﴿يُؤْتِي الْحِكْمَةَ مَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُؤْتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ أُوتِيَ خَيْرًا كَثِيرًا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّا أُولُو الْأَلْبَابِ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 269
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| यु'तिल हिक्मता | देता है हिक्मत (तत्वदर्शिता) को |
| मन यशाउ | जिसे चाहता है |
| व-मन यु'तल हिक्मता | और जिसे हिक्मत दी गई |
| फ-कद उतिया | तो निश्चय ही उसे दिया गया |
| खैरन कसीरा | बहुत अधिक भलाई |
| व-मा यज़्ज़क्करु | और सीख नहीं लेते (नसीहत) |
| इल्ला उलूल अल्बाब | सिवाय बुद्धि वालों के |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "वह (अल्लाह) जिसे चाहता है, हिक्मत (तत्वदर्शिता) प्रदान करता है। और जिसे हिक्मत दी गई, उसे बहुत अधिक भलाई प्रदान की गई। और सिर्फ बुद्धि वाले ही नसीहत ग्रहण करते हैं।"
सरल व्याख्या:
यह आयत ज्ञान और समझ के सर्वोच्च रूप "हिक्मत" के महत्व को स्थापित करती है, जो पिछली आयतों में दिए गए दान के संदेश को समझने की कुंजी है।
1. "हिक्मत" क्या है?
हिक्मत सिर्फ ज्ञान (इल्म) नहीं है। यह एक गहन और बहुआयामी अवधारणा है:
सही ज्ञान: चीजों के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान।
समझ और तत्वदर्शिता: ज्ञान को सही ढंग से समझने और उस पर अमल करने की क्षमता।
न्याय और संतुलन: हर चीज को उसके सही स्थान पर रखने की कला।
उद्देश्यपूर्ण ज्ञान: जो ज्ञान इंसान को अल्लाह के करीब ले जाए।
कुरआन की गहरी समझ: कुरआन की आयतों के अर्थ, उद्देश्य और उनकी हकीकत को समझना।
2. "हिक्मत" का स्रोत:
"यु'तिल हिक्मता मन यशाउ" - हिक्मत अल्लाह की तरफ से एक देन (अता) है। यह सिर्फ दुनियावी पढ़ाई से नहीं, बल्कि अल्लाह की विशेष दया से मिलती है।
3. "हिक्मत" का मूल्य:
"फकद उतिया खैरन कसीरा" - जिसे हिक्मत मिल गई, उसे "बहुत अधिक भलाई" मिल गई। यह भलाई दुनिया और आखिरत दोनों में है। यह धन, संपत्ति या दौलत से कहीं बढ़कर है।
4. "हिक्मत" के प्राप्तकर्ता:
"वमा यज़्ज़क्करु इल्ला उलूल अल्बाब" - और सिर्फ "उलूल अल्बाब" ही नसीहत ग्रहण करते हैं।
"उलूल अल्बाब" वे लोग हैं जो अपनी बुद्धि (अक्ल) और दिल का सही इस्तेमाल करते हैं। वे सतही बातों से आगे देखते हैं और हर चीज से सबक लेते हैं।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
वास्तविक धन हिक्मत है: असली कामयाबी और धन दौलत जमा करना नहीं, बल्कि हिक्मत हासिल करना है, क्योंकि यही इंसान को सच्ची भलाई तक पहुँचाती है।
अल्लाह से ज्ञान माँगो: चूंकि हिक्मत अल्लाह की देन है, इसलिए उससे दुआ करके हिक्मत माँगनी चाहिए। जैसा कि पैगंबर (स.अ.व.) सिखाते थे: "अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुकल हिक्मता" (हे अल्लाह! मैं तुझसे हिक्मत माँगता हूँ)।
गहन चिंतन का महत्व: सच्चा ज्ञानी वह नहीं जो सिर्फ किताबें पढ़े, बल्कि वह है जो "उलूल अल्बाब" की श्रेणी में आता हो - जो सोचे, विचारे और हर चीज से सीखे।
ज्ञान और अमल का संयोग: हिक्मत सिर्फ सैद्धांतिक ज्ञान नहीं, बल्कि उस ज्ञान को व्यवहार में लाने की क्षमता है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
पैगंबरों को हिक्मत: सभी पैगंबरों को अल्लाह ने हिक्मत से नवाजा था, ताकि वे लोगों को सही मार्गदर्शन दे सकें।
सहाबा की समझ: इस आयत ने सहाबा को सिखाया कि दान के मामले में भी हिक्मत जरूरी है - कब देना है, कितना देना है, किसे देना है, और किस नीयत से देना है।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
ज्ञान के अर्थहीन युग में: आज इंसान के पास डिग्रियों और सूचनाओं का भंडार है, लेकिन हिक्मत (जीवन जीने की समझ) की कमी है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि हमें "उलूल अल्बाब" बनने की जरूरत है।
धार्मिक कट्टरपन के खिलाफ: हिक्मत का अर्थ है संतुलन और तत्वदर्शिता। यह आयत कट्टरपन और अतिवाद के खिलाफ एक दवा है, क्योंकि यह सिखाती है कि धर्म को समझदारी और गहरी समझ के साथ अपनाओ।
व्यक्तिगत विकास: आज की Self-Help और Personal Development की किताबें जो सिखाती हैं, उसका सार "हिक्मत" ही है। यह आयत बताती है कि इसका असली स्रोत अल्लाह है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) युग में: भविष्य में AI के पास डेटा और सूचनाओं का विशाल भंडार होगा, लेकिन "हिक्मत" फिर भी अल्लाह का विशेष दान ही रहेगी, जो सिर्फ इंसानों को प्राप्त होगी।
शाश्वत मूल्य: जब तक दुनिया है, "हिक्मत" सबसे बहुमूल्य संपत्ति बनी रहेगी। यह आयत हर युग के इंसान को इसकी तलाश के लिए प्रेरित करती रहेगी।
शिक्षा प्रणाली का आदर्श: भविष्य की शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य सिर्फ डिग्रियाँ देना नहीं, बल्कि "उलूल अल्बाब" (विवेकशील बुद्धिजीवी) तैयार करना होना चाहिए, जो गहराई से सोच-विचार कर सकें।
निष्कर्ष: आयत 2:269 जीवन के सबसे मूल्यवान उपहार "हिक्मत" को परिभाषित करती है। यह बताती है कि सच्ची सफलता डिग्रियों, पदों या धन में नहीं, बल्कि उस दिव्य ज्ञान और समझ में है जो इंसान को चीजों के वास्तविक स्वरूप का बोध कराती है। यह आयत हर मुसलमान के लिए एक दुआ और एक लक्ष्य है - "हे अल्लाह, हमें हिक्मत प्रदान कर और हमें उलूल अल्बाब (विवेकशील लोगों) में शामिल कर।"