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कुरआन की आयत 2:226 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

لِلَّذِينَ يُؤْلُونَ مِن نِّسَآئِهِمْ تَرَبُّصُ أَرْبَعَةِ أَشْهُرٍ ۖ فَإِن فَآءُو فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
لِلَّذِينَउन लोगों के लिए
يُؤْلُونَजो इला करते हैं (कसम खाकर संबंध तोड़ने की शपथ)
مِنसे
نِّسَآئِهِمْअपनी पत्नियों से
تَرَبُّصُइंतज़ार (की मियाद) है
أَرْبَعَةِचार
أَشْهُرٍमहीनों का
ۖ فَإِنफिर अगर
فَآءُوवे लौट आए (शपथ तोड़कर संबंध बहाल किए)
فَإِنَّतो निश्चित रूप से
ٱللَّهَअल्लाह
غَفُورٌबड़ा क्षमा करने वाला है
رَّحِيمٌबड़ा दयावान है

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "जो लोग अपनी पत्नियों से इला करते हैं (कसम खाकर संबंध तोड़ने की शपथ लेते हैं), उनके लिए चार महीने की प्रतीक्षा की अवधि है। फिर अगर वे (इस दौरान) लौट आए (शपथ तोड़ दें), तो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है।"

सरल व्याख्या:
यह आयत एक विशेष सामाजिक स्थिति का समाधान प्रस्तुत करती है, जिसे "इला" कहा जाता है। इला तब होता है जब कोई पुरुष अल्लाह की कसम खाकर शपथ ले लेता है कि वह अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध नहीं रखेगा। यह एक प्रकार की अनौपचारिक तलाक जैसी स्थिति पैदा कर देता है, जिसमें पत्नी न तो पत्नी के रूप में रह पाती है और न ही उसे तलाक मुक्त होने का दर्जा मिल पाता है। अल्लाह इस आयत में इस अनिश्चित स्थिति को सुलझाता है। वह कहता है कि ऐसे पुरुष को चार महीने का समय दिया जाएगा। अगर वह इन चार महीनों के भीतर अपनी शपथ तोड़कर पत्नी के पास लौट आता है और संबंध बहाल कर लेता है, तो अल्लाह उसकी कसम तोड़ने को माफ कर देगा, क्योंकि वह गफूर (क्षमाशील) और रहीम (दयालु) है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत पारिवारिक जीवन में स्थिरता लाने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है।

क. "इला" क्या है? (लिल्लजीना यू'लूना मिन निसाइहिम)

  • परिभाषा: इला एक धार्मिक शपथ है जिसमें पति अल्लाह की कसम खाकर यह प्रतिज्ञा करता है कि वह एक निश्चित अवधि के लिए या अनिश्चित काल के लिए अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध नहीं रखेगा।

  • उद्देश्य: यह आमतौर पर गुस्से या झगड़े की स्थिति में किया जाता था ताकि पत्नी को सजा दी जा सके या उस पर दबाव डाला जा सके।

  • समस्या: इससे पत्नी एक कानूनी अनिश्चितता में फंस जाती थी। वह न तो पूरी पत्नी का दर्जा रखती थी और न ही उसे दूसरी शादी का अवसर मिल पाता था। यह एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक उत्पीड़न था।

ख. "चार महीने की प्रतीक्षा की अवधि" (तरब्बुसु अर्बा'ति अशहुर)

  • एक समाधान के रूप में समय सीमा: अल्लाह इस अनिश्चितता को दूर करता है। वह एक अधिकतम समय सीमा निर्धारित करता है - चार महीने

  • शीतलन अवधि (Cooling-off Period): यह अवधि पति के लिए एक "शीतलन अवधि" का काम करती है। उसे गुस्सा शांत करने और अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का मौका मिलता है।

  • पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा: यह समय सीमा पत्नी को इस अनिश्चितता से मुक्ति दिलाती है। अगर चार महीने बीत जाने के बाद भी पति संबंध नहीं बहाल करता, तो यह स्वतः ही एक तलाक (तलाक-ए-बाइन) माना जाएगा और पत्नी अपनी इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) पूरी करके दूसरी शादी करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी।

