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कुरआन की आयत 2:214 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُوا۟ ٱلْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُم مَّثَلُ ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلِكُم ۖ مَّسَّتْهُمُ ٱلْبَأْسَآءُ وَٱلضَّرَّآءُ وَزُلْزِلُوا۟ حَتَّىٰ يَقُولَ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ مَتَىٰ نَصْرُ ٱللَّهِ ۗ أَلَآ إِنَّ نَصْرَ ٱللَّهِ قَرِيبٌ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
أَمْक्या? (एक ताकीदी/डांट भरा प्रश्न)
حَسِبْتُمْतुमने समझा / गुमान किया
أَنकि
تَدْخُلُوا۟तुम दाखिल हो जाओगे
ٱلْجَنَّةَजन्नत में
وَلَمَّاऔर अभी तक नहीं
يَأْتِكُمआया है तुम्हारे पास
مَّثَلُवैसा ही हाल / मिसाल
ٱلَّذِينَजिन लोगों का
خَلَوْا۟गुजर गए / बीत गए
مِن قَبْلِكُمतुमसे पहले
مَّسَّتْهُمُछू गया उन्हें / पहुँच गया उन्हें
ٱلْبَأْسَآءُगरीबी और मुसीबत
وَٱلضَّرَّآءُऔर बीमारी और तकलीफ
وَزُلْزِلُوا۟और वे हिला दिए गए (घबरा गए)
حَتَّىٰयहाँ तक कि
يَقُولَकहने लगा
ٱلرَّسُولُपैगंबर
وَٱلَّذِينَऔर जो लोग
ءَامَنُوا۟ईमान लाए
مَعَهُۥउनके साथ
مَتَىٰकब
نَصْرُ ٱللَّهِअल्लाह की मदद
أَلَآसुन लो! / जान लो!
إِنَّनिश्चित रूप से
نَصْرَ ٱللَّهِअल्लाह की मदद
قَرِيبٌनिकट है

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "क्या तुमने यह समझ रखा है कि तुम जन्नत में ऐसे ही चले जाओगे, जबकि अभी तक तुम्हारे पास तुमसे पहले गुजरे हुए लोगों जैसा हाल नहीं आया? उन पर गरीबी और तकलीफें आईं और वे इतना घबरा गए कि यहाँ तक कि पैगंबर और उनके साथ के ईमान वाले कहने लगे, 'अल्लाह की मदद कब आएगी?' सुन लो! निश्चय ही अल्लाह की मदद निकट है।"

सरल व्याख्या:
यह आयत मक्का के उन मुसलमानों को संबोधित करती है जो सोचते थे कि सिर्फ ईमान लाने भर से ही वे जन्नत में प्रवेश पा जाएंगे। अल्लाह उन्हें चेतावनी देता है कि जन्नत इतनी सस्ती चीज़ नहीं है। उसके रास्ते में परीक्षाएं और कठिनाइयाँ आती हैं। तुमसे पहले की कौमों के ईमान वालों पर भी इसी तरह की मुसीबतें आईं। उन पर गरीबी, बीमारी और डर के हालात इस कदर हावी हुए कि पैगंबर और उनके साथी भी बेकरारी से अल्लाह की मदद का इंतज़ार करने लगे। आयत का अंत इस आश्वासन के साथ होता है कि अल्लाह की मदद बिल्कुल नजदीक है, बशर्ते तुम सब्र और ईमान पर डटे रहो।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत जन्नत के रास्ते की वास्तविकता को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में समझाती है।

क. "क्या तुमने यह समझ रखा है...?" (अम हसिबतुम...):

  • भ्रम को तोड़ना: यह एक ताकीदी (डांट भरा) सवाल है जो मोमिनों के मन में बैठे एक बड़े भ्रम को दूर करता है। जन्नत कोई आसानी से मिलने वाली चीज़ नहीं है। उसे पाने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है।

ख. "तुमसे पहले गुजरे हुए लोगों जैसा हाल" (मसलुल्लजीना खलौ मिन कब्लिकुम):

  • इतिहास से सबक: अल्लाह यहाँ एक सामान्य नियम बता रहा है। हर युग के ईमान वालों को परीक्षा से गुजरना पड़ता है। यह परीक्षा उनकी ईमानी मेट्टी (सोच) को परखने के लिए होती है।

  • पहचान: इससे मोमिनों को यह एहसास होता है कि उनकी मुसीबतें कोई नई बात नहीं हैं, बल्कि एक सुन्नतुल्लाह (अल्लाह का नियम) है।

ग. परीक्षा के प्रकार:

