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कुरआन की आयत 2:205 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَإِذَا تَوَلَّىٰ سَعَىٰ فِى ٱلْأَرْضِ لِيُفْسِدَ فِيهَا وَيُهْلِكَ ٱلْحَرْثَ وَٱلنَّسْلَ ۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلْفَسَادَ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
وَإِذَاऔर जब
تَوَلَّىٰवह मुड़ता है / पीठ फेरता है / सत्ता में आता है
سَعَىٰजुट जाता है / कोशिश करता है
فِى ٱلْأَرْضِधरती में
لِيُفْسِدَताकि फसाद (बिगाड़) फैलाए
فِيهَاउसमें (धरती में)
وَيُهْلِكَऔर बर्बाद कर दे
ٱلْحَرْثَखेती (फसल) को
وَٱلنَّسْلَऔर वंश (पशुधन, मानव संतान) को
وَٱللَّهُऔर अल्लाह
لَا يُحِبُّपसंद नहीं करता
ٱلْفَسَادَफसाद (बिगाड़, उपद्रव) को

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "और जब वह (तुमसे) मुड़ता है तो धरती में कोशिश करता फिरता है ताकि उसमें फसाद फैलाए और खेती और पशुधन (मानव वंश) को बर्बाद कर दे। और अल्लाह फसाद को पसंद नहीं करता।"

सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:204) में वर्णित उसी ढोंगी और दुष्ट व्यक्ति के असली चरित्र और कार्यों को दर्शाती है। जब वह आपके सामने से चला जाता है या उसे कोई अवसर मिलता है, तो उसकी असली सूरत सामने आती है। उसका लक्ष्य समाज में अशांति, भ्रष्टाचार और बर्बादी फैलाना होता है। वह लोगों की आजीविका (खेती) और भविष्य (पशुधन और संतान) को नष्ट करने पर तुला रहता है। आयत का अंत इस बात पर जोर देकर होता है कि अल्लाह ऐसी किसी भी तरह की बर्बादी और फसाद को बिल्कुल पसंद नहीं करता।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत एक व्यक्ति के द्वारा होने वाली सामाजिक बर्बादी के विस्तृत दायरे को दर्शाती है।

क. "जब वह मुड़ता है" (वा इज़ा तवल्ला):

  • यहाँ "मुड़ना" दो अर्थों में लिया जा सकता है:

    1. शाब्दिक: जब वह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) या अच्छे लोगों की संगति से दूर होता है।

    2. प्रतीकात्मक: जब उसे सत्ता, ताकत या कोई अवसर मिल जाता है। ताकत मिलते ही उसका वास्तविक दुष्ट चरित्र उजागर हो जाता है।

ख. "फसाद फैलाने की कोशिश" (सा'या फिल अर्दि लियुफ्सिदा फीहा):

  • फसाद (बिगाड़): इसका दायरा बहुत व्यापक है। इसमें शामिल है: सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, झूठ फैलाना, लोगों के बीच फूट डालना, युद्ध और हिंसा को भड़काना, और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना।

  • सक्रिय प्रयास: "सा'या" शब्द दर्शाता है कि वह यह काम सक्रिय रूप से, जानबूझकर और पूरी लगन से करता है।

ग. "खेती और पशुधन को बर्बाद करना" (वा युह्लिकल हार्सा वन्नस्ल):

  • अल-हार्स (खेती): यह मानव की आजीविका और आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक है। इसे नष्ट करने का मतलब है लोगों को आर्थिक रूप से तबाह करना, अकाल की स्थिति पैदा करना।

  • अन-नस्ल (पशुधन/वंश): यह मानव और पशु दोनों के वंश/संतान को दर्शाता है। इसका अर्थ है:

    • पशुधन की बर्बादी: जो लोगों की एक और आजीविका और भोजन का स्रोत है।

    • मानव वंश की बर्बादी: युद्ध, हत्या, बीमारी फैलाकर या नैतिक पतन के जरिए आने वाली पीढ़ियों को नष्ट करना।

घ. "अल्लाह फसाद को पसंद नहीं करता" (वल्लाहु ला युहिब्बुल फसाद):

