Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:216 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

كُتِبَ عَلَيْكُمُ ٱلْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَّكُمْ ۖ وَعَسَىٰٓ أَن تَكْرَهُوا۟ شَيْـًٔا وَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ ۖ وَعَسَىٰٓ أَن تُحِبُّوا۟ شَيْـًٔا وَهُوَ شَرٌّ لَّكُمْ ۗ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
كُتِبَफर्ज़ (लिख दिया गया) किया गया
عَلَيْكُمُतुमपर
ٱلْقِتَالُजिहाद / लड़ाई
وَهُوَऔर वह (काम)
كُرْهٌनापसंद / बुरा लगने वाला
لَّكُمْतुम्हारे लिए
وَعَسَىٰٓऔर संभव है / हो सकता है
أَنकि
تَكْرَهُوا۟तुम नापसंद करो
شَيْـًٔاएक चीज़ को
وَهُوَऔर वह (चीज़)
خَيْرٌभलाई है
لَّكُمْतुम्हारे लिए
وَعَسَىٰٓऔर संभव है / हो सकता है
أَنकि
تُحِبُّوا۟तुम पसंद करो
شَيْـًٔاएक चीज़ को
وَهُوَऔर वह (चीज़)
شَرٌّबुराई है
لَّكُمْतुम्हारे लिए
وَٱللَّهُऔर अल्लाह
يَعْلَمُजानता है
وَأَنتُمْऔर तुम
لَا تَعْلَمُونَनहीं जानते

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "तुमपर जिहाद (अल्लाह की राह में लड़ाई) फर्ज़ कर दी गई है, हालाँकि वह तुम्हें नापसंद है। और हो सकता है कि तुम एक चीज़ को नापसंद करो और वही तुम्हारे लिए भलाई हो, और हो सकता है कि तुम एक चीज़ को पसंद करो और वही तुम्हारे लिए बुराई हो। और अल्लाह जानता है, जबकि तुम नहीं जानते।"

सरल व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण और मौलिक आदेश देती है। अल्लाह मुसलमानों को बताता है कि उन पर अल्लाह की राह में लड़ना (जिहाद) अनिवार्य (फर्ज) कर दिया गया है, भले ही यह चीज़ उन्हें अपनी प्रकृति के विरुद्ध और कठिन लगे। फिर अल्लाह एक सार्वभौमिक सत्य समझाता है: अक्सर ऐसा होता है कि जो चीज़ इंसान को बुरी लगती है, वही उसके लिए फायदेमंद साबित होती है। और जो चीज़ वह बहुत पसंद करता है, वही उसके लिए नुकसानदेह हो जाती है। इसलिए, इंसान को अपनी सीमित समझ पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि पूर्ण ज्ञान तो सिर्फ अल्लाह के पास है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत मनोविज्ञान, धर्मशास्त्र और जीवन के दर्शन को एक साथ जोड़ती है।

क. "तुमपर जिहाद फर्ज़ कर दी गई है" (कुतिबा अलैकुमुल किताल):

  • एक फर्ज (अनिवार्य कर्तव्य): यह आयत इस्लाम में जिहाद की हैसियत को स्पष्ट करती है। यह एक ऐसा कर्तव्य है जिसे अल्लाह ने स्वयं मुसलमानों पर अनिवार्य किया है, जब उन पर जुल्म ढाया जाए और ईमान की रक्षा के लिए लड़ना जरूरी हो जाए।

  • रक्षात्मक जिहाद: यह आयत आक्रामक युद्ध की इजाजत नहीं देती, बल्कि उस जिहाद का जिक्र है जो दीन और जान-माल की हिफाजत के लिए लड़ा जाता है।

ख. "हालाँकि वह तुम्हें नापसंद है" (व हुवा कुरहुल लकुम):

  • मानवीय प्रकृति: अल्लाह यहाँ इंसान की फिटरत (प्रकृति) को स्वीकार करता है। आम तौर पर इंसान युद्ध और खूनखराबे से दूर भागता है। उसे शांति और आराम पसंद है। यह आदेश मानवीय प्रवृत्ति के विरुद्ध है, इसलिए वह इसे "कुरह" (नापसंद) कहता है।

ग. "हो सकता है कि तुम एक चीज़ को नापसंद करो और वही तुम्हारे लिए भलाई हो" (व असा अन तक्रहू शैअव व हुवा खैरुल लकुम):

  • दृष्टिकोण का अंतर: यह इस आयत का केंद्रीय संदेश है। अल्लाह का दृष्टिकोण और इंसान का दृष्टिकोण अलग-अलग है। इंसान छोटी और तात्कालिक सुख-सुविधा देखता है, जबकि अल्लाह बड़ी तस्वीर और दीर्घकालिक भलाई देखता है।

