Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

क़ुरआन 2:159 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالْهُدَىٰ مِن بَعْدِ مَا بَيَّنَّاهُ لِلنَّاسِ فِي الْكِتَابِ ۙ أُولَٰئِكَ يَلْعَنُهُمُ اللَّهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللَّاعِنُونَ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • إِنَّ الَّذِينَ: बेशक जो लोग (Indeed, those who)

  • يَكْتُمُونَ: छिपाते हैं (conceal)

  • مَا أَنزَلْنَا: जो कुछ हमने उतारा (what We have revealed)

  • مِنَ الْبَيِّنَاتِ: खुली निशानियों में से (of the clear proofs)

  • وَالْهُدَىٰ: और मार्गदर्शन (and the guidance)

  • مِن بَعْدِ: के बाद (after)

  • مَا بَيَّنَّاهُ: जब हमने स्पष्ट कर दिया (when We have made it clear)

  • لِلنَّاسِ: लोगों के लिए (for the people)

  • فِي الْكِتَابِ: किताब में (in the Book)

  • أُولَٰئِكَ: वे ही लोग (those are the ones)

  • يَلْعَنُهُمُ اللَّهُ: उन पर अल्लाह लानत करता है (Allah curses them)

  • وَيَلْعَنُهُمُ: और उन पर लानत करते हैं (and curse them)

  • اللَّاعِنُونَ: लानत करने वाले (those who curse [the angels, the believers, etc.])

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है, जो उन लोगों के लिए है जो जानबूझकर सच्चाई को छुपाते हैं। यह विशेष रूप से उन यहूदी विद्वानों के बारे में उतरी थी जो अपनी किताबों (तौरात) में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आगमन की स्पष्ट भविष्यवाणियों को छुपा रहे थे।

आयत का विस्तृत विवरण:

1. अपराध और अपराधी का वर्णन (Description of the Crime and the Criminals):

  • "बेशक जो लोग छिपाते हैं जो कुछ हमने उतारा है, खुली निशानियों और मार्गदर्शन में से..."

    • यहाँ "जो कुछ हमने उतारा है" से तात्पर्य अल्लाह की ओर से दिए गए सभी दिव्य ज्ञान से है, चाहे वह पिछली किताबें हों या कुरआन।

    • "बय्यिनात" वे स्पष्ट और अकाट्य प्रमाण हैं जो सत्य को स्थापित करते हैं।

    • "हिदा" वह मार्गदर्शन है जो इंसान को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

  • "...उसके बाद जब हमने उसे लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर दिया।"

    • यह इस अपराध की गंभीरता को और बढ़ा देता है। यह कोई साधारण छिपाना नहीं है। यह तब किया जा रहा है जब अल्लाह ने स्वयं अपनी किताब में सत्य को इतना स्पष्ट कर दिया है कि उसमें कोई संदेह या गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं बची है। उदाहरण के लिए, तौरात में पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों और आने के संकेत स्पष्ट थे।

2. दंड की घोषणा (Declaration of the Punishment):

  • "वे ही लोग हैं जिन पर अल्लाह लानत करता है और उन पर लानत करने वाले (भी) लानत करते हैं।"

    • "अल्लाह की लानत": "लानत" का अर्थ है दया और रहमत से दूर हो जाना। जिस पर अल्लाह लानत कर दे, वह उसकी दया और कृपा से सदा के लिए वंचित हो जाता है। यह सबसे बड़ी आध्यात्मिक हानि और दंड है।

    • "लानत करने वालों की लानत": इसका अर्थ है कि फरिश्ते, दूसरे नबी, ईमान वाले मोमिन, और यहाँ तक कि जमीन और जानवर भी उन पर लानत भेजते हैं, क्योंकि उनके इस पाप से समाज में फसाद और गुमराही फैलती है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. ज्ञान की जिम्मेदारी: ज्ञान को छुपाना सबसे बड़े पापों में से एक है। जिसके पास ज्ञान है, उसका फर्ज है कि वह उसे दूसरों तक पहुँचाए, न कि उसे अपने तक सीमित रखे।

  2. सत्य के साथ विश्वासघात: जानबूझकर सच्चाई को छुपाना अल्लाह के साथ-साथ पूरी मानवजाति के प्रति विश्वासघात है।

  3. धार्मिक नेताओं की जिम्मेदारी: धार्मिक विद्वानों और नेताओं पर विशेष जिम्मेदारी है। अगर वे लोगों को सच्चाई से दूर रखने के लिए ज्ञान को छुपाएँगे या तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे, तो उनके लिए सबसे कड़ा दंड है।

  4. ईमानदारी का महत्व: एक मोमिन को हमेशा ईमानदार और स्पष्टवादी होना चाहिए, चाहे सच बोलने में उसका नुकसान ही क्यों न हो।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • यह आयत मुख्य रूप से उन यहूदी विद्वानों के लिए एक चेतावनी थी जो पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की भविष्यवाणियों को छुपा रहे थे ताकि उनकी धार्मिक नेतागिरी और सामाजिक प्रतिष्ठा बनी रहे।

    • इसने मदीना के मुसलमानों को यह समझाया कि उनका विरोध सत्य के अभाव में नहीं, बल्कि हठधर्मिता और जानबूझकर सत्य को छुपाने के कारण है।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • धार्मिक पाखंड का मुकाबला: आज भी कुछ स्व-घोषित धार्मिक नेता और गुरु लोगों को गलत व्याख्याओं और अंधविश्वासों में उलझाए रखते हैं और सच्चे ज्ञान (कुरआन और सुन्नत) को छुपाते हैं ताकि उनका वर्चस्व बना रहे। यह आयत ऐसे सभी लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी है।

    • ज्ञान का प्रसार: यह आयत हर उस मुसलमान के लिए प्रेरणा है जो इस्लामी ज्ञान रखता है कि उसे इसे दूसरों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। चुप्पी रखना या ज्ञान को छुपाना एक गंभीर पाप है।

    • सूचना का युग: आज के सोशल मीडिया के युग में, गलत जानकारी फैलाना या सच्चाई को दबाना एक आम बात हो गई है। यह आयत हमें सिखाती है कि सच्चाई को सामने लाना और उसे फैलाना एक धार्मिक कर्तव्य है।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया में ज्ञान और सत्ता होगी, लोग सत्य को छुपाने का प्रयास करते रहेंगे। यह आयत कयामत तक उन सभी के लिए एक शाश्वत चेतावनी बनी रहेगी।

    • जिम्मेदारी का सिद्धांत: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के विद्वानों और ज्ञान रखने वालों के लिए एक सिद्धांत स्थापित करती है कि ज्ञान एक अमानत है, जिसे लोगों तक पहुँचाना अनिवार्य है।

    • आशा का संदेश: यह आयत साधारण लोगों के लिए आशा का संदेश है कि अल्लाह उन लोगों को कभी बेअंजाम नहीं छोड़ेगा जो लोगों को सत्य से वंचित रखते हैं। अंततः सत्य की जीत होगी और झूठे लोगों का पर्दाफाश होगा।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत ज्ञान के दुरुपयोग और सत्य को छुपाने के गंभीर पाप पर प्रकाश डालती है। यह स्पष्ट करती है कि ऐसा करने वाले न केवल अल्लाह की दया से वंचित हो जाते हैं, बल्कि सारी सृष्टि की लानत के पात्र बन जाते हैं। यह आयत हर युग में ज्ञानियों के लिए एक चेतावनी और आम लोगों के लिए एक मार्गदर्शन है कि सत्य को ग्रहण करें और उसे फैलाएँ।