Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:225 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

لَّا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغْوِ فِىٓ أَيْمَـٰنِكُمْ وَلَـٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتْ قُلُوبُكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
لَّاनहीं
يُؤَاخِذُكُمُपकड़ता है तुम्हें / सज़ा देता है
ٱللَّهُअल्लाह
بِٱللَّغْوِबेकार / अनजाने में कही गई बातों से
فِىٓमें
أَيْمَـٰنِكُمْतुम्हारी कसमों के
وَلَـٰكِنलेकिन
يُؤَاخِذُكُمपकड़ता है तुम्हें / सज़ा देता है
بِمَاउस चीज़ से
كَسَبَتْकमाया है
قُلُوبُكُمْतुम्हारे दिलों ने
ۗ وَٱللَّهُऔर अल्लाह
غَفُورٌबहुत क्षमा करने वाला है
حَلِيمٌबहुत सहनशील है

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "अल्लाह तुम्हें तुम्हारी कसमों में अनजाने में कही गई बातों के लिए नहीं पकड़ता, लेकिन वह तुम्हें उन बातों के लिए पकड़ता है जो तुम्हारे दिलों ने कमाई हैं (जानबूझकर की गई)। और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, सहनशील है।"

सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:224) के संदर्भ को आगे बढ़ाती है और अल्लाह की दया और न्याय को दर्शाती है। अल्लाह स्पष्ट करता है कि वह उन कसमों के लिए इंसान को दोषी नहीं ठहराता जो बिना सोचे-समझे, गलती से या आदतन निकल जाती हैं। लेकिन, अल्लाह उन कसमों के लिए जिम्मेदार ठहराता है जो दिल की गहराई से, जानबूझकर और एक स्पष्ट इरादे के साथ खाई जाती हैं। आयत का अंत इस आश्वासन के साथ होता है कि अल्लाह गफूर (अत्यंत क्षमाशील) और हलीम (अत्यंत सहनशील) है, यानी वह मानवीय कमजोरियों को समझता है और माफ करने में देरी करता है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत अल्लाह के ज्ञान, न्याय और दया के बीच के संतुलन को प्रकट करती है।

क. "अनजाने में कही गई कसमों" (बिल-लगवि फी ऐमानिकुम):

  • अल-लगव का अर्थ: इसके कई मतलब हैं:

    • बिना इरादे की कसम: वह कसम जो आदतन या बातचीत के दौरान बिना किसी गंभीर इरादे के निकल जाए। जैसे, "अल्लाह की कसम, यह काम तो होकर रहेगा," जबकि दिल में कोई गंभीर प्रतिज्ञा न हो।

    • गलती से कही गई कसम: ऐसी कसम जो भूलवश या ग़ुस्से में बिना सोचे-समझे कह दी जाए।

    • झूठी कसम का डर: कभी-कभी इंसान गलती से कोई ऐसी कसम खा बैठता है जो उसकी नियत के विपरीत है, और फिर उसे डर लगने लगता है। अल्लाह ऐसे डर को दूर करता है।

ख. "जो तुम्हारे दिलों ने कमाई हैं" (बिमा कसबत कुलूबुकुम):

  • इरादे की अहमियत: यह इस्लाम का एक मौलिक सिद्धांत है - "इन्नमल आ'मालु बिन-निय्यात" (हर कर्म का दारोमदार नीयत पर है)। अल्लाह बाहरी शब्दों से ज्यादा दिल के इरादे को देखता है।

  • जानबूझकर खाई गई कसम: अगर कोई व्यक्ति पूरे इरादे और जानकारी के साथ कोई कसम खाता है, खासकर कोई गलत या झूठी कसम, तो अल्लाह उसे उसके लिए जिम्मेदार ठहराएगा। उदाहरण के लिए, कोई जानबूझकर झूठी कसम खाकर किसी का हक मारता है।

ग. "और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, सहनशील है" (वल्लाहु गफूरुन हलीम):

