१. आयत का अरबी पाठ (Arabic Verse)
وَٱلْوَٰلِدَٰتُ يُرْضِعْنَ أَوْلَـٰدَهُنَّ حَوْلَيْنِ كَامِلَيْنِ ۖ لِمَنْ أَرَادَ أَن يُتِمَّ ٱلرَّضَاعَةَ ۚ وَعَلَى ٱلْمَوْلُودِ لَهُۥ رِزْقُهُنَّ وَكِسْوَتُهُنَّ بِٱلْمَعْرُوفِ ۚ لَا تُكَلَّفُ نَفْسٌ إِلَّا وُسْعَهَا ۚ لَا تُضَآرَّ وَٰلِدَةٌۢ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوْلُودٌ لَّهُۥ بِوَلَدِهِۦ ۚ وَعَلَى ٱلْوَارِثِ مِثْلُ ذَٰلِكَ ۗ فَإِنْ أَرَادَا فِصَالًا عَن تَرَاضٍ مِّنْهُمَا وَتَشَاوُرٍ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا ۗ وَإِنْ أَرَدتُّمْ أَن تَسْتَرْضِعُوٓا۟ أَوْلَـٰدَكُمْ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِذَا سَلَّمْتُم مَّآ ءَاتَيْتُم بِٱلْمَعْرُوفِ ۗ وَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
२. शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| وَٱلْوَٰلِدَٰتُ | और माएँ |
| يُرْضِعْنَ | दूध पिलाएँ |
| أَوْلَـٰدَهُنَّ | अपनी संतानों को |
| حَوْلَيْنِ | दो साल |
| كَامِلَيْنِ | पूरे |
| ۖ لِمَنْ | उसके लिए जो |
| أَرَادَ | चाहता है |
| أَن يُتِمَّ | कि पूरा करे |
| ٱلرَّضَاعَةَ | दूध पिलाना |
| ۚ وَعَلَى | और पर है |
| ٱلْمَوْلُودِ | जिसके लिए बच्चा पैदा हुआ (पिता) पर |
| لَهُۥ | उसका |
| رِزْقُهُنَّ | उन (माताओं) का गुज़ारा |
| وَكِसْوَتُهُنَّ | और उनके कपड़े |
| بِٱلْمَعْرُوفِ | भले तरीके से |
| ۚ لَا | नहीं |
| تُكَلَّفُ | जिम्मेदार ठहराई जाती है |
| نَفْسٌ | कोई जान |
| إِلَّا | मगर |
| وُسْعَهَا | उसकी सामर्थ्य के अनुसार |
| ۚ لَا | नहीं |
| تُضَآرَّ | तकलीफ पहुँचाई जाए |
| وَٰلِدَةٌۢ | कोई माँ |
| بِوَلَدِهَا | अपने बच्चे के कारण |
| وَلَا | और न |
| مَوْلُودٌ | कोई पिता |
| لَّهُۥ | जिसके लिए |
| بِوَلَدِهِۦ | अपने बच्चे के कारण |
| ۚ وَعَلَى | और पर है |
| ٱلْوَارِثِ | वारिस (उत्तराधिकारी) पर |
| مِثْلُ | वैसा ही |
| ذَٰلِكَ | उस (दायित्व) का |
| ۗ فَإِن | फिर अगर |
| أَرَادَا | चाहें वे दोनों (माता-पिता) |
| فِصَالًا | दूध छुड़ाना |
| عَن | से |
| تَرَاضٍ | रज़ामंदी |
| مِّنْهُمَا | उन दोनों की |
| وَتَشَاوُرٍ | और आपसी सलाह |
| فَلَا | तो नहीं |
| جُنَاحَ | कोई गुनाह |
| عَلَيْهِمَا | उन दोनों पर |
| ۗ وَإِن | और अगर |
| أَرَدتُّمْ | तुमने चाहा |
| أَن | कि |
| تَسْتَرْضِعُوٓا۟ | तुम दूध पिलवाओ |
| أَوْلَـٰدَكُمْ | अपने बच्चों को |
| فَلَا | तो नहीं |
| جُنَاحَ | कोई गुनाह |
| عَلَيْكُمْ | तुम पर |
| إِذَا | जब |
| سَلَّمْتُم | तुमने अदा कर दिया |
| مَّآ | जो (कुछ) |
| ءَاتَيْتُم | तुमने दिया |
| بِٱلْمَعْرُوفِ | भले तरीके से |
| ۗ وَٱتَّقُوا۟ | और डरो |
| ٱللَّهَ | अल्लाह से |
| وَٱعْلَمُوٓا۟ | और जान लो |
| أَنَّ | कि |
| ٱللَّهَ | अल्लाह |
| بِمَا | जो कुछ |
| تََعْمَلُونَ | तुम करते हो |
| بَصِيرٌ | देखने वाला है |
३. पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "और माएँ अपनी संतानों को पूरे दो साल तक दूध पिलाएँ, (यह हुक्म) उसके लिए है जो दूध पिलाने की अवधि को पूरा करना चाहे। और (बच्चे का) पिता उन (माताओं) के लिए भले तरीके से गुज़ारा और कपड़े का प्रबंध करे। किसी जान को उसकी सामर्थ्य से अधिक का ज़िम्मा नहीं दिया जाएगा। न किसी माँ को उसके बच्चे के कारण तकलीफ पहुँचाई जाए और न किसी पिता को उसके बच्चे के कारण। और वारिस (उत्तराधिकारी) पर भी वैसा ही दायित्व है। फिर अगर वे दोनों (माता-पिता) आपसी सहमति और सलाह से दूध छुड़ाना चाहें, तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं। और अगर तुम अपने बच्चों को (किसी दाई के पास) दूध पिलवाना चाहो, तो जब तुम भले तरीके से जो कुछ देने का वादा करो उसे अदा कर दो, तो तुम पर कोई गुनाह नहीं। और अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह तुम्हारे सब कर्मों को देख रहा है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत शिशु पालन और माता-पिता के अधिकारों व जिम्मेदारियों के बारे में एक संपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसके मुख्य बिंदु हैं:
स्तनपान: माँ को अपने बच्चे को पूरे दो साल तक दूध पिलाना चाहिए।
पिता की जिम्मेदारी: बच्चे के पिता पर यह जिम्मेदारी है कि वह दूध पिलाने वाली माँ का गुज़ारा और कपड़े का भले तरीके से प्रबंध करे (चाहे वह उसकी पत्नी हो या तलाकशुदा पत्नी)।
सामर्थ्य का नियम: किसी पर भी उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डाला जाएगा।
बच्चे के हक की रक्षा: न तो माँ को और न ही पिता को बच्चे के हक में रोड़ा अटकाना चाहिए। एक दूसरे को बच्चे के जरिए परेशान नहीं करना चाहिए।
वारिस की जिम्मेदारी: अगर पिता की मृत्यु हो जाए, तो यह जिम्मेदारी उसके वारिस (उत्तराधिकारियों) पर आ जाती है।
लचीलापन: अगर माता-पिता आपसी सहमति से दो साल से पहले दूध छुड़ाना चाहें, तो कोई पाप नहीं।
दाई (Wet Nurse) का प्रावधान: अगर माता-पिता चाहें तो बच्चे को किसी दाई के पास दूध पिलवा सकते हैं, बशर्ते कि वे उस दाई को निर्धारित पारिश्रमिक भले तरीके से अदा कर दें।
४. गहन व्याख्या, शिक्षा और संदेश (In-depth Explanation, Lesson & Message)
यह आयत बच्चे के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए एक संतुलित पारिवारिक ढाँचा प्रस्तुत करती है।
क. दो साल के स्तनपान का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक महत्व:
वैज्ञानिक पुष्टि: आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध किया है कि माँ का दूध शिशु के लिए संपूर्ण आहार है और यह उसे रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। दो साल की अवधि बच्चे की शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आदर्श मानी जाती है।
भावनात्मक बंधन: स्तनपान माँ और बच्चे के बीच एक गहरा भावनात्मक बंधन बनाता है।
ख. पिता की वित्तीय जिम्मेदारी:
न्यायसंगत बंटवारा: इस्लाम ने माता और पिता की जिम्मेदारियों को बाँट दिया है। माँ ने बच्चे को जन्म दिया और दूध पिलाने की भारी जिम्मेदारी उठाई, इसलिए पिता पर वित्तीय जिम्मेदारी है। यह एक न्यायसंगत विभाजन है।
तलाक के बाद भी जिम्मेदारी: यह जिम्मेदारी तलाक की स्थिति में भी जारी रहती है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम बच्चे के हित को सबसे ऊपर रखता है।
ग. "किसी जान को उसकी सामर्थ्य से अधिक का ज़िम्मा नहीं दिया जाएगा" (ला तुकल्लफु नफ्सुन इल्ला वुसअहा):
