Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

क़ुरआन की आयत 2:167 की पूर्ण व्याख्या

 यह आयत शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराना) के परिणाम पर चल राले सिलसिले की अंतिम कड़ी है। आयत 165 में शिर्क की मानसिकता बताई गई, आयत 166 में गुरुओं द्वारा अनुयायियों का साथ छोड़ देने का दृश्य पेश किया गया, और अब आयत 167 में उन अनुयायियों के पछतावे, निराशा और स्थायी दंड का वर्णन है।

1. पूरी आयत अरबी में:

وَقَالَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا لَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَتَبَرَّأَ مِنْهُمْ كَمَا تَبَرَّءُوا مِنَّا ۗ كَذَٰلِكَ يُرِيهِمُ اللَّهُ أَعْمَالَهُمْ حَسَرَاتٍ عَلَيْهِمْ ۖ وَمَا هُمْ بِخَارِجِينَ مِنَ النَّارِ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَقَالَ (व क़ाला) : और कहेंगे

  • الَّذِينَ اتَّبَعُوا (अल्लज़ीनत तबअू) : जिन लोगों ने (गुरुओं की) पैरवी की (अनुयायी)

  • لَوْ أَنَّ لَنَا (लौ अन्ना लना) : काश! हमारे लिए होती

  • كَرَّةً (कर्रतन) : एक बार (दुनिया में) लौटने का अवसर

  • فَنَتَبَرَّأَ مِنْهُمْ (फ़ा नतबर्रआ मिनहुम) : तो हम (भी) उनसे इन्कार कर देते, अलग हो जाते

  • كَمَا (कमा) : जिस प्रकार

  • تَبَرَّءُوا مِنَّا (तबर्रऊ मिन्ना) : उन्होंने हमसे इन्कार किया, अलग हो गए

  • كَذَٰلِكَ (कज़ालिक) : इसी प्रकार

  • يُرِيهِمُ (युरीहिम) : दिखाएगा उन्हें

  • اللَّهُ (अल्लाह) : अल्लाह

  • أَعْمَالَهُمْ (आ'मालहुम) : उनके कर्मों को

  • حَسَرَاتٍ (हसरातिन) : पछतावे/निराशा/दुःख का कारण

  • عَلَيْهِمْ (अलैहिम) : उन पर

  • وَمَا هُمْ (व मा हुम) : और वे नहीं हैं

  • بِخَارِجِينَ (बि-ख़ारिजीन) : निकलने वाले

  • مِنَ النَّارِ (मिनन नार) : आग (जहन्नum) से


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "और जिन लोगों ने (गुरुओं की) पैरवी की थी, वे कहेंगे: 'काश! हमें (दुनिया में) एक बार लौटने का मौका मिले, तो हम भी उनसे (गुरुओं से) उसी तरह इन्कार कर लें जिस तरह उन्होंने हमसे इन्कार किया है।' इस प्रकार अल्लाह उनके कर्मों को उनके लिए पछतावे और निराशा का कारण बना कर दिखाएगा, और वे आग (जहन्नुम) से कभी निकलने वाले नहीं हैं।"

व्याख्या:

यह आयत कयामत के दिन शिर्क करने वाले अनुयायियों की मनोदशा को तीन भागों में दर्शाती है:

1. पछतावा और अफसोस का चरमोत्कर्ष (The Peak of Regret):
अनुयायी जब देखते हैं कि उनके गुरु, जिन्हें वे अल्लाह का रास्ता समझते थे, उनसे मुंह मोड़ रहे हैं और उनकी कोई सहायता नहीं कर रहे, तो उनकी पीड़ा और हताशा चरम पर पहुँच जाती है। उनकी जुबान से निकलता है: "लौ अन्ना लना कर्रतन" – 'काश! हमें एक मौका और मिल जाता।' यह दुनिया में वापस जाने की अंतिम और सबसे बड़ी इच्छा है, ताकि वह अपनी भूल सुधार सकें।

2. बदले की भावना (The Sentiment of Revenge):
उनकी यह इच्छा सिर्फ तौबा (पश्चाताप) की नहीं है, बल्कि एक प्रकार के बदले की भावना भी है। वे कहते हैं कि अगर हमें दोबारा मौका मिले, तो हम भी उन गुरुओं और मूर्तियों से उसी तरह से इन्कार और दूरी कर लें, जिस तरह उन्होंने आज हमारे साथ किया है। यह एक टूटे हुए विश्वास और गहरे धोखे की प्रतिक्रिया है।

3. स्थायी दंड और निराशा (The Permanent Punishment and Despair):
आयत का अंतिम भाग सबसे कठोर सत्य बयान करता है:

