Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 2:2 - "ज़ालिकल किताबु ला रैबा फीह, हुदल लिल मुत्तक़ीन" (ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ فِيهِ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ)

 यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की दूसरी आयत (2:2) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:2 - "ज़ालिकल किताबु ला रैबा फीह, हुदल लिल मुत्तक़ीन" (ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ فِيهِ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ)

हिंदी अर्थ: "यह वह किताब है, जिसमें कोई संदेह नहीं है; (यह) डर रखने वालों के लिए मार्गदर्शन है।"

यह आयत सूरह अल-बक़ारह की वास्तविक शुरुआत है। रहस्यमय अक्षरों ("अलिफ़ लाम मीम") के बाद यह आयत सीधे तौर पर कुरआन की पहचान, उसकी विशेषता और उसके लाभार्थियों को बताती है। यह पूरी सूरह और समग्र रूप से कुरआन के लिए एक आधारशिला का काम करती है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • ज़ालिका (Zaalika): इसका अर्थ है "वह" (That)। अरबी भाषा में "ज़ा" (यह) की तुलना में "ज़ालिका" (वह) दूरी और सम्मान का भाव दर्शाता है। यहाँ इसका प्रयोग कुरआन के महान गौरव और प्रतिष्ठा को दर्शाने के लिए किया गया है। यह ऐसा ही है जैसे हिंदी में किसी महान व्यक्ति को संबोधित करने के लिए "वह महाशय" कहा जाए।

  • अल-किताबु (Al-Kitaabu): इसका अर्थ है "किताब" (The Book)। यहाँ "किताब" से तात्पर्य पवित्र कुरआन से है। यह शब्द बताता है कि यह कोई साधारण वाक्य या भाषण नहीं, बल्कि एक लिखित, संरक्षित और पूर्ण ग्रंथ है।

  • ला रैबा (La Rayba): "ला" का अर्थ "नहीं" और "रैब" का अर्थ है "संदेह", "शक", "अनिश्चितता"। इस प्रकार, इसका अर्थ है "कोई संदेह नहीं"

  • फीह (Feehi): इसका अर्थ है "उसमें" (In it)।

  • हुदन (Hudan): इसका अर्थ है "मार्गदर्शन", "राह दिखाना" (Guidance)। यह मार्गदर्शन सिर्फ सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन के लिए एक संपूर्ण मार्गदर्शन है।

  • लिल-मुत्तक़ीन (Lil-Muttaqeen): "ली" का अर्थ "के लिए" और "अल-मुत्तक़ीन" का अर्थ है "डर रखने वाले" या "परहेज़गार लोग"। "तक़्वा" एक बहुत ही व्यापक अर्थ वाला शब्द है, जिसकी व्याख्या नीचे की गई है।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

1. कुरआन की निर्विवाद सत्यता (The Unquestionable Truth of the Quran):

  • "ला रैबा फीह" (इसमें कोई संदेह नहीं) एक स्पष्ट और सीधा बयान है। यह कुरआन की हर बात - चाहे वह अतीत के इतिहास की हो, वर्तमान के नियमों की हो या भविष्य के预言 (पूर्वसूचना) की हो - को पूर्ण सत्य घोषित करता है।

  • यह एक चुनौती भी है। यह दुनिया के सभी लोगों, विशेष रूप से संदेह करने वालों को कहता है कि इस किताब की किसी भी बात में तुम कोई त्रुटि, विरोधाभास या झूठ नहीं पा सकते।

  • यह मुसलमानों के लिए दृढ़ विश्वास (यक़ीन) का आधार है। एक मोमिन के लिए कुरआन सर्वोच्च सत्य है और उसके जीवन का अंतिम मानदंड।

2. मार्गदर्शन का स्रोत (The Source of Guidance):

  • आयत कुरआन को "हुदन" (मार्गदर्शन) बताती है। यह मार्गदर्शन अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञानता से ज्ञान की ओर और पाप से पवित्रता की ओर है।

  • यह मार्गदर्शन सिर्फ आध्यात्मिक नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के हर पहलू को कवर करता है।

3. मार्गदर्शन के असली हकदार: 'अल-मुत्तक़ीन' (The True Recipients: The Muttaqeen)

  • यह आयत स्पष्ट करती है कि कुरआन का मार्गदर्शन हर किसी के लिए स्वतः सक्रिय (Automatic) नहीं है। इसका पूरा लाभ उठाने के लिए एक विशेष योग्यता चाहिए, और वह है "तक़्वा"

  • तक़्वा (Taqwa) क्या है? तक़्वा का सीधा-सा अर्थ है "अल्लाह का डर"। लेकिन यह एक नकारात्मक डर नहीं है। यह एक व्यापक अवधारणा है जिसमें शामिल है:

    • जागरूकता: हर समय यह एहसास कि अल्लाह मुझे देख रहा है।

    • आज्ञाकारिता: अल्लाह के आदेशों का पालन करना।

    • परहेज़गारी: अल्लाह की नाराज़गी से बचने के लिए हर उस चीज़ से दूर रहना जिसे वह गुनाह ठहराता है।

    • आंतरिक शुद्धता: सिर्फ बाहरी कर्मों से नहीं, बल्कि दिल की नीयत और विचारों की शुद्धता से काम लेना।

  • सरल शब्दों में, "मुत्तक़ी" वह व्यक्ति है जो अल्लाह के दंड के डर से गुनाहों से बचता है और उसकी कृपा की आशा में नेक काम करता है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • कुरआन के प्रति दृष्टिकोण: यह आयत एक मुसलमान को कुरआन पढ़ने का सही तरीका सिखाती है। उसे इसे पूर्ण विश्वास और निश्चिंतता के साथ अल्लाह का वचन मानकर पढ़ना चाहिए, संदेह और शक की नज़र से नहीं।

  • आत्म-सुधार का मापदंड: जब कोई मुसलमान कुरआन पढ़ता है, तो वह स्वयं से पूछता है: "क्या मैं 'मुत्तक़ीन' में शामिल हूँ? क्या मेरे अंदर तक़्वा है?" यह आयत उसे लगातार आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार के लिए प्रेरित करती है।

  • मार्गदर्शन की कुंजी: यह आयत बताती है कि अगर हमें कुरआन से सही मार्गदर्शन नहीं मिल रहा, तो समस्या कुरआन में नहीं, बल्कि हमारे अपने "तक़्वा" की कमी में है। इसलिए हमें अपने दिल को शुद्ध करने और तक़्वा बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:2 इस पवित्र ग्रंथ की आधारशिला रखती है। यह तीन मौलिक बातें स्थापित करती है:

  1. कुरआन का दर्जा: यह एक निर्विवाद, सत्य और पवित्र किताब है।

  2. कुरआन का उद्देश्य: यह संपूर्ण मानवजाति के लिए मार्गदर्शन है।

  3. कुरआन की शर्त: इस मार्गदर्शन का पूरा लाभ केवल वही लोग उठा सकते हैं जो अल्लाह से डरते हैं और उसकी अवज्ञा से बचते हैं (मुत्तक़ीन)।

यह आयत हर पाठक को एक चुनौती और एक प्रेरणा देती है। चुनौती यह है कि कुरआन की सत्यता को स्वीकार करो, और प्रेरणा यह है कि तक़्वा का जीवन अपनाकर इस अद्भुत मार्गदर्शन का लाभ उठाओ।