1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
إِنَّ: निश्चय ही (Indeed)
الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ: सफा और मरवा (As-Safa and Al-Marwah)
مِن شَعَائِرِ اللَّهِ: अल्लाह की निशानियों में से हैं (are among the symbols of Allah)
فَمَنْ: तो जिसने (So whoever)
حَجَّ: हज किया (performs Hajj)
الْبَيْتَ: घर (काबा) का (to the House)
أَوِ: या (or)
اعْتَمَر: उमरा किया (performs Umrah)
فَلَا جُنَاحَ: तो कोई गुनाह नहीं (then there is no sin)
عَلَيْهِ: उस पर (upon him)
أَن يَطَّوَّفَ: कि वह तवाफ करे (to perform Tawaf)
بِهِمَا: उन दोनों (Safa & Marwah) का
وَمَن: और जो कोई (And whoever)
تَطَوَّعَ: स्वेच्छा से अतिरिक्त करे (volunteers willingly)
خَيْرًا: भलाई (good)
فَإِنَّ اللَّهَ: तो निश्चय ही अल्लाह (then indeed, Allah)
شَاكِرٌ: कृतज्ञ है, कद्र करने वाला है (is Appreciative)
عَلِيمٌ: जानने वाला है (is All-Knowing)
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत हज और उमरा के एक महत्वपूर्ण रिवाज – सई (सफा और मरवा के बीच दौड़ना) – के बारे में एक मौलिक और ऐतिहासिक स्पष्टीकरण प्रदान करती है। यह एक पिछली गलतफहमी को दूर करती है।
ऐतिहासिक संदर्भ:
इस्लाम से पहले, सफा और मरवा के पहाड़ियों के बीच दो मूर्तियाँ (इसाफ और नाइला) रखी हुई थीं। जाहिलिय्यत (अज्ञानता) के दौर के कुछ लोग सफा-मरवा के बीच दौड़ने (सई) को एक गैर-इस्लामी और पूर्व-इस्लामी रिवाज समझते थे और सोचते थे कि इसे करना गुनाह है। इस आयत ने उस गलतफहमी को दूर किया।
आयत का विस्तृत विवरण:
स्थिति की पुष्टि: "निश्चय ही सफा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से हैं।"
अल्लाह सबसे पहले यह स्पष्ट करता है कि सफा और मरवा कोई सामान्य पहाड़ियाँ नहीं हैं। ये "शाएरिल्लाह" (अल्लाह की निशानियाँ) हैं। यानी, ये अल्लाह के धर्म के प्रतीक और चिन्ह हैं, जैसे काबा, मिना, अरफात हैं।
इस एक वाक्य ने सफा-मरवा के महत्व को फिर से स्थापित कर दिया और साबित कर दिया कि यह एक पवित्र और स्वीकृत इबादत है।
गुनाह से मुक्ति: "तो जिसने इस घर (काबा) का हज या उमरा किया, उस पर इन दोनों का तवाफ (सई) करने में कोई गुनाह नहीं है।"
यहाँ "ला जुनाहा" (कोई गुनाह नहीं) कहकर अल्लाह ने उस गलत धारणा का अंत कर दिया जो लोगों के दिलों में थी।
यह एक अनुमति नहीं, बल्कि एक स्पष्टीकरण है। इसका मतलब यह है: "तुम्हें इसे करने में कोई हिचकिचाहट या संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह एक वैध और पवित्र इबादत है।"
अतिरिक्त नेकी का प्रोत्साहन: "और जो कोई स्वेच्छा से भलाई करे, तो निश्चय ही अल्लाह कृतज्ञ, जानने वाला है।"
आयत का यह अंतिम भाग बहुत व्यापक है। इसका एक संकीर्ण अर्थ यह है कि हज या उमरा के दौरान कोई अतिरिक्त नेकी (जैसे ज्यादा सई करना, दान देना) करे तो अल्लाह उसे स्वीकार करेगा।
लेकिन इसका व्यापक अर्थ यह है कि अल्लाह हर उस नेक काम की कद्र करता है जो इंसान अपनी ओर से खुशी-खुशी और स्वेच्छा से करता है, चाहे वह हज से संबंधित हो या न हो। अल्लाह "शाकिर" (कृतज्ञ) है, यानी वह अपने बंदे के छोटे-से-छोटे नेक अमल को बर्बाद नहीं करता और उसका बहुत बड़ा बदला देता है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
