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कुरआन की आयत 2:232 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)

وَإِذَا طَلَّقْتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعْضُلُوهُنَّ أَن يَنكِحْنَ أَزْوَٰجَهُنَّ إِذَا تَرَٰضَوْا۟ بَيْنَهُم بِٱلْمَعْرُوفِ ۗ ذَٰلِكَ يُوعَظُ بِهِۦ مَن كَانَ مِنكُمْ يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ ۗ ذَٰلِكُمْ أَزْكَىٰ لَكُمْ وَأَطْهَرُ ۗ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
وَإِذَاऔर जब
طَلَّقْتُمُतुमने तलाक दिया
ٱلنِّسَآءَऔरतों को
فَبَلَغْنَतो पहुँच गईं
أَجَلَهُنَّउनकी मियाद (इद्दत)
فَلَاतो नहीं
تَعْضُلُوهُنَّउन्हें रोको
أَنकि
يَنكِحْنَवे निकाह करें
أَزْوَٰجَهُنَّअपने (पूर्व) पतियों से
إِذَاजब
تَرَٰضَوْا۟राज़ी हो गए हों
بَيْنَهُمउनके बीच
بِٱلْمَعْرُوفِभले तरीके से
ۗ ذَٰلِكَयह (नसीहत)
يُوعَظُसमझाई जाती है
بِهِۦइसके द्वारा
مَنजो कोई
كَانَथा
مِنكُمْतुम में से
يُؤْمِنُईमान रखता है
بِٱللَّهِअल्लाह पर
وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِऔर आख़िरत के दिन पर
ۗ ذَٰلِكُمْवह (रास्ता)
أَزْكَىٰअधिक पवित्र है
لَكُمْतुम्हारे लिए
وَأَطْهَرُऔर अधिक स्वच्छ है
ۗ وَٱللَّهُऔर अल्लाह
يَعْلَمُजानता है
وَأَنتُمْऔर तुम
لَا تَعْلَمُونَनहीं जानते

३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "और जब तुम औरतों को तलाक दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें इस बात से मत रोको कि वे अपने (पूर्व) पतियों से निकाह कर लें, जबकि वे आपस में भले तरीके से राजी हो गए हों। यह (नसीहत) उसे दी जाती है जो तुम में से अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है। यह (रास्ता) तुम्हारे लिए अधिक पवित्र और स्वच्छ है। और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।"

सरल व्याख्या:
यह आयत तलाक के बाद पुनर्विवाह में एक बहुत ही महत्वपूर्ण नैतिक और सामाजिक मार्गदर्शन देती है। अल्लाह उन वालियों (अभिभावकों) को संबोधित करता है जिनकी तलाकशुदा महिलाएँ उनकी क़ौम (अनुरक्षण) में होती हैं। आयत कहती है कि जब एक तलाकशुदा महिला अपनी इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) पूरी कर ले, और वह और उसका पूर्व पति दोबारा निकाह करने पर आपसी सहमति और अच्छे तरीके से राजी हो जाएँ, तो उसके अभिभावकों को उसे रोकने का कोई अधिकार नहीं है। यह नसीहत उसी व्यक्ति के लिए है जो अल्लाह और आखिरत पर सच्चा ईमान रखता है। यही रास्ता समाज के लिए ज्यादा पवित्र और स्वच्छ है। आयत का अंत इस सच्चाई के साथ होता है कि अल्लाह ही सब कुछ जानता है, जबकि इंसान का ज्ञान सीमित है।

४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)

यह आयत महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक न्याय पर जोर देती है।

क. "उन्हें मत रोको" (फला तअदुलूहुनna):

  • अद्ल (रोक) का अर्थ: इसका मतलब है किसी महिला को जबरदस्ती उसके निकाह या पुनर्विवाह से रोकना। यहाँ विशेष रूप से उस स्थिति का जिक्र है जब पूर्व पति-पत्नी दोबारा शादी करना चाहते हैं।

  • अभिभावकों की भूमिका: जाहिलीय्यत के समय में, महिला के अभिभावक (वली) अक्सर जबरदस्ती करते थे और उसे दोबारा शादी करने से रोकते थे, खासकर अगर पति गरीब हो या कोई और स्वार्थ हो। इस आयत ने उस गलत प्रथा पर रोक लगाई।

ख. "जबकि वे आपस में भले तरीके से राजी हो गए हों" (इज़ा तरादव बैनहुम बिल-मारूफ):

  • आपसी सहमति (तरादी): निकाह की पहली शर्त आपसी रज़ामंदी है। अगर पूर्व पति-पत्नी अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेकर दोबारा एक होना चाहते हैं, तो यह एक बहुत ही सराहनीय बात है।

  • बिल-मारूफ (भले तरीके से): यह रज़ामंदी किसी दबाव या धोखे से नहीं, बल्कि खुले दिल और अच्छे इरादे से होनी चाहिए।

ग. "यह नसीहत उसे दी जाती है जो ईमान रखता है" (ज़ारलिका यूअज़ू बिही मन काना मिनकुम यू'मिनु बिल्लाहि...):

