﴿وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 244
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| व क़ातिलू | और (अनिवार्य रूप से) लड़ो / जिहाद करो |
| फी | में |
| सबीलिल्लाह | अल्लाह की राह |
| व'अलमू | और जान लो / निश्चित रूप से समझ लो |
| अन्नल्लाह | कि निश्चय ही अल्लाह |
| समीउन | सब कुछ सुनने वाला है |
| अलीमुन | सब कुछ जानने वाला है |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "और अल्लाह के मार्ग में लड़ो, और जान लो कि निश्चय ही अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:243) से सीधा संबंध रखती है, जहाँ लोगों ने मौत के डर से अपना घर छोड़ दिया था। अब अल्लाह मोमिनों को सही दिशा देता है।
"और अल्लाह के मार्ग में लड़ो": यह आदेश उस गलत "भागने" के जवाब में है जो मौत के डर से किया जाता है। अल्लाह की राह में जिहाद करना वह सही "निकलना" (खुरूज) है, जहाँ इंसान अपनी जान को अल्लाह के हवाले करके दीन की रक्षा के लिए आगे बढ़ता है, न कि अपनी जान बचाने के लिए पीछे हटता है।
"और जान लो": यह सिर्फ एक आदेश नहीं है, बल्कि इसके पीछे की हिक्मत समझने का निर्देश है। मोमिनों को यह यकीन रखना चाहिए कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, अल्लाह उसके बारे में पूरी तरह जानता है।
"अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है": यह इस आदेश का मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार है।
अस-समीउ (सुनने वाला): वह तुम्हारी नीयत, तुम्हारे दिल की बात, तुम्हारी दुआओं और तकबीरों को सुन रहा है।
अल-अलीम (जानने वाला): वह तुम्हारे इरादों, तुम्हारे त्याग, तुम्हारे संघर्ष और तुम्हारी कठिनाइयों से पूरी तरह वाकिफ है।
इस तरह, यह आयत मोमिन को यह विश्वास दिलाती है कि अल्लाह की राह में किया गया संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता, क्योंकि उसका रब उसके हर कदम और हर भावना से अवगत है।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
जिहाद का सही अर्थ: जिहाद का मतलब केवल युद्ध नहीं है। यह एक संपूर्ण संघर्ष है जो अल्लाह की राह में किया जाता है, चाहे वह अपने नफ्स (ईगो) के खिलाफ हो, बुराइयों के खिलाफ हो या फिर दीन की रक्षा के लिए शारीरिक लड़ाई हो। यह आयत विशेष रूप से उस जिहाद की ओर इशारा करती है जहाँ दीन की हिफाजत के लिए शक्ति का प्रयोग जरूरी हो जाता है।
मौत का डर नहीं, मकसद का यकीन: एक मोमिन की पहचान यह है कि वह मौत से नहीं, बल्कि बेमकसद जिंदगी और अल्लाह की नाराजगी से डरता है। वह जानता है कि अगर वह अल्लाह की राह में शहीद हो गया, तो यह उसके लिए जिंदगी की सबसे बड़ी कामयाबी है।
ईमान और यकीन पर आधारित आज्ञाकारिता: अल्लाह के आदेशों का पालन तभी सही ढंग से हो सकता है जब उसके गुणों (सब कुछ सुनने और जानने वाला) पर दृढ़ विश्वास हो। यह विश्वास ही इंसान को ऐसे कठिन फैसले लेने की ताकत देता है।
पारदर्शिता और ईमानदारी: चूंकि अल्लाह सब कुछ सुनने और जानने वाला है, इसलिए मोमिन का हर काम नेक नीयत और पूरी ईमानदारी के साथ होना चाहिए। जिहाद में भी घमंड, दिखावा या माल की लालच के लिए जगह नहीं है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
मक्की मोमिनीन के लिए परिवर्तन का संदेश: मक्के में मुसलमानों को जिहाद की इजाजत नहीं थी, वे सिर्फ सहनशीलता दिखा रहे थे। मदीना आने के बाद यह आयत उनके लिए एक नए चरण की शुरुआत थी, जहाँ उन्हें दीन की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करने का आदेश दिया गया।
यहूदियों के षड्यंत्र के संदर्भ में: मदीना में यहूदी गोत्रों के साथ समझौते के बावजूद, वे लगातार मुसलमानों के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे थे। यह आयत मुसलमानों को उनकी शक्ति और तैयारी का एहसास करवाती थी।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
इस्लामोफोबिया और दमन के खिलाफ: आज दुनिया के कई हिस्सों (जैसे फिलिस्तीन) में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। यह आयत उन्हें यह सिखाती है कि अपने अधिकारों, अपनी पहचान और अपनी इबादतगाहों की हिफाजत के लिए न्यायपूर्ण संघर्ष (क़िताल) करना उनका धार्मिक कर्तव्य है, बशर्ते यह अल्लाह की राह में हो और सही नेतृत्व में हो।
आतंकवाद के गलत फतवे का खंडन: आतंकवादी गुट गैर-लड़ाकों को निशाना बनाते हैं, जबकि इस आयत का संदेश एक संगठित, नैतिक और न्यायपूर्ण लड़ाई का है जो स्पष्ट दुश्मन के खिलाफ हो। "अल्लाह सुनने और जानने वाला है" यह दर्शाता है कि हर कार्यवाही जवाबदेही के दायरे में आती है।
आंतरिक जिहाद (जिहाद-ए-नफ्स): आज का सबसे बड़ा जिहाद अपने भीतर की बुराइयों (लालच, घमंड, कपट) से लड़ना है। यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अपने नफ्स के खिलाफ भी उसी जोश और ईमान के साथ लड़ाई करनी चाहिए, क्योंकि अल्लाह हमारी नीयत और प्रयास को देख रहा है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत संघर्ष: जब तक नेकी और बुराई का संघर्ष इस दुनिया में है, अल्लाह के मार्ग में खड़े होने और संघर्ष करने की आवश्यकता बनी रहेगी। यह आयत हर युग के मोमिनों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी।
प्रौद्योगिकी और नैतिकता: भविष्य में युद्ध के तरीके बदल सकते हैं (साइबर वारफेयर आदि), लेकिन "अल्लाह की राह में लड़ने" का सिद्धांत और "अल्लाह के सुनने और जानने" का विश्वास हमेशा प्रासंगिक रहेगा। यह मुसलमानों को यह सिखाएगा कि नई तकनीक का इस्तेमाल भी नैतिक सीमाओं में रहकर ही करना चाहिए।
आशा और साहस का स्रोत: भविष्य की अनिश्चितताओं और चुनौतियों के बीच, यह आयत मोमिनों के दिलों में यह आशा और साहस भरती रहेगी कि उनका रब उनके साथ है और उनका कोई भी त्याग और संघर्ष उसकी नजर में बेकार नहीं जाएगा।
निष्कर्ष: आयत 2:244 एक संक्षिप्त लेकिन बहुत शक्तिशाली आदेश है। यह मोमिनों को निष्क्रियता और भय से निकालकर सक्रियता, बहादुरी और अल्लाह पर पूर्ण भरोसे की ओर ले जाती है। यह केवल युद्ध का आह्वान नहीं, बल्कि एक पूर्ण जीवन दर्शन है जो हर काल में मोमिन के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है।