१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
وَلَا تَجْعَلُوا۟ ٱللَّهَ عُرْضَةً لِّأَيْمَـٰنِكُمْ أَن تَبَرُّوا۟ وَتَتَّقُوا۟ وَتُصْلِحُوا۟ بَيْنَ ٱلنَّاسِ ۚ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| وَلَا | और नहीं |
| تَجْعَلُوا۟ | बना लो / ठहरा लो |
| ٱللَّهَ | अल्लाह को |
| عُرْضَةً | बहाना / रुकावट |
| لِّأَيْمَـٰنِكُمْ | अपनी कसमों के लिए |
| أَن | कि (इस बात पर कि) |
| تَبَرُّوا۟ | तुम भलाई करो |
| وَتَتَّقُوا۟ | और डरो (परहेज़गारी करो) |
| وَتُصْلِحُوا۟ | और सुलह कराओ |
| بَيْنَ | के बीच |
| ٱلنَّاسِ | लोगों के |
| وَٱللَّهُ | और अल्लाह |
| سَمِيعٌ | सुनने वाला है |
| عَلِيمٌ | जानने वाला है |
३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "और अपनी कसमों को अल्लाह के नाम पर इस बात का बहाना न बनाओ कि तुम भलाई करोगे, परहेज़गारी करोगे और लोगों के बीच सुलह कराओगे। और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक और नैतिक सिद्धांत स्थापित करती है। अल्लाह लोगों को चेतावनी देता है कि वे अल्लाह के नाम पर झूठी या अनावश्यक कसमें खाकर अपने लिए बंधन न बनाएँ। विशेष रूप से, कोई यह कसम न खाए कि "मैं अल्लाह की कसम खाता हूँ कि मैं भलाई नहीं करूंगा," या "मैं किसी से मेल-जोल नहीं रखूंगा," या "मैं झगड़े सुलझाने का काम नहीं करूंगा।" ऐसी कसमें खाना, जो इंसान को नेक कामों से रोकती हों, गलत है। अल्लाह का नाम भलाई, पवित्रता और सुलह के कामों में रुकावट बनाने के लिए नहीं है। आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि अल्लाह हर बात सुनता और जानता है।
४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)
यह आयत अल्लाह के नाम की गरिमा और नेक कामों की प्राथमिकता के बारे में है।
क. "अल्लाह को अपनी कसमों का बहाना न बनाओ" (ला तज'alुल्लाहा उरदतल लि-ऐमानिकुम):
कसमों का दुरुपयोग: यह आयत उन लोगों की ओर इशारा करती है जो छोटी-छोटी बातों पर अल्लाह की कसमें खा लेते थे, और फिर उन कसमों का बहाना बनाकर अच्छे काम करने से रुक जाते थे। उदाहरण के लिए, कोई किसी रिश्तेदार से नाराज़ होकर कसम खा लेता, "अल्लाह की कसम, मैं उससे कभी बात नहीं करूंगा," भले ही वह रिश्तेदार मेल-जोल चाहता हो।
अल्लाह का नाम सम्मान के योग्य है: अल्लाह का पवित्र नाम बुराइयों और गलत कामों के लिए एक "उरदा" (बाधा या दीवार) बनाने के लिए नहीं है। बल्कि, उसका नाम अच्छाइयों के दरवाजे खोलने के लिए है।
ख. वे तीन नेक काम जिनसे कभी नहीं रुकना चाहिए:
आयत तीन विशेष नेकीयों का जिक्र करती है जिन्हें किसी भी कसम के बहाने नहीं छोड़ना चाहिए:
अल-बिर्र (भलाई करना): माता-पिता की सेवा, रिश्तेदारों से अच्छा व्यवहार, गरीबों की मदद, और हर तरह का भला काम।
अत-तक्वा (परहेज़गारी): गुनाहों से बचना और अल्लाह से डरते रहना। कोई कसम इंसान को गुनाह करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
अल-इस्लाह (सुलह कराना): लोगों के बीच झगड़े मिटाना और रिश्तों को सुधारना। यह एक बहुत बड़ा पुण्य का काम है।
ग. "और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है" (वल्लाहु समी'उन अलीम):
एक चेतावनी: यह वाक्य एक गहरी चेतावनी देता है। अल्लाह तुम्हारी हर कसम सुन रहा है और वह जानता है कि तुम्हारी नीयत क्या है। क्या तुम सच में अल्लाह का नाम लेकर उसके मनपसंद कामों को रोक रहे हो?
