﴿فَإِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالًا أَوْ رُكْبَانًا فَإِذَا أَمِنتُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُم مَّا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ﴾
सूरत अल-बक़ारा (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 239
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| फ़ा-इन | फिर यदि |
| ख़िफ़तुम | तुम डर गए (भयभीत हुए) |
| फ़ा-रिज़ालन | तो पैदल (चलते हुए) |
| औ रुक्बानन | या सवार (घोड़े, ऊंट आदि पर) |
| फ़ा-इज़ा | फिर जब |
| अमिनतुम | तुम सुरक्षित हो गए (भय दूर हुआ) |
| फ़ज़्कुरु | तो याद करो (ज़िक्र करो) |
| अल्लाह | अल्लाह का |
| कमा | जैसे कि |
| अल्लमकुम | उसने तुम्हें सिखाया |
| मा | वह (ज्ञान) |
| लम | नहीं |
| तकूनू | तुम होते |
| ता'लमून | जानने वाले |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "फिर यदि तुम्हें (नमाज़ पढ़ते समय) कोई ख़तरा (डर) हो, तो (नमाज़) पैदल (चलते हुए) या सवारी पर (पूरी कर लो)। फिर जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो अल्लाह को उस तरह याद करो (नमाज़ पढ़ो) जैसे उसने तुम्हें वह (तरीका) सिखाया, जिसे तुम (पहले) नहीं जानते थे।"
सरल व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण रियायत (छूट) देती है। यह उस समय की स्थिति के बारे में है जब कोई मुसलमान नमाज़ पढ़ रहा हो और अचानक कोई खतरा पैदा हो जाए, जैसे युद्ध का मैदान हो, दुश्मन का हमला हो, या कोई प्राकृतिक आपदा हो।
डर की स्थिति में: अगर नमाज़ के दौरान खतरा महसूस हो, तो इसे छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। आप चलते-चलते, या अपनी सवारी (घोड़ा, गाड़ी आदि) पर बैठे-बैठे ही संकेतों के साथ नमाज़ पूरी कर सकते हैं। इसमें रुकू (झुकना) और सजदा (दंडवत) करने की सामान्य शर्तें माफ़ हैं। केवल दिल में इरादा और ज़रूरी बातें पढ़ लेना ही काफी है।
सुरक्षा की स्थिति में: जैसे ही खतरा टल जाए और आप सुरक्षित महसूस करें, तो नमाज़ को उसके पूर्ण और सही तरीके से पढ़ना चाहिए, जैसा कि अल्लाह ने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के ज़रिए हमें सिखाया है।
आयत के अंत में अल्लाह की इस दया को याद दिलाया गया है कि उसने ही हमें नमाज़ का तरीका सिखाया, जिसे हम पहले नहीं जानते थे।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
धर्म में सुगमता: इस्लाम एक व्यावहारिक धर्म है। यह मनुष्य की सीमाओं और मजबूरियों को समझता है। इसमें ऐसी कोई हुक्म नहीं जो इंसान की क्षमता से बाहर हो। डर और संकट की स्थिति में नमाज़ में छूट इस बात का प्रमाण है।
अल्लाह की याद सर्वोपरि: आयत यह सिखाती है कि हर हाल में अल्लाह का ज़िक्र और उसकी इबादत जारी रखनी चाहिए। डर के समय भी नमाज़ पूरी तरह छूटती नहीं है, बल्कि उसका तरीका बदल जाता है। इससे इंसान के दिल में यह बात बैठ जाती है कि अल्लाह की याद हर चीज़ से बढ़कर है।
अनुशासन और व्यवस्था: यह आयत मुसलमानों को अनुशासन सिखाती है। सुरक्षा मिलते ही सही तरीके से नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया है। यह दिखाता है कि रियायत स्थायी नियम नहीं बन सकती; जैसे ही सामान्य स्थिति लौटे, मूल नियम लागू हो जाते हैं।
कृतज्ञता का भाव: "जैसे उसने तुम्हें सिखाया जिसे तुम नहीं जानते थे" - यह वाक्य हमें अल्लाह के प्रति कृतज्ञ होने की शिक्षा देता है। उसने हमें जीने का सही तरीका और अपनी इबादत का सही ढंग बताया, यह उसका एक बड़ा अनमोल उपहार है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
युद्ध के दौरान: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनके साथियों के ज़माने में लगातार युद्ध की स्थितियाँ बनी रहती थीं। इस आयत ने उन सभी योद्धाओं और मुसलफ़िरों के लिए राहत का काम किया, जो डर के माहौल में भी अपनी धार्मिक ज़िम्मेदारी निभाना चाहते थे।
सफ़र के दौरान: उस ज़माने में सफर खतरों से भरा होता था। इस आयत ने यात्रियों को यह सुविधा दी कि वे खतरे के समय सवारी पर बैठे-बैठे ही नमाज़ अदा कर सकते हैं।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
युद्धग्रस्त क्षेत्र: आज भी दुनिया के कई हिस्सों (जैसे फिलिस्तीन, कश्मीर, सीरिया, आदि) में मुसलमान युद्ध और संघर्ष की स्थिति में जी रहे हैं। यह आयत उनके लिए एक मार्गदर्शक है कि वे अपनी जान को खतरे में डाले बिना भी अल्लाह की इबादत जारी रख सकते हैं।
आपातकालीन स्थितियाँ: बाढ़, भूकंप, आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय जब लोगों को भागना पड़ता है, यह आयत उन्हें यह शिक्षा देती है कि ऐसे में नमाज़ के सख्त नियमों में ढील दी गई है।
आधुनिक सवारियाँ: "सवारी" शब्द का दायरा आज विस्तृत हो गया है। कार, बस, ट्रेन या हवाई जहाज़ में सफर करते समय अगर कोई खतरा पैदा हो जाए (जैसे दुर्घटना का खतरा, अपहरण का भय), तो इस आयत की रोशनी में उस स्थिति में नमाज़ अदा की जा सकती है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
अनिश्चितता का जीवन: मानव जीवन हमेशा अनिश्चितताओं से भरा रहेगा। भविष्य में किसी भी प्रकार के संकट (चाहे सामाजिक, राजनीतिक या प्राकृतिक) आ सकते हैं। यह आयत हमेशा मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शन बनी रहेगी कि संकट के समय धर्म के नियमों को कैसे निभाया जाए।
आध्यात्मिक संबंध बनाए रखना: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह संदेश देगी कि किसी भी हालत में, चाहे वह कितनी भी विषम क्यों न हो, अल्लाह के साथ अपना रिश्ता और उसकी याद नहीं तोड़नी चाहिए। यह आस्था और दृढ़ता का एक शाश्वत सिद्धांत है।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक कानूनी नियम नहीं है, बल्कि जीवन की कठिनाइयों में अल्लाह के साथ संबंध बनाए रखने का एक संतुलित, दयालु और सदैव प्रासंगिक मार्गदर्शन है।