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क़ुरआन 2:162 (सूरह अल-बक़रह) - पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

خَالِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ

2. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

  • خَالِدِينَ: सदैव रहने वाले (They will abide forever)

  • فِيهَا: उसमें (in it)

  • لَا يُخَفَّفُ: कम नहीं किया जाएगा (will not be lightened)

  • عَنْهُمُ: उनसे (from them)

  • الْعَذَابُ: यातना (the punishment)

  • وَلَا: और न ही (nor)

  • هُمْ: वे (they)

  • يُنظَرُونَ: मोहलत दिए जाएंगे (will be reprieved)

3. आयत का पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (2:161) में दिए गए वर्णन को और भी भयावह व स्पष्ट करती है। आयत 161 में उन लोगों का अंजाम बताया गया था जो कुफ्र की हालत में मर जाते हैं कि उन पर अल्लाह, फरिश्तों और सारे इंसानों की लानत है। अब इस आयत में बताया जा रहा है कि यह लानत और अज़ाब (यातना) किस तरह का होगा।

यह आयत तीन बातों पर ज़ोर देती है:

1. शाश्वतता (خَالِدِينَ فِيهَا): "उसमें सदैव रहने वाले।"

  • "उसमें" से तात्पर्य उस लानत और अज़ाब की स्थिति से है, जिसका वर्णन पिछली आयत में किया गया था, और जिसका स्पष्ट रूप जहन्नम है।

  • "खालिदीन" (सदैव रहने वाले) शब्द इस अंजाम की सबसे डरावनी विशेषता है। यह कोई अस्थायी सजा नहीं है। यह एक ऐसी यातना है जिससे छुटकारे की कोई उम्मीद नहीं है। यह अनंत काल तक चलने वाली है।

2. यातना में कोई रियायत नहीं (لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ): "न उनसे यातना हल्की की जाएगी।"

  • दुनिया की सजाओं में कभी रियायत मिल जाती है, या समय के साथ सजा कम हो जाती है, लेकिन आखिरत की इस यातना के साथ ऐसा नहीं है।

  • न तो उनकी यातना कम की जाएगी, और न ही उन्हें यातना से किसी प्रकार का आराम दिया जाएगा। यह यातना अपनी पूरी तीव्रता के साथ हमेशा-हमेशा के लिए बनी रहेगी।

3. कोई मोहलत नहीं (وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ): "और न ही उन्हें मोहलत दी जाएगी।"

  • दुनिया में इंसान को गलतियाँ सुधारने का मौका दिया जाता है। लेकिन जब इनकार की हालत में मौत आ जाती है, तो सुधार का समय ख़त्म हो जाता है।

  • उन्हें यह कहकर कोई मोहलत नहीं दी जाएगी कि "ठहर जाओ, शायद तुम सुधर जाओ" या "अपनी गलती सुधार लो"। उनका मुक़दमा पूरी तरह से निपट चुका होगा और फैसला सुनाया जा चुका होगा। अब सिर्फ और सिर्फ सजा का समय है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. आखिरत के अज़ाब की गंभीरता: इस आयत से पता चलता है कि आखिरत का अज़ाब दुनिया के किसी भी कष्ट या सजा से तुलना से परे है। यह स्थायी, पूर्ण और निरंतर है।

  2. दुनिया ही एकमात्र मौका: यह आयत स्पष्ट करती है कि ईमान लाने, तौबा करने और नेक अमल करने का एकमात्र मौका सिर्फ यही दुनिया का जीवन है। मौत के बाद न तो तौबा कबूल होती है और न ही कोई दूसरा मौका मिलता है।

  3. जिम्मेदारी का भाव: इस आयत का वर्णन इंसान के दिल में एक स्वस्थ डर पैदा करता है, जो उसे गुनाह और कुफ्र से बचाता है और उसे अपने अंतिम लक्ष्य (ईमान के साथ मरना) के प्रति सचेत रखता है।

  4. अल्लाह के न्याय की पूर्णता: अल्लाह का न्याय पूर्ण रूप से न्यायसंगत है। जिसने दुनिया में सत्य को जानकर भी ठुकराया, उसके लिए आखिरत में कोई रियायत नहीं है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

    • यह आयत पैगंबर (सल्ल.) के समय के काफिरों और सत्य-विरोधियों के लिए एक अंतिम चेतावनी थी। यह उन्हें उनके भयानक अंजाम से आगाह करती थी।

    • इसने मुसलमानों के ईमान को मजबूत किया और उन्हें यह विश्वास दिलाया कि अत्याचारियों का बुरा अंत निश्चित है, भले ही दुनिया में वे कितने भी शक्तिशाली क्यों न दिखें।

  • वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

    • नास्तिकता और उदासीनता के लिए चेतावनी: आज का युग भौतिकवाद और नास्तिकता का युग है। बहुत से लोग आखिरत के अज़ाब को एक कल्पना मानते हैं। यह आयत उन सभी के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है कि यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक कठोर वास्तविकता है।

    • आध्यात्मिक जागरण: मुसलमानों के लिए, यह आयत एक "जगाने वाली कॉल" है। यह उन्हें याद दिलाती है कि दुनिया की छोटी-मोटी परेशानियाँ और प्रलोभन, आखिरत के इस अनंत अज़ाब के सामने कुछ भी नहीं हैं। इससे उनका धैर्य और ईमान मजबूत होता है।

    • दावत का आधार: यह आयत मुसलमानों को दूसरों तक इस्लाम का संदेश पहुँचाने (दावत) के लिए प्रेरित करती है, ताकि कोई भी व्यक्ति इस भयानक अंजाम तक न पहुँचे।

  • भविष्य (Future) के लिए प्रासंगिकता:

    • शाश्वत सत्य: जब तक दुनिया है, यह आयत एक शाश्वत सत्य को दोहराती रहेगी – पाप और इनकार का अंतिम परिणाम एक भयानक और अनंत यातना है।

    • मार्गदर्शन का स्रोत: भविष्य की हर पीढ़ी के लिए, यह आयत एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी। यह उन्हें सही और गलत के अंतिम परिणाम से अवगत कराएगी।

    • आशा और भय का संतुलन: पिछली आयतों (जैसे 160) में दया और माफी का वादा है, और इस आयत में कड़ी चेतावनी है। यह संयोजन भविष्य के हर मोमिन के दिल में एक संतुलन बनाए रखेगा – अल्लाह की दया से आशा और उसके अज़ाब से डर। यह डर उसे गुनाहों से बचाएगा और आशा उसे तौबा के लिए प्रेरित करेगी।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत मानव जीवन की सबसे बड़ी चेतावनी को अपनी चरम सीमा पर पहुँचा देती है। यह सिखाती है कि आखिरत का अज़ाब कोई सामान्य दंड नहीं है; यह अनंत काल तक चलने वाला, बिना किसी रियायत और बिना किसी मोहलत का दंड है। यह आयत हर इंसान को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वह इस संक्षिप्त दुनियावी जीवन को ईमान और सद्कर्मों में बिताए, ताकि उसका अनंत काल सुरक्षित और शांतिपूर्ण हो।