  • जिहाद के संदर्भ में: जिहाद में शहादत मौत नहीं, बल्कि अल्लाह के यहाँ शहीद के लिए जन्नत और ऊँचा दर्जा है। यह मुसलमानों के लिए एक tests की तरह है जो उनके ईमान को मजबूत करता है और इस्लाम को बचाता है।

घ. "और अल्लाह जानता है, जबकि तुम नहीं जानते" (वल्लाहु यअ'लमु व अंतुम ला तअ'लमून):

  • ज्ञान की सीमा: यह वाक्य इंसान को उसकी जगह बताता है। इंसान का ज्ञान सीमित और अधूरा है। उसे यह नहीं पता कि भविष्य में क्या होने वाला है या किस चीज़ का क्या परिणाम निकलेगा।

  • अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल): इसलिए, एक मोमिन का काम है अल्लाह के आदेशों पर पूरी तरह से भरोसा करना, भले ही वे उसे समझ में न आएं, क्योंकि अल्लाह हर चीज़ का पूरा ज्ञान रखता है।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. आज्ञाकारिता की परीक्षा: सच्चा ईमान वही है जब इंसान अपनी इच्छाओं और पसंद को अल्लाह के आदेश के आगे ताक पर रख दे।

  2. धैर्य और विश्वास: जीवन में आने वाली कठिनाइयों और मुसीबतों पर धैर्य रखो, क्योंकि हो सकता है उनमें तुम्हारी भलाई छुपी हो।

  3. पसंद-नापसंद पर संदेह: जो चीज़ बहुत पसंद आए, उसके पीछे पागल न बनो, क्योंकि हो सकता है वह तुम्हारे लिए बुराई का कारण बने।

  4. पूर्ण ज्ञान अल्लाह का है: हर हाल में यह याद रखो कि तुम्हारा ज्ञान सीमित है और अंतिम फैसला अल्लाह के ज्ञान पर छोड़ दो।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत उस समय उतरी जब मदीना के मुसलमानों पर जिहाद की जिम्मेदारी डाली गई। मक्का से आए हुए मुहाजिर अपना घर-बार छोड़कर आए थे और उन्हें युद्ध नापसंद था। अंसार (मदीना के सहायक) भी एक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। इस आयत ने उन्हें इस कठिन दायित्व के लिए मानसिक रूप से तैयार किया और समझाया कि यह उनकी अपनी भलाई के लिए है।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
यह आयत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है:

  • व्यक्तिगत जिहाद (जिहाद-ए-नफ्स): आज के संदर्भ में, इस आयत का सबसे बड़ा संदेश व्यक्ति के अपने नफ्स (इच्छाओं) के खिलाफ जिहाद है। गुनाह करना आसान और मीठा लगता है (हम पसंद करते हैं), लेकिन वह हमारे लिए बुराई है। और इबादत और परहेज़गारी कठिन लगती है (हम नापसंद करते हैं), लेकिन वह हमारे लिए भलाई है।

  • कठिन निर्णय: जीवन में कई बार ऐसे कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं जो तात्कालिक रूप से दुखदायी होते हैं, यह आयत ऐसे में हिम्मत देती है।

  • सामूहिक जिहाद: दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों पर जो जुल्म हो रहे हैं, उनके खिलाफ अपनी रक्षा के लिए खड़े होना भी इसी आयत के दायरे में आता है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक दुनिया है, इंसान की पसंद-नापसंद और अल्लाह के आदेशों के बीच यह टकराव बना रहेगा। यह आयत हर युग के मोमिन को यही सबक सिखाती रहेगी।

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और नैतिकता: भविष्य में जैसे-जैसे तकनीक विकसित होगी, इंसान और भी ज्यादा अपनी "समझ" पर घमंड करने लगेगा। यह आयत हमेशा याद दिलाएगी कि "वल्लाहु यअ'लमु व अंतुम ला तअ'लमून" - पूर्ण ज्ञान सिर्फ अल्लाह का है।

  • आशा का संदेश: भविष्य की कोई भी मुसीबत हो, यह आयत मोमिन को यह आश्वासन देगी कि हो सकता है इस मुसीबत में उसकी बहुत बड़ी भलाई छुपी हो।

निष्कर्ष: आयत 2:216 एक ऐसा दर्पण है जो इंसान को उसकी सीमाओं का एहसास कराती है और उसे अल्लाह की असीम ज्ञान और हिकमत पर भरोसा करना सिखाती है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची सफलता अपनी इच्छाओं को अल्लाह की इच्छा के आगे झुकाने में है। यह आयत न केवल युद्ध के संदर्भ में, बल्कि जीवन के हर कठिन निर्णय और परीक्षा में एक मार्गदर्शक और सांत्वना का स्रोत है।