धर्म में आसानी: यह इस्लाम का एक मौलिक सिद्धांत है। अल्लाह किसी पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता।
व्यावहारिकता: अगर माँ बीमार है या उसके पास दूध नहीं है, या पिता गरीब है, तो इस आयत में दिए गए लचीले प्रावधान (जैसे दाई रखना, दूध जल्दी छुड़ाना) काम आते हैं।
घ. बच्चे के हक की रक्षा:
साझा जिम्मेदारी: आयत स्पष्ट रूप से कहती है कि बच्चे को माता-पिता के बीच की कड़वाहट का शिकार नहीं बनना चाहिए। न तो माँ बच्चे को दूध पिलाने से इनकार करके पिता को सजा दे सकती है, और न ही पिता गुज़ारा देने से इनकार करके माँ और बच्चे को तकलीफ दे सकता है।
प्रमुख शिक्षाएँ (Key Lessons):
बच्चे का कल्याण सर्वोपरि: बच्चे के पोषण, स्वास्थ्य और भावनात्मक विकास को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
माता-पिता की साझेदारी: बच्चे का पालन-पोषण माता और पिता की साझी जिम्मेदारी है, जिसमें दोनों की भूमिकाएँ अलग-अलग लेकिन समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
न्याय और लचीलापन: इस्लामी नियम न्याय पर आधारित हैं और मानवीय जरूरतों व सीमाओं को ध्यान में रखते हुए लचीलेपन की अनुमति देते हैं।
सामाजिक सुरक्षा: वारिस पर जिम्मेदारी डालकर, इस्लाम ने अनाथ बच्चों और उनकी माताओं के लिए एक सामाजिक सुरक्षा जाल बनाया है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
जाहिलीय्यत के समय में, तलाक के बाद महिलाओं और उनके बच्चों की कोई सुरक्षा नहीं थी। इस आयत ने माताओं और शिशुओं के अधिकारों को स्थापित किया और पिता पर स्पष्ट वित्तीय जिम्मेदारी तय की, जो उस समय एक क्रांतिकारी सुधार था।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
शिशु स्वास्थ्य: WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) भी दो साल तक स्तनपान की सलाह देता है। 1400 साल पहले कुरआन का यह हुक्म आधुनिक विज्ञान से पूरी तरह मेल खाता है।
चाइल्ड सपोर्ट (Child Support): आधुनिक कानूनों में, तलाक के बाद पिता को बच्चे के पालन-पोषण के लिए भुगतान करना पड़ता है। यह आयत इसी सिद्धांत की नींव है।
सह-पालन (Co-parenting): आज के समय में, यह आयत माता-पिता को सिखाती है कि तलाक के बाद भी वे बच्चे की भलाई के लिए आपसी सहमति और सहयोग से काम लें।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक मानव जाति है, बच्चे के पालन-पोषण का मुद्दा बना रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक बनी रहेगी।
पारिवारिक न्याय: यह आयत भविष्य के समाजों में पारिवारिक न्याय और बच्चों के अधिकारों की रक्षा का आधार बनेगी।
अल्लाह की निगरानी: "अल्लाह तुम्हारे सब कर्मों को देख रहा है" का सिद्धांत हर युग के माता-पिता को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराता रहेगा।
निष्कर्ष: आयत 2:233 इस्लाम के संतुलित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह बच्चे के शारीरिक और भावनात्मक कल्याण को केंद्र में रखते हुए माता-पिता के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करती है। यह न्याय, दया और व्यावहारिकता का एक अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करती है। यह अतीत में एक सुधार, वर्तमान में एक प्रासंगिक मार्गदर्शक और भविष्य के लिए एक शाश्वत विधान है।