  • गफूर (क्षमाशील): अल्लाह की यह सिफ़त बताती है कि वह माफ करने वाला है। अगर कोई अनजाने में कोई गलती कर बैठे और फिर तौबा कर ले, तो अल्लाह उसे माफ कर देता है।

  • हलीम (सहनशील): यह सिफ़त बताती है कि अल्लाह जल्दी सजा नहीं देता। वह इंसान को सुधार का मौका देता है और उसकी गलतियों पर तुरंत पकड़ नहीं करता।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. नीयत (इरादे) का महत्व: अल्लाह के यहाँ इंसान का इरादा सबसे ज्यादा मायने रखता है। बिना इरादे की गलतियाँ माफ हैं।

  2. अल्लाह की दया और समझ: अल्लाह इंसान की कमजोरियों और भूलों को समझता है और उस पर दया करता है। वह एक कठोर शासक नहीं है।

  3. जिम्मेदारी का बोध: जानबूझकर किए गए बुरे कर्मों और कसमों के लिए इंसान जिम्मेदार है।

  4. आशा और भय का संतुलन: यह आयत मोमिन के दिल में अल्लाह की माफी की आशा और उसकी सजा का डर, दोनों पैदा करती है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
यह आयत उस समय के लोगों के लिए एक बहुत बड़ी राहत और मार्गदर्शन थी जो छोटी-छोटी बातों पर कसमें खा लेते थे और फिर उन कसमों के टूट जाने के डर से घबराते रहते थे। इसने उन्हें यह समझाया कि अल्लाह उनकी मजबूरियों और अनजाने में हुई गलतियों को समझता है।

वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के युग में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:

  • मानसिक शांति: आज के तनाव भरे जीवन में, लोग अक्सर बिना सोचे-समझे बोल देते हैं। कभी-कभी वे कुछ ऐसा कह बैठते हैं जिसका उनका दिल से कोई इरादा नहीं होता। यह आयत ऐसे लोगों के लिए मानसिक शांति और सांत्वना का स्रोत है।

  • धार्मिक कट्टरपन से बचाव: कुछ लोग हर छोटी-बड़ी बात को धर्म का विषय बना देते हैं और लोगों को उनकी मासूम गलतियों के लिए डराते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि अल्लाह उतना कठोर नहीं है जितना कुछ लोग बताते हैं।

  • ईमानदारी की शिक्षा: यह आयत हमें सिखाती है कि असली ईमानदारी दिल की ईमानदारी है। बाहर से सही दिखना जरूरी नहीं, बल्कि दिल का साफ होना जरूरी है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत दया का सिद्धांत: जब तक इंसान है, वह गलतियाँ करता रहेगा। यह आयत कयामत तक हर मोमिन को यह आश्वासन देती रहेगी कि अल्लाह की दया उसकी गुस्से से बहुत बड़ी है।

  • आंतरिक इरादे पर जोर: भविष्य की दुनिया और भी जटिल होगी, जहाँ बाहरी दिखावे की संस्कृति और भी मजबूत होगी। यह आयत हमेशा यह याद दिलाएगी कि अल्लाह के यहाँ दिल का हाल मायने रखता है, दिखावा नहीं।

  • आशा का स्रोत: भविष्य में जब भी कोई मोमिन कोई मासूम गलती कर बैठेगा, यह आयत उसे निराशा में डूबने से बचाएगी और अल्लाह की क्षमा की ओर उसका रुख कराएगी।

निष्कर्ष: आयत 2:225 अल्लाह की असीम दया और उसकी गहरी समझ का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि इस्लाम डर और दबाव का धर्म नहीं, बल्कि आशा और मार्गदर्शन का धर्म है। यह इंसान की कमजोरियों को पहचानती है और उसे सुधार का अवसर देती है। यह आयत हर मोमिन के दिल में अल्लाह के प्रति प्यार और विश्वास पैदा करती है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य, तीनों कालों के लिए एक सांत्वना, एक मार्गदर्शन और एक आशा का स्रोत है।