  • "कज़ालिका युरीहिमुल्लाहु आ'मालahum हसरातिन अलैhim" – इस तरह अल्लाह उनके सारे कर्मों को उनके लिए 'हसरात' बना देगा। 'हसरात' शब्द बहुत गहरा है, जिसका अर्थ है बेकार का पछतावा, ऐसी निराशा और दुःख जिसका कोई इलाज नहीं है। उनकी सारी इबादत, सारा पैसा, सारी कुर्बानियाँ जो उन्होंने अपने गलत आकाओं के लिए की थीं, सब बेकार और पछतावे का पिंड बनकर रह जाएंगी।

  • "व मा हुम बि-ख़ारिजीina मिनan नार" – और वे कभी भी आग से बाहर निकलने वाले नहीं हैं। यहाँ 'मा' और 'बि' के प्रयोग से अरबी भाषा में पूर्ण और स्थायी नकार का भाव आता है। यह स्पष्ट कर दिया जाता है कि शिर्क का पाप करने वाले और उसी पर मरने वाले लोग जहन्नुम में सदैव रहेंगे।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • दुनिया ही फैसले की जगह है: यह आयत जोर देकर कहती है कि पछतावे और सुधार का असली मौका यही दुनिया है। कयामत के दिन पछताने का कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि उस दिन का पछतावा और भी ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाएगा।

  • अनुसरण से पहले जाँच-पड़ताल जरूरी: यह हर इंसान पर जिम्मेदारी डालती है कि वह किसी की अंधी पैरवी न करे। अपने आकाओं, गुरुओं और विचारधाराओं को कुरआन और सहीह हदीस की कसौटी पर जरूर कसें।

  • शिर्क सबसे बड़ा अत्याचार: इस आयत की गंभीरता से समझ आता है कि इस्लाम में शिर्क को सबसे बड़ा पाप और जुल्म क्यों माना गया है। इसका परिणाम अत्यंत भयानक और स्थायी है।

  • अल्लाह के अलावा हर रिश्ता नश्वर है: अंतिम सत्य यही है कि अल्लाह के अलावा दुनिया का हर रिश्ता, हर लगाव और हर भरोसा एक दिन टूटने वाला है। सच्चा ईमान इसी सच्चाई को मानकर चलना है।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • मक्का के मूर्तिपूजक: यह आयत उन अनुयायियों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो अपने पूर्वजों की परंपरा के कारण मूर्ति पूजन करते थे। यह बताती थी कि कयामत के दिन न तो उनके पूर्वज और न ही उनकी मूर्तियाँ उनका साथ देंगी, बल्कि वे स्वयं उनसे दूरी बना लेंगे।

    • अहले-किताब: यहूदियों और ईसाइयों के लिए भी संदेश था कि जिन धर्मगुरुओं ने धर्म को विकृत किया, उनकी पैरवी करने का खामियजा अनुयायियों को भुगतना पड़ेगा।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • गुरु-भक्ति और पंथ-तंत्र: आज भी कई लोग किसी गुरु, बाबा या संप्रदाय के प्रति इतने समर्पित होते हैं कि उनकी हर बात को 'फरमान' समझकर मानने लगते हैं, चाहे वह कुरआन के खिलाफ ही क्यों न हो। यह आयत उन्हें चेतावनी देती है कि अंततः जिम्मेदारी उनकी अपनी है।

    • विचारधाराओं की अंधी पैरवी: कोई व्यक्ति कम्युनिज्म, पूंजीवाद, राष्ट्रवाद या किसी भी विचारधारा को इतना ऊपर रखने लगे कि वह उसे अल्लाह के दीन से ऊपर या बराबर समझने लगे, तो यह एक प्रकार का शिर्क है। उस दिन ये विचारधाराएं भी उसका साथ छोड़ देंगी।

    • सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स: आज लोग सोशल मीडिया के कई इन्फ्लुएंसर्स को 'फॉलो' करते हैं और उनके हर विचार को सत्य मान लेते हैं। यह आयत हमें सिखाती है कि हर किसी के विचारों को अल्लाह के हुक्म के सामने तोलना जरूरी है।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • तकनीकी भगवान: भविष्य में AI या कोई सुपर-इंटेलिजेंस मनुष्य के लिए इतना महत्वपूर्ण हो सकता है कि लोग उस पर अल्लाह जैसा भरोसा करने लगें। जब वह तकनीक विफल होगी या उसके दोष सामने आएंगे, तो मनुष्य को वैसा ही पछतावा होगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

    • शाश्वत चेतावनी: जब तक इंसान किसी का अनुसरण करेगा, यह आयत प्रासंगिक बनी रहेगी। यह हर युग में मनुष्य को यह याद दिलाती रहेगी कि "काश" का कोई मोल नहीं है। सही चुनाव का एकमात्र अवसर इसी जीवन में है। अगर यह अवसर हाथ से निकल गया, तो फिर सदैव के लिए पछतावा और विनाश है।