मोमिन के लिए अल्लाह का एक वादा है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि भविष्य की चुनौतियाँ कितनी भयानक हों, जो कोई भी सब्र के साथ "इन्ना लिल्लाह..." कहेगा, उस पर ये तीनों इनाम (दुरूद, रहमत, हिदायत) अवश्य उतरेंगे।
आशा का संदेश: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को आशा देती रहेगी कि हर मुसीबत के पीछे अल्लाह की ओर से एक शानदार इनाम छिपा है। यह इंसान को निराशा में डूबने से बचाएगी।
मार्गदर्शन की गारंटी: एक ऐसे भविष्य में जहाँ दुनिया और भी भ्रमित करने वाली होगी, यह आयत उन लोगों के लिए मार्गदर्शन की गारंटी है जो अल्लाह पर भरोसा करते हैं और उसकी मर्जी पर सब्र करते हैं।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत सब्र करने वालों के लिए अल्लाह की ओर से एक पूर्ण "पुरस्कार योजना" की घोषणा है। यह सिखाती है कि मुसीबत में सब्र और "इन्ना लिल्लाह..." का वाक्य सिर्फ एक सहनशीलता का उपाय नहीं है, बल्कि अल्लाह की प्रशंसा, उसकी असीम दया और शाश्वत मार्गदर्शन प्राप्त करने का एक शानदार तरीका है। यह आयत हर मोमिन के दिल में यह विश्वास पैदा करती है कि उसका सब्र कभी व्यर्थ नहीं जाएगा।