﴿أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ خَرَجُوا مِن دِيَارِهِمْ وَهُمْ أُلُوفٌ حَذَرَ الْمَوْتِ فَقَالَ لَهُمُ اللَّهُ مُوتُوا ثُمَّ أَحْيَاهُمْ إِنَّ اللَّهَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 243
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| अ-लम तर | क्या आपने नहीं देखा? (क्या आप जानते नहीं?) |
| इलल्लज़ीना | उन लोगों की ओर |
| ख़रजू | निकल गए |
| मिन दियारिहिम | अपने घरों से |
| व हुम उलूफुन | और वे हज़ारों की संख्या में थे |
| हज़रल मौति | मौत के डर से |
| फ़ क़ाला | तो अल्लाह ने कहा |
| लहुम | उनसे |
| मूतू | मर जाओ |
| सुम्मा | फिर |
| अह्याहुम | उन्हें जिलाया |
| इन्नल्लाह | निश्चय ही अल्लाह |
| ला ज़ू फ़ज़लिन | बड़ा अनुग्रह करने वाला है |
| अलन्नासि | लोगों पर |
| व लाकिन्ना | और किन्तु / लेकिन |
| अक्सरन्नासि | अधिकतर लोग |
| ला यशकुरून | कृतज्ञ नहीं हैं (शुक्र अदा नहीं करते) |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "क्या आपने उन लोगों की ओर ध्यान नहीं दिया जो मौत के डर से हज़ारों की संख्या में अपने घरों से निकल गए? तो अल्लाह ने उनसे कहा: 'मर जाओ'। फिर उसने उन्हें जिला दिया। निश्चय ही अल्लाह लोगों पर बड़ा अनुग्रह करने वाला है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञ नहीं हैं।"
सरल व्याख्या:
यह आयत एक पिछली कौम (बनी इस्राइल के लोगों) के एक ऐतिहासिक वाकये का जिक्र करती है, जिसे तफ़सीर (व्याख्या) में अक्सर एक महामारी (ताऊन/प्लेग) से जोड़कर बताया जाता है।
पृष्ठभूमि: एक बार एक शहर में भयंकर महामारी फैली। मौत के डर से हज़ारों लोग अपना घर-बार छोड़कर शहर से भाग गए। उन्होंने सोचा कि इस तरह वे मौत से बच जाएँगे।
अल्लाह का इरादा: लेकिन अल्लाह की मर्जी कुछ और थी। उसने उन सबको मार दिया (चाहे वे भागे हुए थे या शहर में रुके हुए थे)। यह दर्शाने के लिए कि मौत का समय और स्थान अल्लाह के हाथ में है, भागकर कोई इससे नहीं बच सकता।
चमत्कारिक पुनर्जीवन: फिर अल्लाह ने उन्हें दोबारा जीवित कर दिया। यह एक चमत्कार था जो लोगों को यह सबक सिखाने के लिए किया गया कि अल्लाह ही जीवन और मृत्यु का मालिक है और वह चाहे तो मुर्दों को भी जीवित कर सकता है।
आयत का अंत दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर होता है:
अल्लाह का फज़ल (अनुग्रह): मरने के बाद दोबारा जीवन देना अल्लाह के फज़ल (कृपा) का प्रमाण है।
मनुष्य की अकृतज्ञता: इतने बड़े चमत्कार और अनुग्रह के बावजूद ज्यादातर लोग अल्लाह का शुक्र अदा नहीं करते और उसकी निशानियों से सबक नहीं लेते।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
मृत्यु अटल है: मौत एक सच्चाई है और उससे भागकर कोई नहीं बच सकता। उसका समय और स्थान अल्लाह ने तय कर रखा है (क़ज़ा और क़द्र)। इसलिए मौत के डर से अवैध तरीके अपनाना या हताश होना ठीक नहीं है।
अल्लाह की सर्वशक्तिमत्ता: अल्लाह ही जीवन और मृत्यु देने वाला है। वह मुर्दों को जिला सकता है, जैसा कि इस वाकये में हुआ और जैसा कि कयामत के दिन होगा। इससे इंसान के दिल में अल्लाह की शक्ति और बड़प्पन का एहसास पैदा होता है।