  • यह वाक्य एक स्पष्ट निर्णय और चेतावनी है। जो कोई भी फसाद फैलाता है, वह अल्लाह की नाराज़गी और अप्रसन्नता को मोल लेता है।

  • यह मोमिनों के लिए एक मार्गदर्शन है कि उन्हें हमेशा शांति, सुधार (इस्लाह) और निर्माण के काम में लगे रहना चाहिए।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. इरादों को कर्मों से आंकें: किसी को सिर्फ उसके बोलों से नहीं, बल्कि उसके कर्मों और उसके कर्मों के परिणामों से आंकना चाहिए।

  2. सामाजिक जिम्मेदारी: एक मुसलमान का फर्ज है कि वह समाज में फसाद फैलाने से रोके और शांति व भलाई को बढ़ावा दे।

  3. विनाशकारी प्रवृत्ति से सावधान: जो लोग दूसरों की उन्नति और समृद्धि से ईर्ष्या रखते हैं और बर्बादी फैलाते हैं, उनसे सावधान रहना चाहिए।

  4. अल्लाह का स्वभाव: अल्लाह निर्माण, शांति और व्यवस्था को पसंद करता है, विनाश और अराजकता को नहीं।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत मदीना के मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के नेता अब्दुल्लाह इब्न उबय्य और उसके साथियों के षडयंत्रों को उजागर कर रही थी। वह पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने मीठी बातें करता, लेकिन पीठ पीछे बनी कुरैजा और बनी नज़ीर जैसे यहूदी कबीलों से मिलकर मुसलमानों के खिलाफ साजिशें रचता, अफवाहें फैलाता और समाज में फूट डालने की कोशिश करता था, जिससे "खेती और पशुधन" यानी सामाजिक ढांचा नष्ट हो जाए।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के युग में यह आयत अत्यधिक प्रासंगिक है:

  • भ्रष्ट नेता और अधिकारी: ऐसे नेता जो चुनाव जीतने के लिए मीठे वादे करते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही देश में भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता फैला देते हैं, जिससे आम जनता की आजीविका ("खेती") नष्ट हो जाती है।

  • आर्थिक शोषण: बड़ी कंपनियाँ और उद्योगपति लालच में पर्यावरण को प्रदूषित करके, जमीन और पानी को जहरीला करके "खेती और पशुधन" को वास्तव में नष्ट कर रहे हैं।

  • सूचना का युद्ध (Information Warfare): सोशल मीडिया पर झूठी खबरें और अफवाहें फैलाकर सामाजिक सद्भाव को तोड़ा जा रहा है, जो एक आधुनिक रूप में "फसाद फैलाना" है।

  • सांप्रदायिक हिंसा: दंगे भड़काकर लोगों की जान और माल को नुकसान पहुँचाना, यह सीधे तौर पर "वंश (नस्ल)" को नष्ट करने जैसा है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत चेतावनी: जब तक समाज रहेगा, सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग करने वाले, समाज को तोड़ने वाले और विनाशकारी एजेंडे चलाने वाले लोग मौजूद रहेंगे। यह आयत हर युग के मोमिनों को ऐसे लोगों की पहचान करना सिखाएगी।

  • इस्लामी समाज का आदर्श: यह आयत एक इस्लामी समाज के लक्ष्य को भी दर्शाती है - ऐसा समाज जो फसाद से मुक्त हो, जहाँ खेती, पशुधन और मानव जीवन सुरक्षित और संपन्न हो। यह भविष्य के निर्माण के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।

  • पर्यावरण संरक्षण: "खेती और पशुधन की रक्षा" का सिद्धांत आधुनिक पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास (Sustainable Development) की अवधारणा से सीधे जुड़ता है। यह सिखाता है कि प्रकृति को नष्ट करना अल्लाह को नापसंद है।

निष्कर्ष: आयत 2:205 केवल एक ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं है, बल्कि यह एक सार्वभौमिक सत्य है। यह हमें व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक स्तर पर फसाद (विनाश) के सभी रूपों को पहचानने, उससे दूर रहने और उसका विरोध करने की प्रेरणा देती है। यह हमें याद दिलाती है कि एक मोमिन का काम बर्बादी नहीं, बल्कि निर्माण और सुधार का है।