  • ईमान और आचरण का रिश्ता: असली ईमान सिर्फ नमाज-रोजे तक सीमित नहीं है। यह हमारे सामाजिक व्यवहार और नैतिकता में भी दिखना चाहिए। जो अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखता है, वह दूसरों के अधिकारों का सम्मान करेगा और उन्हें रोकेगा नहीं।

  • एक चेतावनी: यह वाक्य एक सूक्ष्म चेतावनी है कि अगर कोई व्यक्ति महिला को रोकता है, तो यह उसके ईमान की कमजोरी को दर्शाता है।

घ. "यही तुम्हारे लिए अधिक पवित्र और स्वच्छ है" (ज़ारलिकुम अज़का लकुम व अतहर):

  • सामाजिक शुद्धता: जब लोग आपसी रज़ामंदी से रिश्ते बनाएंगे और जबरदस्ती नहीं करेंगे, तो समाज में पाप, झगड़े और बुराइयाँ कम होंगी। यह समाज के लिए एक "शुद्ध" और "स्वच्छ" रास्ता है।

  • पारिवारिक स्थिरता: अगर पूर्व पति-पत्नी दोबारा शादी करते हैं, तो इससे परिवार बच सकता है और बच्चों को एक स्थिर माहौल मिल सकता है, जो सामाजिक तौर पर एक बेहतर स्थिति है।

ङ. "और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते" (वल्लाहु यअ'लमु व अंतुम ला तअ'लमून):

  • दिव्य ज्ञान बनाम मानवीय अज्ञान: अभिभावक शायद यह सोचकर रोक रहे हों कि यह लड़की के लिए अच्छा नहीं है, लेकिन अल्लाह ही बेहतर जानता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा।

  • विश्वास का आह्वान: इस वाक्य से हमें सीख मिलती है कि हमें अल्लाह के नियमों पर विश्वास करना चाहिए, भले ही हमें उनकी पूरी हिकमत समझ में न आए।

प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):

  1. महिलाओं का अधिकार: एक वयस्क और तलाकशुदा महिला को अपने पुनर्विवाह का अधिकार है और उसे जबरदस्ती रोका नहीं जाना चाहिए।

  2. आपसी सहमति का महत्व: विवाह और पुनर्विवाह की नींव आपसी सहमति और रज़ामंदी पर होनी चाहिए।

  3. ईमान की जिम्मेदारी: ईमान सिर्फ इबादत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना और अच्छा व्यवहार करना सिखाता है।

  4. अल्लाह की हिकमत पर भरोसा: हमें अल्लाह के बनाए नियमों में छिपी बुद्धिमत्ता पर भरोसा करना चाहिए।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:
जाहिलीय्यत के समय में, महिलाओं को उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए मजबूर किया जाता था या दोबारा शादी करने से रोका जाता था। खासकर तलाकशुदा महिलाओं के साथ उनके अभिभावक जबरदस्ती करते थे। इस आयत ने महिलाओं को उनका कानूनी और सामाजिक अधिकार दिलाया और अभिभावकों की मनमानी पर रोक लगाई।

वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • महिला सशक्तिकरण: आज भी कई समाजों में महिलाओं को उनकी शादी या पुनर्विवाह के मामले में जबरदस्ती का सामना करना पड़ता है। यह आयत आज भी उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शक है जो महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हैं।

  • पारिवारिक दबाव: आज भी कई परिवार "घर की इज्जत" के नाम पर तलाकशुदा महिलाओं को दोबारा शादी करने से रोकते हैं या उन पर दबाव डालते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि अगर पति-पत्नी आपस में राजी हैं, तो किसी तीसरे को रोकने का अधिकार नहीं है।

  • सामाजिक कलंक: तलाकशुदा महिलाओं को आज भी समाज में कलंक का सामना करना पड़ता है। यह आयत इस कलंक को दूर करने और महिला को एक नया जीवन शुरू करने का अधिकार देती है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत अधिकार: जब तक समाज है, महिलाओं के अधिकारों और उन पर होने वाली जबरदस्ती का मुद्दा बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि महिला की रज़ामंदी और उसके अधिकार सर्वोपरि हैं।

  • नैतिक आधार: "यही तुम्हारे लिए अधिक पवित्र और स्वच्छ है" का सिद्धांत भविष्य के समाजों के लिए एक नैतिक आधार प्रदान करेगा, जो बताएगा कि न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित समाज ही सबसे शुद्ध और टिकाऊ होता है।

  • ज्ञान की सीमा का स्मरण: "अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते" का सिद्धांत भविष्य के मनुष्य को उसकी सीमाओं का एहसास कराएगा और उसे अल्लाह की हिकमत पर भरोसा करना सिखाएगा।

निष्कर्ष: आयत 2:232 एक शक्तिशाली आयत है जो महिलाओं के अधिकारों, सामाजिक न्याय और नैतिक ईमान की रक्षा करती है। यह अभिभावकों की मनमानी पर रोक लगाती है और महिला की इच्छा और सहमति को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। यह अतीत में एक क्रांतिकारी सुधार थी, वर्तमान में एक प्रासंगिक मार्गदर्शक और भविष्य के लिए एक शाश्वत नैतिक चार्टर है।