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क़ुरआन की आयत 2:245 की पूरी व्याख्या

 

﴿مَّن ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ أَضْعَافًا كَثِيرَةً وَاللَّهُ يَقْبِضُ وَيَبْسُطُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ﴾

सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 245


1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
मन ज़ल्लज़ीकौन है वह (व्यक्ति)
युक़रिदुल्लाहअल्लाह को उधार दे
क़र्ज़न हसननएक अच्छा उधार (भलाई का कर्ज)
फ़-युज़ाइ'फ़हूतो वह (अल्लाह) उसे बहुगुणित कर दे
लहूउसके लिए
अज़'आफ़न कसीरतनअनेक गुना (बहुत अधिक)
वल्लाहुऔर अल्लाह
यक़बिदुसंकुचित करता है (रोज़ी कम करता है)
व-यबसुतुऔर फैलाता है (रोज़ी बढ़ाता है)
व-इलैहिऔर उसी की ओर
तुरज'ऊनातुम लौटाए जाओगे

2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "कौन है वह व्यक्ति जो अल्लाह को एक अच्छा कर्ज दे, तो अल्लाह उसके लिए उसे कई गुना बढ़ा दे? और अल्लाह (जीविका को) रोकता है और (उदारतापूर्वक) फैलाता है, और तुम सब उसी की ओर लौटाए जाने वाले हो।"

सरल व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही खूबसूरत और प्रेरणादायक तरीके से दान-खैरात (इन्फाक) के महत्व को समझाती है।

  • "अल्लाह को कर्ज देना": यह एक बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है। अल्लाह सर्वसम्पन्न है, उसे किसी चीज की जरूरत नहीं है। लेकिन वह अपने बंदों को यह सम्मान देता है कि जब वे उसकी राह में अपना धन खर्च करते हैं, तो उसे एक "अच्छा कर्ज" कहता है। यह कर्ज "हसन" (अच्छा) तभी है जब वह हलाल कमाई का हो, नेक नीयत से दिया गया हो और अल्लाह की राह में दिया गया हो (जैसे गरीबों की मदद, धार्मिक शिक्षा आदि)।

  • "कई गुना बढ़ा दे": इस कर्ज का बदला अल्लाह बहुत गुणा करके देता है। यह गुणा दुनिया में भी हो सकता है (रिज़्क में बरकत के रूप में) और आखिरत में तो निश्चित रूप से होगा। हदीस में है कि एक सदक़े का बदला 700 गुना या और भी अधिक तक पहुँच सकता है।

  • "अल्लाह रोकता और फैलाता है": यह हिस्सा लोगों के मन में उठने वाले एक सवाल का जवाब है – "अगर मैंने सब कुछ खर्च कर दिया, तो मेरा क्या होगा?" अल्लाह कहता है कि रोजी देने-रोकने वाला मैं हूँ। तुम्हारा काम है मेरे बताए रास्ते में खर्च करना, रोजी का प्रबंध करना मेरा काम है। जो देता है, अल्लाह उसे और देता है।

  • "तुम सब उसी की ओर लौटाए जाने वाले हो": यह आयत का निष्कर्ष है जो पूरे चक्र को पूरा करता है। अंततः हर किसी को अल्लाह के सामने पेश होना है और उसके दिए हुए धन और जीवन का हिसाब देना है। यह याद दिलाना है कि यह धन तुम्हारे पास स्थायी नहीं है, इसे सही जगह खर्च करके अपने असली घर (आखिरत) के लिए पूंजी जमा कर लो।


3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)

  1. दान का महत्व और प्रोत्साहन: इस्लाम दान-पुण्य पर बहुत जोर देता है। इसे "अल्लाह को कर्ज" कहकर एक गर्व और सम्मान का विषय बना दिया गया है।

  2. विश्वास और भरोसा (तवक्कुल): आयत सिखाती है कि अल्लाह पर भरोसा रखो। उसकी राह में दान करने से रोजी कम नहीं होती, बल्कि अल्लाह उसे और बढ़ा देता है। यह एक ईमानी परीक्षा भी है।

