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क़ुरआन की आयत 2:183 की पूर्ण व्याख्या

यह आयत इस्लाम के पाँच मूल स्तंभों में से एक, रमज़ान के रोज़ों (सियाम) की अनिवार्यता (फर्ज़ियत) की घोषणा करती है। यह एक सार्वभौमिक आह्वान है जो ईमान वालों को आत्म-नियंत्रण और ईश्वर-चेतना (तक़वा) की ओर ले जाता है।

1. पूरी आयत अरबी में:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • يَا أَيُّهَا (या अय्युहा) : हे!

  • الَّذِينَ آمَنُوا (अल्लज़ीना आमनू) : जो लोग ईमान लाए

  • كُتِبَ (कुतिबा) : फर्ज़ किया गया है (लिख दिया गया है)

  • عَلَيْكُمُ (अलैकुम) : तुम पर

  • الصِّيَامُ (अस-सियाम) : रोज़ा (बंद करना/पूर्ण त्याग)

  • كَمَا (कमा) : जिस प्रकार

  • كُتِبَ (कुतिबा) : फर्ज़ किया गया था

  • عَلَى (अला) : पर

  • الَّذِينَ (अल्लज़ीना) : उन लोगों

  • مِن قَبْلِكُمْ (मिन कब्लिकum) : तुमसे पहले

  • لَعَلَّكُمْ (ला'अल्लकum) : ताकि तुम

  • تَتَّقُونَ (तत्तक़ून) : परहेज़गार बनो (तक़वा प्राप्त करो)


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े फर्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले वालों पर फर्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार (मुत्तक़ी) बन जाओ।"

व्याख्या:

यह आयत तीन बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कहती है:

1. एक स्पष्ट आदेश (A Clear Command): "या अय्युहल्लज़ीना आमनू कुतिबा अलैकुमुस सियाम"

  • संबोधन सीधे ईमान वालों से है। रोज़ा ईमान की एक Practical अभिव्यक्ति और उसकी एक शर्त है।

  • शब्द "कुतिबा" का प्रयोग बहुत मजबूत है। इसका मतलब है कि इसे एक अनिवार्य विधान के रूप में लिख दिया गया है, इसे अल्लाह ने तुम पर फर्ज़ कर दिया है। यह एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आज्ञा है।

2. एक ऐतिहासिक और सार्वभौमिक परंपरा (A Historical and Universal Tradition): "कमा कुतिबा अलल्लज़ीना मिन कब्लिकum"

  • अल्लाह यहाँ बताता है कि रोज़ा कोई नई चीज़ नहीं है। यह एक सार्वभौमिक और ऐतिहासिक इबादत है जो पहले की समस्त अहले-किताब उम्मतों (यहूदियों और ईसाइयों) पर भी फर्ज़ थी।

  • इसका कई लाभ हैं:

    • मनोवैज्ञानिक सहूलियत: नई उम्मत को यह एहसास दिलाता है कि वह अकेली नहीं है, बल्कि एक लंबी आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है।

    • एकता का संदेश: यह दर्शाता है कि आत्म-शुद्धि का मार्ग हर युग में एक जैसा रहा है।

3. रोज़े का वास्तविक उद्देश्य (The Real Objective of Fasting): "ला'अल्लकुम तत्तक़ून"

  • यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। रोज़े का अंतिम लक्ष्य सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं है। उसका लक्ष्य है "तक़वा" हासिल करना।

  • "तक़वा" क्या है? यह एक बहुत व्यापक अवधारणा है:

    • अल्लाह का डर और उसकी मार्जी के अनुसार चलना।

    • हर उस चीज़ से बचना जो अल्लाह को नापसंद है।

    • आत्म-अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और आत्म-जागरूकता पैदा करना।

  • रोज़ा एक Training Program है। जब एक व्यक्ति पूरे दिन हलाल चीज़ों (खाना-पीना, अपनी पत्नी के साथ संबंध) को अल्लाह के आदेश पर छोड़ देता है, तो उसमें इतनी ताकत आ जाती है कि वह हराम चीज़ों (झूठ, ग़ीबत, चोरी, व्यभिचार) को भी छोड़ सके। यही "तक़वा" है।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • रोज़ा ईमान का हिस्सा है: रोज़ा रखना एक मुसलमान की पहचान और अल्लाह के प्रति उसकी आज्ञाकारिता का प्रतीक है।

  • इबादत का उद्देश्य आत्म-सुधार है: हर इबादत का लक्ष्य इंसान के अंदर और बाहर, एक सकारात्मक बदलाव लाना है। रोज़े का लक्ष्य "तक़वा" की भावना को मजबूत करना है।

  • आत्म-अनुशासन का महत्व: रोज़ा इंसान को उसकी शारीरिक इच्छाओं और ज़रूरतों का गुलाम नहीं, बल्कि उनका नियंत्रक बनाता है।

  • एकता और सार्वभौमिकता: रोज़ा यह याद दिलाता है कि इस्लाम एक नया धर्म नहीं है, बल्कि यह इब्राहीमी परंपरा का अंतिम और पूर्ण रूप है।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • इस आयत ने मदीना के नए मुस्लिम समुदाय को एक सामूहिक पहचान और एक Powerful आध्यात्मिक अभ्यास दिया। यह उनके ईमान को मजबूत करने और उन्हें एक Systematic जीवन शैली प्रदान करने का काम किया।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • आध्यात्मिक डिटॉक्स: आज के भौतिकवादी और Fast-Paced जीवन में, रोज़ा एक आध्यात्मिक डिटॉक्स (शुद्धिकरण) का काम करता है। यह इंसान को दुनियावी भागदौड़ से रोककर अपने रब से जुड़ने का मौका देता है।

    • स्वास्थ्य लाभ: आधुनिक विज्ञान ने उपवास के अनेक स्वास्थ्य लाभ (Metabolic Health को बेहतर बनाना, Cellular Repair को बढ़ावा देना आदि) सिद्ध किए हैं, जो इस इबादत की हिकमत (ज्ञान) को दर्शाते हैं।

    • सहानुभूति और संयम: रोज़ा गरीबों और भूखों की पीड़ा को समझना सिखाता है, जिससे समाज में दया और दान की भावना बढ़ती है। यह इंसान को गुस्सा, लालच और अन्य नकारात्मक आदतों पर काबू पाना सिखाता है।

    • सामुदायिक एकता: पूरी दुनिया के मुसलमान एक ही समय में रोज़ा रखते और इफ्तार करते हैं, जो एक अद्भुत सामुदायिक एकता और भाईचारे की भावना पैदा करता है।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • मानसिक स्वास्थ्य: भविष्य की और भी तनावपूर्ण दुनिया में, रोज़ा मानसिक शक्ति, धैर्य और Emotional Intelligence विकसित करने का एक शक्तिशाली Tool साबित होगा।

    • शाश्वत प्रशिक्षण: जब तक इंसान रहेगा, उसे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण और आध्यात्मिक शुद्धि की आवश्यकता रहेगी। रोज़े का यह प्रशिक्षण (Training) हर युग में मानवता के लिए प्रासंगिक बना रहेगा।

    • वैज्ञानिक पुष्टि: भविष्य में विज्ञान रोज़े के और भी स्वास्थ्य लाभ खोज सकता है, जो इस दिव्य आदेश की हिकमत को और भी स्पष्ट करेगा। यह आयत और इसका उद्देश्य कयामत तक मुसलमानों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बना रहेगा।