  • अल-बअसा (गरीबी और कठिनाई): आर्थिक तंगी, नौकरी चला जाना, व्यापार का घाटा।

  • अज़-ज़ार्रा (बीमारी और कष्ट): शारीरिक बीमारी, चोट, दुख।

  • व जुल्ज़िलू (घबराहट और भय): मानसिक दबाव, डर का माहौल, समाज का दबाव, युद्ध जैसे हालात।

घ. "यहाँ तक कि पैगंबर और ईमान वाले कहने लगे..." (हत्ता यकूलुर रसूल...):

  • मानवीय कमजोरी: यह दर्शाता है कि परीक्षा की पराकाष्ठा तब होती है जब पैगंबर जैसे महान व्यक्ति और उनके साथी भी इतना घबरा जाते हैं कि वे अल्लाह से मदद की गुहार लगाते हैं। यह उनकी इंसानियत को दर्शाता है, न कि ईमान की कमी को।

  • दुआ की अहमियत: इस स्थिति में उनका एकमात्र सहारा अल्लाह से दुआ और फरियाद ही थी।

ङ. "सुन लो! निश्चय ही अल्लाह की मदद निकट है" (अला इन्न नस्रल्लाहि करीब):

  • आश्वासन: यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हर परीक्षा में घिरे मोमिन के लिए एक ढाढस और आशा की किरण है।

  • वादा: अल्लाह का वादा है कि हर कठिनाई के बाद आसानी है। उसकी मदद आने वाली है, भले ही वह देर से क्यों न आए।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. जन्नत की कीमत: जन्नत मुफ्त में नहीं मिलती। उसे पाने के लिए मुसीबतों और परीक्षाओं में सब्र और ईमान के साथ डटे रहना पड़ता है।

  2. परीक्षा एक नियम है: दुनिया का यह नियम है कि ईमान वालों को अवश्य परखा जाएगा।

  3. सब्र और दुआ: मुसीबत के समय हिम्मत न हारें, सब्र करें और अल्लाह से मदद की दुआ मांगें।

  4. आशा का संचार: हालात चाहे कितने भी बुरे क्यों न हों, मोमिन को हमेशा यह यकीन रखना चाहिए कि अल्लाह की मदद निकट है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत मक्का के उस कठिन दौर में उतरी जब मुसलमानों पर जुल्म का पहाड़ टूटा हुआ था। उन पर बअसा (गरीबी) थी क्योंकि उनका व्यापार बर्बाद कर दिया गया था और उन पर ज़ार्रा (कष्ट) था क्योंकि उन्हें यातनाएं दी जा रही थीं। और वे ज़ुल्ज़िलू (घबरा गए) थे तीन साल के सामाजिक बहिष्कार (शो'अबे अबी तालिब) के दौरान। यह आयत उन्हें धैर्य दिला रही थी और बता रही थी कि यह रास्ता पहले भी लोग तय कर चुके हैं।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज दुनिया भर के मुसलमानों के लिए यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • अत्याचार और युद्ध: फिलिस्तीन आदि में मुसलमानों पर जो जुल्म हो रहे हैं, वह बअसा व ज़ार्रा का आधुनिक रूप है। वे ज़ुल्ज़िलू (घबराए हुए) हैं और पूछ रहे हैं "मता नस्रुल्लाह?" (अल्लाह की मदद कब आएगी?)

  • आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन: दुनिया के कई मुस्लिम देश गरीबी और पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। यह एक सामूहिक परीक्षा है।

  • व्यक्तिगत परीक्षाएँ: हर मोमिन अपने जीवन में बीमारी, आर्थिक नुकसान, मानसिक तनाव जैसी परीक्षाओं से गुजरता है। यह आयत उसे याद दिलाती है कि यह जन्नत का रास्ता है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत नियम: जब तक दुनिया है, ईमान और कुफ्र का संघर्ष बना रहेगा और मोमिनों को परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के मोमिनों के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

  • आशा का स्रोत: भविष्य में जब भी मुसलमानों पर कोई बड़ा संकट आएगा, यह आयत उन्हें यह याद दिलाएगी कि अल्लाह की मदद "करीब" है और उन्हें सब्र और दुआ से काम लेना चाहिए।

  • तैयारी का पाठ: यह आयत भविष्य के मोमिनों को मानसिक रूप से तैयार करती है कि जन्नत का रास्ता आसान नहीं है और उन्हें मुसीबतों के लिए तैयार रहना चाहिए।

निष्कर्ष: आयत 2:214 मोमिन के लिए एक कंघी और एक आईने का काम करती है। यह उसके भ्रम को तोड़ती है, उसे जन्नत के रास्ते की वास्तविकता से अवगत कराती है, और साथ ही उसे हर मुसीबत में सब्र और अल्लाह की मदद पर भरोसा रखने की ताक़वीयत (शक्ति) देती है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य, तीनों कालों के लिए एक जीवंत मार्गदर्शन है।