  3. नीयत की शुद्धता: कर्ज "हसन" (अच्छा) होना जरूरी है। यानी दान दिखावे या किसी का बुरा चाहने के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ अल्लाह की खुशी के लिए और पवित्र नीयत से दिया जाना चाहिए।

  4. जीवन का अंतिम लक्ष्य: यह आयत हमें हमारे अस्तित्व के अंतिम लक्ष्य (अल्लाह की ओर लौटना) की याद दिलाती है। इस याद के साथ इंसान की लालच और धन संचय की प्रवृत्ति कम होती है और उदारता बढ़ती है।


4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:

  • जिहाद के लिए वित्तीय समर्थन: जब यह आयत उतरी, तो मुसलमानों को जिहाद के लिए अपने धन को कुरबान करने की जरूरत थी। इस आयत ने सहाबा को प्रेरित किया कि वे अपनी पूंजी अल्लाह की राह में लगाएं। हजरत अबू बकर सिद्दीक (रजि.) ने तो अपनी सारी संपत्ति दान कर दी।

  • बद्र के युद्ध जैसे अवसरों पर: ऐसे कई मौके आए जहाँ मुसलमानों ने अपना धन दान किया और अल्लाह ने उन्हें जीत का सामान और गनीमत का माल देकर उनका कई गुना बदला दिया।

वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • ज़कात और सदक़ा की प्रेरणा: आज भी यह आयत मुसलमानों को ज़कात, फितरा और सदक़ा देने के लिए प्रेरित करती है। यह उन्हें यकीन दिलाती है कि यह दान उनके धन को कम नहीं करेगा।

  • इस्लामिक फाइनेंस और बैंकिंग: "कर्ज-ए-हसना" (बिना ब्याज का अच्छा कर्ज) की अवधारणा इसी आयत से ली गई है। आज इस्लामic बैंक गरीबों और जरूरतमंदों को बिना ब्याज के कर्ज देते हैं, जो इस आयत की भावना का प्रतीक है।

  • सामाजिक कल्याण: मदरसों, अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों और गरीबों की मदद के लिए चलने वाले दान इसी आयत से प्रेरणा लेते हैं। यह समाज में आर्थिक न्याय और भाईचारा कायम करने का एक साधन है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • आर्थिक अनिश्चितता में मार्गदर्शन: भविष्य की आर्थिक मंदी और संकटों के दौर में, यह आयत मुसलमानों को यह सिखाती रहेगी कि संकट का हल धन को रोकने में नहीं, बल्कि अल्लाह के बताए रास्ते में खर्च करने और उसपर भरोसा करने में है।

  • भौतिकवाद के खिलाफ टीका: जैसे-जैसे दुनिया और भौतिकवादी होती जाएगी, यह आयत एक शक्तिशाली अनुस्मारक बनी रहेगी कि धन एक परीक्षा है और उसे जमा करने का नहीं, बल्कि अल्लाह की राह में लगाने का सही तरीका है।

  • शाश्वत निवेश का सिद्धांत: यह आयत हर युग के लिए एक शाश्वत सत्य प्रस्तुत करती है: "अल्लाह में सबसे अच्छा निवेश है।" यह मोमिनों को दुनिया के नश्वर धन के बजाय आखिरत के स्थायी पुण्य और प्रतिफल को प्राथमिकता देने की प्रेरणा देती रहेगी।

निष्कर्ष: आयत 2:245 एक दिव्य आर्थिक मॉडल प्रस्तुत करती है। यह इंसान के कंजूसी के स्वभाव को तोड़कर उसे उदारता और अल्लाह पर पूर्ण भरोसे की ओर ले जाती है। यह सिखाती है कि सच्ची कमाई और सच्चा लाभ वह है जो अल्लाह की राह में खर्च किया जाए, क्योंकि उसका बदला कोई महज सात सौ गुना ही नहीं, बल्कि अनंत गुना और शाश्वत है।