भाग्य पर भरोसा (तवक्कुल): इंसान का फर्ज है कि वह हर संकट से बचने के लिए दुनियावी इलाज और उपाय (असबाब) अपनाए, लेकिन अंत में उसे अल्लाह के भरोसे (तवक्कुल) पर ही रहना चाहिए। मौत से बचने के लिए घर छोड़कर भागना एक वैध उपाय नहीं है अगर वह अल्लाह के आदेश के खिलाफ हो (जैसे जिहाद से भागना)।
कृतज्ञता का महत्व: अल्लाह ने हमें अनगिनत नेमतें दी हैं, जिनमें जीवन सबसे बड़ी नेमत है। हमारा फर्ज है कि हम उसका शुक्र अदा करें। आयत हमें चेतावनी देती है कि अकृतज्ञता इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
जिहाद से भागने वालों के लिए चेतावनी: यह आयत उन मुसलमानों के लिए एक सबक थी जो जिहाद के मैदान से मौत के डर से भागते थे। यह दर्शाता था कि भागने से मौत टलने वाली नहीं है; अगर मौत तय है तो वह कहीं भी आ सकती है। सच्चा मोमिन अल्लाह की राह में शहीद होना गर्व की बात समझता है।
बनी इस्राइल की आदत: यह वाकया बनी इस्राइल की उस मानसिकता को दर्शाता है जो हमेशा अल्लाह के आदेशों से भागती थी और दुनियावी उपायों पर ही भरोसा करती थी।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
महामारी (कोविड-19) के संदर्भ में: कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान यह आयत बहुत प्रासंगिक हो गई। लोग मौत के डर से शहरों से भागे। इस आयत ने हमें सिखाया कि सावधानी (Precaution) जरूरी है, लेकिन घबराहट और अफरातफरी में अल्लाह के भरोसे और उसकी मर्जी को भूल जाना ठीक नहीं है। मौत का फैसला अल्लाह के हाथ में है।
आधुनिक मनोविज्ञान और डर: आज का इंसान सुरक्षा और लंबी उम्र के पीछे पागल है। वह स्वास्थ्य, बीमा और तकनीक के जरिए मौत को मात देना चाहता है। यह आयत उसे Grounding देती है और याद दिलाती है कि मौत एक Spiritual Reality (आध्यात्मिक सच्चाई) है, जिसे स्वीकार करना ही पड़ेगा।
आस्था का संकट: जब कोई बड़ी आपदा आती है, तो कई लोग अल्लाह पर से ईमान ही खो देते हैं। यह आयत बताती है कि संकट अल्लाह की ताकत और उसकी मर्जी को समझने का मौका है, न कि उससे दूर भागने का।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत सत्य: जब तक दुनिया है, मौत का डर और उससे भागने की मानवीय प्रवृत्ति बनी रहेगी। यह आयत हर युग के इंसान को यही शाश्वत सत्य सिखाती रहेगी: "मौत से मत डरो, बल्कि उसके मालिक से डरो और उसी पर भरोसा रखो।"
पुनर्जीवन का प्रमाण: यह आयत कयामत में पुनर्जीवन के सिद्धांत के लिए एक Historical Evidence (ऐतिहासिक प्रमाण) प्रस्तुत करती है। भविष्य में भी, जब लोग पुनर्जीवन पर सवाल उठाएँगे, यह आयत एक जवाब बनी रहेगी।
मानवीय मूल्यों की याद: भविष्य की तकनीकी और Robotic दुनिया में, जहाँ इंसान खुद को सर्वशक्तिमान समझने लगेगा, यह आयत उसे उसकी सीमाओं का एहसास करवाती रहेगी और उसे विनम्र तथा कृतज्ञ बनने की प्रेरणा देगी।
निष्कर्ष: आयत 2:243 एक Powerful Story (शक्तिशाली कहानी) के माध्यम से जीवन के सबसे बड़े सत्य – मृत्यु – के बारे में गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक पाठ पढ़ाती है। यह इंसान को उसके डर पर काबू पाने, अपने पालनहार पर भरोसा करने और उसके प्रति कृतज्ञ बनने का मार्ग दिखाती है। यह केवल एक ऐतिहासिक घटना का बयान नहीं, बल्कि हर इंसान के लिए एक जीवन-सूत्र है।