यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की बाईसवीं आयत (2:22) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:22 - "अल्लजी जअला लकुमुल अर्दा फिराशन वस्समाआ इबनाअ व अंज़ला मिनस्समाइ माअन फअखरजा बही मिनस्समराति रिजक़ल्लकुम फला तजअलू लिल्लाहि अन्दादव व अंतुम तअलमून"
(الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَّكُمْ ۖ فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَندَادًا وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ)
हिंदी अर्थ: "वह (अल्लाह) जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिछौना बनाया और आसमान को छत, और आसमान से पानी बरसाया, फिर उस (पानी) के द्वारा तुम्हारे रोज़ी के लिए फल-फूल निकाले। अतः तुम अल्लाह के साझी न बनाओ, जबकि तुम (सच्चाई को) जानते हो।"
यह आयत पिछली आयत (2:21) में दिए गए आह्वान "अपने रब की इबादत करो" को और स्पष्ट करती है। यह बताती है कि क्यों केवल अल्लाह ही इबादत के लायक है। यह अल्लाह के अनगिनत एहसानों (नियामतों) में से कुछ मौलिक एहसानों को गिनाकर इंसान के दिल में उसके प्रति प्रेम, कृतज्ञता और आज्ञाकारिता का भाव पैदा करती है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
अल्लजी (Allazee): जिसने (Who)
जअला (Ja'ala): बनाया (Made)
लकुम (Lakum): तुम्हारे लिए (For you)
अल-अर्दा (Al-arda): धरती को (The earth)
फिराशन (Firaashan): एक बिछौना / गद्दा (A bed)
वस्समाआ (Wassamaa'a): और आसमान को (And the sky)
बिनाअ (Binaa'an): एक छत (A canopy)
व अंज़ला (Wa anzala): और उतारा (And sent down)
मिनस्समाइ (Minassamaa'i): आसमान से (From the sky)
माअन (Maa'an): पानी (Water)
फअखरजा (Fa akhraja): फिर निकाला (Then brought forth)
बही (Bihi): उसके द्वारा (By it)
मिनस्समराति (Minaththamaraati): फलों में से (Of the fruits)
रिजक़ल्लकुम (Rizqal lakum): तुम्हारे लिए रोज़ी (Sustenance for you)
फला तजअलू (Falaa taj'aloo): अतः तुम न बनाओ (So do not set up)
लिल्लाहि (Lillahi): अल्लाह के लिए (For Allah)
अन्दादन (Andaadan): साझी / समकक्ष (Partners / rivals)
व अंतुम तअलमून (Wa antum ta'lamoon): जबकि तुम जानते हो (While you know)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
इस आयत में दो मुख्य भाग हैं:
भाग 1: अल्लाह के एहसान (The Favors of Allah)
आयत इंसान के लिए अल्लाह की चार मौलिक नेमतों (उपहारों) का वर्णन करती है:
धरती को बिछौना बनाना (अल-अर्दा फिराशन):
धरती को समतल, स्थिर और रहने लायक बनाया गया है। यह हमारा घर है जहाँ हम चलते-फिरते, सोते और अपना जीवन व्यतीत करते हैं। यह हमारे लिए एक विशाल, आरामदायक बिस्तर की तरह है।
आसमान को छत बनाना (वस्समाआ इबनाअ):
आसमान एक ऊँची और मजबूत छत की तरह है जो हमें हानिकारक किरणों और खतरों से बचाता है। यह वायुमंडल हमें ऑक्सीजन देता है और तापमान को नियंत्रित रखता है।
आसमान से पानी बरसाना (व अंज़ला मिनस्समाइ माअन):
बारिश का पानी ही वह स्रोत है जो धरती को जीवन देता है। यह पीने, सफाई करने और खेती के लिए अत्यंत आवश्यक है।
रोज़ी के रूप में फल-फूल पैदा करना (फअखरजा बही मिनस्समराति रिजक़ल्लकुम):
बारिश के पानी के द्वारा अल्लाह भूमि से अनाज, फल, सब्जियाँ और तरह-तरह के खाद्य पदार्थ उगाता है, जो हमारा और हमारे पशुओं का पेट भरते हैं। यह हमारी रोज़ी (जीविका) है।
भाग 2: एक स्पष्ट आदेश (A Clear Command)
इन सब एहसानों के बाद, आयत एक तार्किक और दृढ़ आदेश देती है:
"फला तजअलू लिल्लाहि अन्दादव व अंतुम तअलमून" - "अतः तुम अल्लाह के साझी न बनाओ, जबकि तुम (सच्चाई को) जानते हो।"
"अन्दाद" (साझी) क्या हैं? ये वे चीजें हैं जिन्हें इंसान अल्लाह का साझीदार ठहराता है - मूर्तियाँ, तारे, संत, पैगंबर, धन, शक्ति, या कोई और सृष्टि।
"जबकि तुम जानते हो" यह बहुत महत्वपूर्ण वाक्यांश है। इसका अर्थ है कि इंसान की अपनी अंतरात्मा और बुद्धि यह स्वीकार करती है कि ये सारे एहसान केवल एक ही सर्वशक्तिमान सृष्टा की ओर से हैं। फिर भी, अज्ञानता या हठ के कारण वह दूसरों को उसका साझी बना लेता है। यह एक प्रकार का जानबूझकर किया गया अन्याय है।
3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
कृतज्ञता (Shukr) का भाव: यह आयत हमारे अंदर अल्लाह के प्रति कृतज्ञता का भाव पैदा करती है। हमें हर नियामत (पानी, भोजन, सुरक्षा) को हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि उसे अल्लाह का एहसान समझकर उसका शुक्र अदा करना चाहिए।
तौहीद (एकेश्वरवाद) को मजबूत करना: यह आयत हमारे तौहीद को तर्क और भावना दोनों से मजबूत करती है। जब हम अल्लाह की बनाई हुई नेमतों को देखें, तो हमारा दिल स्वतः ही उसकी इबादत की ओर झुक जाए।
शिर्क (अल्लाह का साझी ठहराना) से बचाव: यह आयत शिर्क से स्पष्ट रूप से मना करती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी प्रार्थना, डर और आशा सिर्फ अल्लाह के लिए होनी चाहिए, किसी और के लिए नहीं।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:22 इंसान को अल्लाह की इबादत की ओर बुलाने का एक दृढ़ और तार्किक आधार प्रस्तुत करती है। यह हमें हमारे चारों ओर फैले अल्लाह के एहसानों पर गौर करने को कहती है - धरती का आराम, आसमान की सुरक्षा, बारिश का पानी और अनगिनत रोज़ी के साधन। इन सबके बाद, यह पूछती है कि क्या इतने स्पष्ट प्रमाणों और एहसानों के बाद भी कोई अल्लाह के साथ किसी और को साझी ठहरा सकता है? यह आयत हमारे दिल और दिमाग में यह बात बैठा देती है कि इबादत और आज्ञाकारिता का हक़दार केवल वही एक अल्लाह है जो हमारा पालनहार और रोज़ी देने वाला है।