ग. "फिर अगर वे लौट आए, तो अल्लाह क्षमाशील, दयावान है" (फा इन फाऊ फा इन्नल्लाहा गफूरुर रहीम)

  • पुनर्मिलन के लिए प्रोत्साहन: अल्लाह चाहता है कि परिवार बने रहें। अगर पति चार महीने के भीतर अपनी शपथ तोड़कर (कफ्फारा देकर) पत्नी के पास लौट आता है, तो अल्लाह उसकी इस कार्रवाई को स्वीकार करेगा और उसे माफ कर देगा।

  • अल्लाह की दया: यह वाक्य फिर से अल्लाह की गफ़्र (क्षमा) और रहम (दया) को रेखांकित करता है। वह नहीं चाहता कि एक गुस्से में खाई गई कसम परिवार को तबाह कर दे।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. परिवार का महत्व: इस्लाम परिवार की इकाई को बचाने और उसे तोड़ने से रोकने पर जोर देता है।

  2. महिलाओं के अधिकार: इस्लाम ने महिलाओं को कानूनी अनिश्चितता और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न से बचाने के लिए स्पष्ट नियम बनाए।

  3. गुस्से पर नियंत्रण: गुस्से में लिए गए फैसले अक्सर गलत होते हैं। इस्लाम ऐसे फैसलों पर अंकुश लगाता है और "शीतलन अवधि" का प्रावधान करता है।

  4. अल्लाह की दया पर भरोसा: अल्लाह की दया इतनी विशाल है कि वह गुस्से में की गई गलतियों को भी माफ कर देता है, बशर्ते इंसान सुधर जाए।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
जाहिलीय्यत (इस्लाम से पहले के अरब समाज) में, पुरुष अनिश्चित काल के लिए 'इला' कर सकते थे, जिससे औरतों की जिंदगी नर्क बन जाती थी। यह आयत एक सामाजिक कुरीति को समाप्त करने और महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए आई। इसने एक स्पष्ट समय सीमा तय करके पारिवारिक जीवन में न्याय और स्थिरता लाई।

वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार: आज भी कुछ पुरुष अपनी पत्नियों के साथ मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार के एक तरीके के रूप में "साइलेंट ट्रीटमेंट" या संबंधों को ठंडा कर देते हैं। यह आयत ऐसे व्यवहार पर एक धार्मिक और नैतिक अंकुश लगाती है।

  • कानूनी स्पष्टता: इस्लामी पारिवारिक कानून में, 'इला' आज भी एक मान्य अवधारणा है। यह आयत आधुनिक इस्लामी न्यायालयों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करती है कि ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जाए।

  • पारिवारिक सुलह: यह आयत जोड़ों को समय देकर और पुनर्मिलन का रास्ता खोलकर परिवारों को बचाने का संदेश देती है, जो आज के तेज रफ्तार जीवन में बहुत जरूरी है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत कानून: जब तक विवाह और परिवार की संस्था रहेगी, झगड़े और गुस्से की स्थितियाँ बनी रहेंगी। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक न्यायसंगत और दयापूर्ण समाधान प्रस्तुत करती रहेगी।

  • महिला अधिकारों की गारंटी: यह आयत हमेशा इस बात की गारंटी के रूप में काम करेगी कि किसी महिला को एक अनिश्चित और दर्दनाक वैवाहिक स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता।

  • अल्लाह की दया का स्मरण: "इन्नल्लाहा गफूरुर रहीम" का सिद्धांत हर युग के मोमिन को यह याद दिलाता रहेगा कि सुधार और मेल-मिलाप का दरवाजा हमेशा खुला है और अल्लाह दया और क्षमा का स्रोत है।

निष्कर्ष: आयत 2:226 इस्लाम के व्यावहारिक और न्यायसंगत स्वरूप को दर्शाती है। यह केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं है, बल्कि एक गहरी मानवीय समझ और दया का प्रतीक है। यह परिवार को बचाती है, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करती है, और गुस्से में लिए गए गलत फैसलों को सुधारने का मौका देती है। यह अतीत की एक कुरीति का समाधान, वर्तमान के लिए एक मार्गदर्शक, और भविष्य के लिए एक शाश्वत सिद्धांत है।