﴿لَّيْسَ عَلَيْكَ هُدَاهُمْ وَلَٰكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَن يَشَاءُ ۗ وَمَا تُنفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَلِأَنفُسِكُمْ ۚ وَمَا تُنفِقُونَ إِلَّا ابْتِغَاءَ وَجْهِ اللَّهِ ۚ وَمَا تُنفِقُوا مِنْ خَيْرٍ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لَا تُظْلَمُونَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 272
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| लैसा अलैका हुदाहum | तुमपर नहीं है उनका मार्गदर्शन |
| व-लाकिन्नल्लाह | लेकिन अल्लाह |
| यह्दी मन यशाउ | मार्गदर्शन करता है जिसे चाहता है |
| व-मा तुनफिकू | और जो (कुछ) तुम खर्च करते हो |
| मिन खैरिन | भलाई में से |
| फ-ली-अनफुसिकum | तो वह तुम्हारे अपने लिए है |
| व-मा तुनफिकून | और तुम खर्च नहीं करते |
| इल्ला इब्तिग़ाआ | सिवाय तलाश में |
| वज्हिल्लाह | अल्लाह के चेहरे (खुशी) की |
| व-मा तुनफिकू | और जो (कुछ) तुम खर्च करते हो |
| मिन खैरिन | भलाई में से |
| युवफ़्फ़ | पूरा दिया जाएगा |
| इलैकum | तुम्हें |
| व-अनतum | और तुम |
| ला तुज़़लमून | ज़ुल्म नहीं किए जाओगे |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "(हे पैगंबर!) उनका मार्गदर्शन आपके ज़िम्मे नहीं है, बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है, मार्गदर्शन करता है। और तुम जो कुछ भलाई (दान) में से खर्च करते हो, वह तुम्हारे अपने ही लिए है। और तुम सिर्फ अल्लाह की खुशी की तलाश में ही खर्च करते हो। और तुम जो कुछ भलाई में से खर्च करते हो, वह तुम्हें पूरा दिया जाएगा और तुमपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।"
सरल व्याख्या:
यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को और सभी मुसलमानों को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है।
1. पैगंबर (स.अ.व.) के लिए राहत का संदेश:
"लैसा अलैका हुदाहुम" - "उनका मार्गदर्शन आपके ज़िम्मे नहीं है।"
पैगंबर (स.अ.व.) कुरैश के लोगों के ईमान न लाने से दुखी रहते थे। अल्लाह ने उन्हें यह संदेश देकर राहत दी कि आपका काम सिर्फ संदेश पहुँचाना है, मार्गदर्शन देना अल्लाह का काम है।
"वलाकिन्नल्लाह यह्दी मन यशाउ" - "बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है, मार्गदर्शन करता है।"
2. दान का असली उद्देश्य और लाभ:
"वमा तुनफिकू मिन खैरिन फली-अनफुसिकुम" - "तुम जो कुछ भलाई में से खर्च करते हो, वह तुम्हारे अपने ही लिए है।"
दान देने का फायदा दान लेने वाले को नहीं, बल्कि देने वाले को होता है। यह उसके लिए आखिरत में जमा पूँजी है।
"वमा तुनफिकूना इल्ला इब्तिग़ाआ वज्हिल्लाह" - "और तुम सिर्फ अल्लाह की खुशी की तलाश में ही खर्च करते हो।"
दान का एकमात्र उद्देश्य अल्लाह की रज़ा (खुशी) होनी चाहिए, न कि लोगों की तारीफ या किसी और चीज की प्राप्ति।
3. अल्लाह का वादा:
"वमा तुनफिकू मिन खैरिन युवफ़्फ़ इलैकुम" - "और तुम जो कुछ भलाई में से खर्च करते हो, वह तुम्हें पूरा दिया जाएगा।"
अल्लाह वादा करता है कि तुम्हारा दान बर्बाद नहीं जाएगा। उसे कई गुना करके आखिरत में तुम्हें लौटा दिया जाएगा।
"वअंतुम ला तुज़़लमून" - "और तुमपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।"
तुम्हारे दान का एक दाना भी कम नहीं किया जाएगा। बल्कि, उसे बढ़ा-चढ़ाकर दिया जाएगा।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
दावत की सही समझ: मुसलमानों का काम है इस्लाम का संदेश पहुँचाना, लोगों को मजबूर करना नहीं। मार्गदर्शन देना अल्लाह का काम है।
निस्वार्थ भाव से दान: दान का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की खुशी होनी चाहिए, भले ही दान लेने वाला काफिर ही क्यों न हो।
आत्म-केंद्रित लाभ: दान देने वाला असल में अपना ही भला कर रहा है। यह उसके लिए आध्यात्मिक निवेश है।
अल्लाह के वादे पर भरोसा: अल्लाह ने दान का पूरा बदला देने का वादा किया है, इसलिए दान देने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
पैगंबर (स.अ.व.) के लिए सांत्वना: जब कुरैश के लोग ईमान नहीं लाते थे, तो पैगंबर (स.अ.व.) बहुत दुखी होते थे। यह आयत उन्हें ढाढस बंधाती थी।
गैर-मुस्लिमों को दान: इस आयत ने सहाबा को सिखाया कि वे गैर-मुस्लिमों को भी दान दे सकते हैं, क्योंकि दान का उद्देश्य अल्लाह की रज़ा है, न कि सिर्फ मुसलमानों की मदद करना।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
इस्लामिक दावत का तरीका: आज भी मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि उनका काम सिर्फ संदेश पहुँचाना है। जबरदस्ती या दबाव डालना गलत है।
मानवतावादी दान: यह आयत मुसलमानों को सिखाती है कि दान सभी इंसानों के लिए है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। यह इस्लाम की सार्वभौमिकता को दर्शाता है।
आर्थिक निवेश की मानसिकता: आज के लोग हर चीज को निवेश की तरह देखते हैं। यह आयत बताती है कि अल्लाह की राह में दान सबसे बेहतरीन निवेश है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन सिद्धांत: जब तक दुनिया में दावत का काम चलेगा, यह आयत दावत करने वालों के लिए मार्गदर्शन का स्रोत बनी रहेगी।
वैश्विक मानवता: भविष्य के वैश्विक समाज में, यह आयत मुसलमानों को सिखाएगी कि इंसानियत की सेवा धर्म, जाति या राष्ट्र से ऊपर है।
आध्यात्मिक अर्थशास्त्र: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को यह समझाती रहेगी कि सच्ची कमाई वह है जो अल्लाह की राह में खर्च की जाए।
निष्कर्ष: आयत 2:272 इस्लाम के दृष्टिकोण को बहुत स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है। यह एक तरफ तो पैगंबर (स.अ.व.) के लिए सांत्वना और मुसलमानों के लिए दावत का सही तरीका बताती है, तो दूसरी तरफ दान के उद्देश्य और उसके लाभ को रेखांकित करती है। यह आयत हमें सिखाती है कि "अल्लाह की राह में किया गया हर काम, चाहे वह दान हो या दावत, सिर्फ और सिर्फ उसकी खुशी के लिए होना चाहिए।" इससे हमारा ईमान मजबूत होता है और हमारे अमल शुद्ध होते हैं।