यह आयत पिछली आयत (2:165) का ही अगला भाग है। जहां आयत 165 में उन लोगों की मानसिकता बताई गई थी जो अल्लाह के साथ दूसरों को साझी बनाते हैं, वहीं आयत 166 में क़यामत के दिन उन "साझियों" (अंदाद) और उनके पूजने वालों के बीच होने वाली दर्दनाक मुठभेड़ और इनकार का दृश्य पेश किया गया है।
1. पूरी आयत अरबी में:
إِذْ تَبَرَّأَ الَّذِينَ اتُّبِعُوا مِنَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا وَرَأَوُا الْعَذَابَ وَتَقَطَّعَتْ بِهِمُ الْأَسْبَابُ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
إِذْ (इज़) : उस समय (याद करो) जब
تَبَرَّأَ (तबर्रआ) : बरी हो गए, इन्कार कर दिया, अलग हो गए
الَّذِينَ اتُّبِعُوا (अल्लज़ीना उत्तबिऊ) : जिनकी पैरवी/अनुसरण की गई (नेता, गुरु, मूर्तियाँ)
مِنَ (मिन) : से
الَّذِينَ اتَّبَعُوا (अल्लज़ीनत तबअू) : जिन्होंने (उनकी) पैरवी/अनुसरण की (अनुयायी)
وَرَأَوُا (व रअवुल) : और उन्होंने देख लिया
الْعَذَابَ (अल-अज़ाब) : यातना (अज़ाब) को
وَتَقَطَّعَتْ (व तकत्तअत) : और टूट गए
بِهِمُ (बिहिम) : उनके (और उनके बीच) के
الْأَسْबَابُ (अल-असबाब) : सारे सम्बन्ध/रास्ते/कारण
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "उस समय को याद करो) जब जिन (गुरुओं, नेताओं, मूर्तियों) की पैरवी की गई थी, वे उन लोगों से (सारे संबंध तोड़कर) बरी हो जाएंगे जिन्होंने उनकी पैरवी की थी, और (उसी समय) वे (दोनों) यातना देख लेंगे, और (पारस्परिक) सारे संबंध-रेशे उनके बीच से टूट जाएंगे।"
व्याख्या:
यह आयत कयामत के दिन का एक बहुत ही शक्तिशाली और डरावना दृश्य पेश करती है, जो सीधे तौर पर शिर्क (अल्लाह के साथ साझी ठहराना) के परिणाम से जुड़ी है।
"जिनकी पैरवी की गई" (अल्लज़ीना उत्तबिऊ): ये वे "अंदाद" हैं जिनकी ओर आयत 165 में इशारा किया गया था। इनमें वे नेता, धार्मिक गुरु, संप्रदाय के संस्थापक, पूज्य "संत" या मूर्तियाँ शामिल हैं, जिन्हें अल्लाह का दर्जा देकर या उसके बराबर समझकर उनकी पूजा-अनुसरण किया जाता था।
"बरी हो जाएंगे" (तबर्रआ): यह इस दृश्य का सबसे नाटकीय और दुखद हिस्सा है। कयामत के दिन, जब अज़ाब (दंड) स्पष्ट दिखाई देने लगेगा, तो ये सारे "गुरु" और "मूर्तियाँ" अपने-अपने अनुयायियों से सारे रिश्ते तोड़ देंगे। वे स्पष्ट कह देंगे कि "तुम्हारी गलतफहमी थी, मैंने तो कभी खुद को पूज्य नहीं कहा, तुम्हारी गलतियों का जिम्मेदार मैं नहीं हूँ।" यह एकतरफा इनकार और त्याग का दृश्य होगा।
"यातना देख लेंगे" (व रअवुल अज़ाब): यहाँ "वे" शब्द दोनों पक्षों – गुरुओं और अनुयायियों – को शामिल करता है। दोनों ही समूह अपनी आँखों से अल्लाह के अज़ाब को देख लेंगे। अनुयायी देखेंगे कि उनके गुरु उन्हें बचा नहीं सकते, और गुरु देखेंगे कि वे खुद भी इस अज़ाब से नहीं बच पाएंगे।
"सारे संबंध-रेशे टूट जाएंगे" (व तकत्तअत बिहिमुल असबाब): यह अंतिम और पूर्ण विभाजन का वर्णन है। दुनिया के सारे रिश्ते-नाते, आध्यात्मिक गुरु-शिष्य का बंधन, पूज्य और पूजक का संबंध, सब कुछ ध्वस्त हो जाएगा। कोई भी "सबब" (कारण या साधन) किसी के काम नहीं आएगा। हर व्यक्ति अकेला और बेसहारा होगा।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