इस्लाम एक प्राकृतिक धर्म है: इस्लाम ने हर अच्छी चीज को स्वीकार किया है, भले ही उसकी शुरुआत पहले के लोगों से हुई हो। सफा-मरवा की सई का संबंध हज़रत हाजिरा (अ.स.) और हज़रत इब्राहीम (अ.स.) के किस्से से है, जिसे इस्लाम ने शुद्ध करके अपना लिया।
धार्मिक गलतफहमियों को दूर करना: अल्लाह ने अपने बंदों की गलतफहमियों को दूर करने के लिए सीधे कुरआन में जवाब दिया। यह दिखाता है कि धर्म को स्पष्ट और भ्रम-रहित रूप में समझना कितना जरूरी है।
इबादत का उद्देश्य: इबादत का उद्देश्य अल्लाह को खुश करना है, न कि लोगों की राय से डरना। जो काम अल्लाह की निशानी है, उसे करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
अतिरिक्त नेकी का महत्व: अल्लाह अपने बंदे की हर छोटी-बड़ी नेकी को जानता है और उसकी कद्र करता है। इसलिए हमें हमेशा नेकियों में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
इस आयत ने मदीना के नए मुसलमानों की एक बड़ी दुविधा को दूर किया, जो सफा-मरवा की सई को जाहिलिय्यत का रिवाज समझते थे।
इसने हज को एक पूर्ण और स्वीकृत रीति-रिवाज के रूप में स्थापित किया और पैगंबर (स.अ.व.) के मार्गदर्शन को मजबूत किया।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
हज का अटूट हिस्सा: आज लाखों मुसलमान बिना किसी संदेह के सफा और मरवा के बीच सई करते हैं, यह जानते हुए कि यह अल्लाह की एक निशानी है और यह आयत इसकी पुष्टि करती है।
धार्मिक शोध और समझ: यह आयत आज के मुसलमानों को सिखाती है कि किसी भी धार्मिक मामले में अपनी ओर से गलतफहमी पालने के बजाय, कुरआन और सुन्नत से सही ज्ञान हासिल करना चाहिए।
स्वैच्छिक नेकी का संदेश: "व मन ततवववा खैरन..." का संदेश आज के मुसलमान को प्रेरित करता है कि वह केवल अनिवार्य इबादतों तक सीमित न रहे, बल्कि स्वेच्छा से दान दे, नफ्ल नमाज़ पढ़े और दूसरों की मदद करे, क्योंकि अल्लाह उसकी हर नेकी को जानता और उसका बदला देता है।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक हज और उमरा किए जाते रहेंगे, यह आयत हर हाजी के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी, यह सुनिश्चित करते हुए कि सफा-मरवा की सई एक स्वीकृत और पवित्र इबादत है।
सिद्धांत का महत्व: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह सिद्धांत सिखाती रहेगी कि अल्लाह की निशानियों का सम्मान करना ईमान का हिस्सा है।
प्रेरणा का स्रोत: "और जो कोई स्वेच्छा से भलाई करे..." का वादा भविष्य के हर मोमिन को नेकी के काम करने के लिए प्रेरित करता रहेगा, यह जानते हुए कि उनका छोटा-सा अच्छा काम भी अल्लाह के यहाँ बर्बाद नहीं जाएगा।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत एक ऐतिहासिक गलतफहमी को दूर करते हुए एक महत्वपूर्ण इबादत (सई) की पुष्टि करती है। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह की निशानियों का सम्मान करना और उनके चारों ओर घूमना (तवाफ) एक पवित्र कार्य है। साथ ही, यह हर मोमिन को स्वेच्छा से अच्छे कर्म करने के लिए प्रोत्साहित करती है, यह आश्वासन देते हुए कि अल्लाह उनकी हर नेकी को जानता और उसका पुरस्कार देता है।