1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
وَإِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ لَّا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الرَّحْمَٰنُ الرَّحِيمُ
2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
وَإِلَٰهُكُمْ: और तुम्हारा पूज्य (and your God)
إِلَٰهٌ وَاحِدٌ: एक ही पूज्य है (is One God)
لَّا إِلَٰهَ: कोई पूज्य (इबादत के लायक़) नहीं (there is no deity)
إِلَّا: सिवाय (except)
هُوَ: वह (He)
الرَّحْمَٰنُ: बड़ा दयावान (the Entirely Merciful)
الرَّحِيمُ: अत्यंत दयावान (the Especially Merciful)
3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण मोड़ पर आती है। पिछली कुछ आयतों (161-162) में अल्लाह ने कुफ्र (इनकार) और सत्य को छुपाने के भयानक परिणामों का वर्णन किया था। उस गहन और डरावने वर्णन के बाद, अल्लाह अब मानवजाति को वह मौलिक सत्य याद दिलाता है जिसे स्वीकार करने से वे उस भयानक अंजाम से बच सकते हैं। यह आयत पूरे इस्लामी सिद्धांत का केंद्रबिंदु है।
आयत का विस्तृत विवरण:
1. एकेश्वरवाद का स्पष्ट कथन: "और तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है।"
यह एक सीधा और स्पष्ट वक्तव्य है जो सभी प्रकार के बहुदेववाद, त्रित्ववाद और अवतारवाद का खंडन करता है।
"तुम्हारा पूज्य" कहकर अल्लाह एक व्यक्तिगत संबंध स्थापित करता है। वह सिर्फ एक सिद्धांत या दार्शनिक अवधारणा नहीं है; वह हर इंसान का, हर जीव का, पालनहार और पूज्य है।
2. कलिमा-ए-तौहीद की पुष्टि: "कोई पूज्य (इबादत के लायक़) नहीं, सिवाय उसके।"
यह वाक्य "ला इलाहा इल्लल्लाह" (अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं) का दूसरा रूप है, जो इस्लाम के मूल मंत्र का ही हिस्सा है।
यह नकारात्मकता और सकारात्मकता का एक सुंदर संयोजन है। पहले यह हर झूठे देवता, हर झूठी शक्ति और हर झूठी आराधना का खंडन करता है ("ला इलाहा" - कोई पूज्य नहीं), और फिर सिर्फ एक ही सच्चे अल्लाह की पुष्टि करता है ("इल्ला हुव" - सिवाय उसके)।
3. दया के गुणों का वर्णन: "वह बड़ा दयावान, अत्यंत दयावान है।"
भयानक अंजाम का वर्णन करने के बाद, अल्लाह अपने आप को "अर-रहमान" और "अर-रहीम" के नामों से पेश करता है। यह बहुत ही सुंदर और सांत्वनादायक है। यह दर्शाता है कि अल्लाह की दया उसके गुस्से से आगे है।
"अर-रहमान": यह गुण दुनिया में अल्लाह की सार्वभौमिक दया को दर्शाता है। वह हर चीज़ पर दया करता है, चाहे वह मोमिन हो या काफिर। हवा, पानी, स्वास्थ्य, रोज़ी – यह सब "अर-रहमान" की दया है।
"अर-रहीम": यह गुण आखिरत में मोमिनों के लिए अल्लाह की विशेष दया को दर्शाता है। यह दया सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है जो ईमान लाते हैं और नेक अमल करते हैं। उन्हें जन्नत और उसकी अनंत नेमतें इसी "रहीम" गुण के कारण मिलेंगी।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
तौहीद (एकेश्वरवाद) जीवन का केंद्रबिंदु है: मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सत्य यह है कि उसका पालनहार और पूज्य केवल एक ही अल्लाह है। सारी इबादत, प्रार्थना और आज्ञापालन सिर्फ उसी के लिए होना चाहिए।
डर और आशा का संतुलन: अल्लाह एक तरफ अवज्ञा के लिए सख्त सजा का वादा करता है (आयत 161-162) और दूसरी तरफ अपने आप को रहमान और रहीम बताता है (आयत 163)। यह मोमिन के दिल में एक स्वस्थ संतुलन पैदा करता है – वह अल्लाह के अज़ाब से डरता है और उसकी रहमत की आशा रखता है।
दया का सार्वभौमिक संदेश: अल्लाह के ये दो नाम हमें सिखाते हैं कि हमें भी सभी के साथ दया और करुणा का व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि हमारा रब स्वयं दयावान है।
आमंत्रण का आधार: यह आयत दावत-ए-दीन (धर्म का आह्वान) का मूल आधार है। यह लोगों को एक सरल और स्पष्ट संदेश देती है – तुम्हारा रब एक है और वह बहुत दयावान है, इसलिए उसी की ओर लौट आओ।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत पैगंबर (सल्ल.) के समय के मुशरिकीन (मूर्तिपूजकों) के लिए एक मौलिक चुनौती थी। यह उनके सभी देवी-देवताओं का खंडन करती थी और उन्हें एक अल्लाह की ओर बुलाती थी।
अहले-किताब (यहूदी और ईसाई) के लिए भी यह आयत एक स्पष्टीकरण थी कि अल्लाह एक है, न कि तीन में से एक।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
बहुदेववाद और अनीश्वरवाद का जवाब: आज का युग विभिन्न प्रकार के बहुदेववाद (हिंदू धर्म), त्रित्ववाद (ईसाई धर्म) और अनीश्वरवाद (Atheism) से भरा हुआ है। यह आयत इन सभी के लिए एक स्पष्ट, तार्किक और सरल जवाब है – ईश्वर एक है।
आध्यात्मिक शांति की खोज: आज का इंसान भौतिकवाद में भटक गया है और आंतरिक शांति से वंचित है। यह आयत उसे बताती है कि शांति का स्रोत एक अल्लाह पर विश्वास और उसकी दया पर भरोसा है।
मुस्लिम पहचान का सार: आज के मुसलमानों के लिए यह आयत उनकी आस्था का केंद्रबिंदु है। यह उन्हें याद दिलाती है कि उनका धर्म कितना स्पष्ट और सरल है।
भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:
शाश्वत सत्य: जब तक इंसान रहेगा, "अल्लाह एक है" का सिद्धांत शाश्वत और अटल रहेगा। भविष्य की कोई भी वैज्ञानिक खोज इस सत्य को नहीं बदल सकती।
एकता का संदेश: भविष्य की दुनिया और भी अधिक वैश्विक और परस्पर जुड़ी हुई होगी। यह आयत सभी मानवजाति को एक ही पालनहार की संतान होने का संदेश देकर एकता का आधार प्रदान करेगी।
आशा का स्रोत: भविष्य की अनिश्चितताओं और चुनौतियों के बीच, यह आयत हर पीढ़ी के मोमिन के लिए आशा और सहारे का स्रोत बनी रहेगी, क्योंकि वह जानता है कि उसका रब "रहमान" और "रहीम" है।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत पूरे इस्लामी विश्वास को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। यह एक ओर अल्लाह की एकता और उसकी महानता का एलान करती है, तो दूसरी ओर उसकी असीम दया और करुणा का वर्णन करती है। यह आयत हर इंसान को यह आमंत्रण देती है कि वह अपने एक और दयावान रब की ओर लौट आए और उसकी अनंत दया और क्षमा का हकदार बने।