अंतिम सत्य का दिन: यह आयत हमें कयामत की वास्तविकता और गंभीरता का एहसास कराती है। उस दिन कोई झूठ, कोई बहाना और कोई सिफारिश काम नहीं आएगी।
गलत नेतृत्व की जिम्मेदारी: यह अनुयायियों के लिए एक चेतावनी है कि वे अंधाधुंध किसी की अनुसरण न करें। उस दिन कोई भी गुरु या नेता आपके सामने खड़ा होकर आपकी जिम्मेदारी नहीं लेगा। हर व्यक्ति स्वयं अपने कर्मों का जवाबदेह होगा।
शिर्क की वास्तविकता उजागर होना: शिर्क केवल एक सैद्धांतिक गलती नहीं है। कयामत के दिन इसकी वास्तविकता और भयावह परिणाम सबके सामने आ जाएंगे। जिन्हें दुनिया में सही माना जाता था, वे गलत साबित होंगे।
अल्लाह के अलावा कोई सहारा नहीं: आयत इस सच्चाई को रेखांकित करती है कि अंततः अल्लाह के अलावा न कोई मददगार है, न कोई सहारा। दुनिया के सारे "असबाब" (कारण और साधन) निष्प्रभावी हो जाएंगे।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
मक्का के मूर्तिपूजक: पैगंबर (स.अ.व.) के समय में, यह आयत कुरैश के उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो पत्थरों और मूर्तियों की पूजा करते थे। यह बताती थी कि कयामत के दिन ये मूर्तियाँ उनसे कहेंगी, "तुम्हारी पूजा से तो हमें कोई खबर नहीं, हमें तो तुमसे कोई सरोकार नहीं।"
अहले-किताब: यहूदियों और ईसाइयों के लिए भी यह चेतावनी थी कि जिन पादरियों और धर्मगुरुओं की वे अंधी पैरवी कर रहे थे, वह दिन आएगा जब वे उनसे मुंह मोड़ लेंगे।
वर्तमान (Present) के लिए:
अंधभक्ति और पंथ-संप्रदाय: आज भी लोग किसी नेता, गुरु, या संप्रदाय की इतनी अंधी भक्ति करते हैं कि उनके हर आदेश को, चाहे वह गलत ही क्यों न हो, अल्लाह का आदेश मानने लगते हैं। यह आयत उनसे कहती है कि उस दिन ये गुरु खुद मुसीबत में होंगे और तुम्हें बचाने की स्थिति में नहीं होंगे।
भौतिकवादी "देवता": जो लोग पैसे, शक्ति और शोहरत को अपना भगवान मानकर चलते हैं, उनके लिए भी यह आयत सच्चाई उजागर करती है। कयामत के दिन न तो उनका धन काम आएगा और न ही उनकी शक्ति। वह सब उनसे टूट चुका होगा।
सामाजिक दबाव: कई लोग सामाजिक दबाव में आकर गलत रीति-रिवाजों या अंधविश्वासों का पालन करते हैं। यह आयत उन्हें साहस देती है कि अंततः उन्हें अकेले ही जवाब देना है, इसलिए सच्चाई को अपनाने से डरना नहीं चाहिए।
भविष्य (Future) के लिए:
तकनीकी निर्भरता: भविष्य में मनुष्य AI, रोबोटिक्स या किसी और तकनीक पर इतना निर्भर हो सकता है कि उसे ही अपना सहारा और "उद्धारकर्ता" मानने लगे। यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि ये सभी साधन उस दिन बेकार साबित होंगे। सारी शक्ति का स्रोत केवल अल्लाह है।
शाश्वत सबक: जब तक इंसान किसी की अनुसरण करेगा, यह आयत प्रासंगिक बनी रहेगी। यह हर युग के मनुष्य को यह सोचने पर मजबूर करेगी: "क्या जिसकी मैं पैरवी कर रहा हूँ, वह कयामत के दिन मेरे सामने खड़ा होकर मेरी जिम्मेदारी लेगा?" इसका जवाब 'ना' में है, इसलिए एकमात्र अनुसरण और भरोसा केवल अल्लाह पर ही होना चाहिए।