Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:201 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَمِنْهُم مَّن يَقُولُ رَبَّنَآ ءَاتِنَا فِى ٱلدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِى ٱلْـَٔاخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
وَمِنْهُمऔर उनमें से (कुछ लोग)
مَّن يَقُولُऐसे हैं जो कहते हैं
رَبَّنَآहे हमारे पालनहार!
ءَاتِنَاहमें प्रदान कर
فِى ٱلدُّنْيَاदुनिया में
حَسَنَةًभलाई
وَفِى ٱلْـَٔاخِرَةِऔर आखिरत (परलोक) में
حَسَنَةًभलाई
وَقِنَاऔर हमें बचा ले
عَذَابَ ٱلنَّارِआग के अज़ाब (यातना) से

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "और उनमें से कुछ वे हैं जो कहते हैं: 'हे हमारे पालनहार! हमें दुनिया में भी भलाई प्रदान कर और आखिरत में भी भलाई प्रदान कर, और हमें आग (जहन्नम) के यातना से बचा ले।'"

सरल व्याख्या:
यह आयत उन विश्वासियों का वर्णन करती है जिनकी सोच और दुआ संतुलित और संपूर्ण होती है। वे सिर्फ दुनिया की सुख-सुविधाओं (जैसे धन, स्वास्थ्य, ज्ञान) के लिए ही नहीं, बल्कि परलोक की सफलता (जन्नत, अल्लाह की रज़ा) के लिए भी प्रार्थना करते हैं। साथ ही, वे अल्लाह से आग के अज़ाब से सुरक्षा की भी प्रार्थना करते हैं। यह दुआ एक मोमिन की पूर्ण और संतुलित जीवन-दृष्टि को दर्शाती है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

क. "दुनिया में भलाई" (फिद्दुन्या हसनह) का अर्थ:
इसके अंतर्गत वह सब कुछ आता है जो एक इंसान के लिए दुनिया की ज़िंदगी को अच्छा और सार्थक बनाता है। जैसे:

  • स्वास्थ्य और ताकत

  • ज्ञान और समझ

  • हलाल रोज़ी और धन-संपत्ति

  • परिवार में शांति और प्यार

  • सुरक्षा और अमन

  • अच्छा चरित्र और नैतिकता

ख. "आखिरत में भलाई" (फिल आखिरति हसनह) का अर्थ:
यह परलोक में सफलता और अच्छाई की कामना है, जिसमें शामिल है:

  • ईमान पर मृत्यु होना।

  • कयामत के दिन की मुश्किलों से आसानी।

  • हिसाब-किताब में सरलता।

  • जन्नत में प्रवेश और अल्लाह का दीदार।

  • अल्लाह की रज़ामंदी हासिल करना।

ग. "आग के अज़ाब से बचा ले" (वक़िना अज़ाबन्नार):
यह अल्लाह के सामने इंसान की कमज़ोरी और उसकी दयालुता पर निर्भरता को दर्शाता है। इंसान यह स्वीकार करता है कि उसकी गलतियों के कारण वह अज़ाब का हकदार बन सकता है, इसलिए वह अल्लाह से क्षमा और सुरक्षा की गुहार लगाता है।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. संतुलन की शिक्षा: यह आयत मुसलमान को सिखाती है कि जीवन में संतुलन रखना चाहिए। सिर्फ दुनिया के पीछे भागना या सिर्फ आखिरत की सोचकर दुनिया को完全 नकार देना, दोनों ही गलत हैं। दोनों जगह की भलाई माँगनी चाहिए।

  2. एक पूर्ण दुआ: यह कुरआन की सबसे संपूर्ण दुआओं में से एक है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी नियमित रूप से यही दुआ माँगा करते थे।

  3. लोक-परलोक का ज्ञान: यह दुआ इंसान को यह याद दिलाती है कि उसका अस्तित्व सिर्फ इस दुनिया तक सीमित नहीं है। एक दिन उसे अपने कर्मों का हिसाब देना है।

  4. डर और आशा: एक मोमिन का जीवन डर (अल्लाह के अज़ाब से) और आशा (अल्लाह की रहमत से) के बीच संतुलन पर चलना चाहिए। यह दुआ इसी भावना को प्रकट करती है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
पैगंबरों के ज़माने से लेकर आज तक, हर सच्चे मोमिन ने यही संतुलित दुआ माँगी है। अतीत के संतों, विद्वानों और साधारण विश्वासियों ने हमेशा अल्लाह से दोनों जहानों की भलाई माँगी है। यह उनकी आस्था और समझ की पहचान रही है।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के भौतिकवादी युग में यह आयत और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है।

  • भौतिकता का बोलबाला: आज इंसान सिर्फ धन, शोहरत और सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है और आखिरत को完全 भूल गया है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि सफलता का असली मापदंड आखिरत है।

  • अशांति और तनाव: दुनियावी सफलता भी जब आखिरत से कटी होती है, तो वह अशांति और तनाव का कारण बनती है। यह दुआ इंसान के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करती है क्योंकि वह अल्लाह से दोनों प्रकार की भलाई माँग रहा है।

  • नैतिकता का ह्रास: सिर्फ दुनिया की चाहत इंसान को गलत रास्तों पर ले जाती है। जब इंसान आखिरत की भलाई भी माँगेगा, तो वह हलाल और नैतिक तरीकों से ही दुनिया हासिल करने की कोशिश करेगा।

भविष्य में प्रासंगिकता:
कयामत तक, यह दुआ हर मुसलमान के लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी।

  • अंतिम समय की परीक्षा: भविष्य में दुनिया के अंत के निकट आने पर फितनों (कठिनाइयों) और परीक्षाओं का दौर आएगा। ऐसे में यह दुआ ही इंसान को सही रास्ता दिखाएगी और उसे संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी।

  • शाश्वत मार्गदर्शन: चाहे दुनिया कितनी भी तरक्की कर ले, इंसान की मूलभूत ज़रूरतें - दुनिया की अच्छाई, परलोक की कामयाबी और अज़ाब से सुरक्षा - हमेशा एक जैसी रहेंगी। इसलिए, यह आयत कयामत तक हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक और मार्गदर्शक बनी रहेगी।

निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत एक संपूर्ण जीवन-दर्शन प्रस्तुत करती है। यह मनुष्य को एक संतुलित, सार्थक और अल्लाह-केंद्रित जीवन जीने का तरीका सिखाती है, जो न केवल उसके वर्तमान बल्कि उसके अनंत भविष्य को भी सुरक्षित और सफल बनाती है।