हर बात का हिसाब: इसका मतलब यह भी है कि अल्लाह के सामने किसी कसम का बहाना नहीं चलेगा कि "मैंने कसम खा ली थी इसलिए मैंने भलाई नहीं की।"
प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):
अल्लाह के नाम का सम्मान: अल्लाह के पवित्र नाम का इस्तेमाल हल्के ढंग से या गलत कामों के लिए नहीं करना चाहिए।
नेकी सर्वोच्च है: कोई भी कसम या बहाना ऐसा नहीं होना चाहिए जो इंसान को भलाई, परहेज़गारी और सुलह जैसे महान कामों से रोके।
कसमों में सोच-समझकर: कसमें सोच-समझकर और केवल जरूरी मामलों में ही खानी चाहिए। अनावश्यक कसमें इंसान को धार्मिक और सामाजिक समस्याओं में फंसा देती हैं।
अल्लाह की सर्वज्ञता: हमेशा यह याद रखो कि अल्लाह हर चीज सुनता और जानता है, इसलिए उसके नाम का दुरुपयोग करने से बचो।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
अरब समाज में जाहिलिय्यत (अज्ञानता) के समय कसमों का बहुत अधिक और गलत इस्तेमाल होता था। लोग हर छोटी-बड़ी बात पर कसमें खा लेते थे और फिर उन कसमों के कारण रिश्ते तोड़ देते थे, भलाई करने से मुंह मोड़ लेते थे और झगड़े बढ़ा देते थे। इस आयत ने इस गलत प्रथा पर रोक लगाई और सिखाया कि अल्लाह का नाम लेकर अल्लाह के कामों को नहीं रोका जा सकता।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
आज के समाज में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
रिश्तों में कड़वाहट: आज भी लोग गुस्से में आकर ऐसी बातें कह देते हैं या कसमें खा लेते हैं जो रिश्तों में दरार डाल देती हैं। यह आयत हमें सिखाती है कि गुस्से में की गई कसमों के बहाने रिश्ते नहीं तोड़ने चाहिए।
सामाजिक जिम्मेदारी से भागना: कोई व्यक्ति यह कहकर कि "मैंने कसम खा ली है," समाज सेवा या लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हट सकता।
झूठी धार्मिकता: कुछ लोग धार्मिक कर्मकांडों को पूरा करने के चक्कर में अपने परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं। यह आयत बताती है कि अल्लाह को वह पसंद नहीं जो लोग उसके नाम पर भलाई करने से रुक जाएं।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत सिद्धांत: जब तक इंसानी समाज रहेगा, लोगों के बीच कसमों और वादों का सिलसिला चलता रहेगा। यह आयत हमेशा यह मार्गदर्शन देती रहेगी कि नेकी और सुलह को किसी भी कसम से ऊपर रखना चाहिए।
नैतिक कम्पास: भविष्य की जटिल सामाजिक परिस्थितियों में, यह आयत एक नैतिक कम्पास का काम करेगी, जो यह बताएगी कि किसी भी धार्मिक या सामाजिक बंधन से ऊपर मानवता की भलाई है।
अल्लाह के ज्ञान का स्मरण: "वल्लाहु समी'उन अलीम" का सिद्धांत हर युग के मोमिन को यह याद दिलाता रहेगा कि उसका हर वचन और हर इरादा अल्लाह के सामने है।
निष्कर्ष: आयत 2:224 एक सूक्ष्म लेकिन गहन सामाजिक और नैतिक सुधार की आयत है। यह हमें सिखाती है कि धर्म का उद्देश्य इंसान को जकड़ना नहीं, बल्कि उसे भलाई और सुलह के लिए मुक्त करना है। अल्लाह का नाम डर और रुकावट का नहीं, बल्कि आशा और अच्छाई का प्रतीक है। यह आयत अतीत की गलत प्रथाओं को दूर करती है, वर्तमान के लिए एक मार्गदर्शक है और भविष्य के लिए एक शाश्वत सिद्धांत स्थापित करती है।