﴿لِلْفُقَرَاءِ الَّذِينَ أُحْصِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الْأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاءَ مِنَ التَّعَفُّفِ تَرَاهُمْ يَعْرِفُهُم بِسِيمَاهُمْ لَا يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا ۗ وَمَا تُنفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 273
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| लिल-फुक़रा | गरीबों के लिए |
| अल्लज़ीना | जो |
| उह्सिरू | रोक दिए गए हैं |
| फी सबीलिल्लाह | अल्लाह की राह में |
| ला यसततीऊना | वे सक्षम नहीं हैं |
| ज़र्बन | चलने-फिरने / यात्रा करने में |
| फिल अर्ज़ | धरती में |
| यह्सबुहुमुल जाहिल | समझता है उन्हें अनजान (व्यक्ति) |
| अग़niया | अमीर |
| मिनत तअफ़्फुफ | संयम/इज्ज़त के कारण |
| तराहum | तुम देखोगे उन्हें |
| या'रिफुहum | पहचान लोगे उन्हें |
| बि-सीमाहum | उनके चिह्नों से |
| ला यसअलूनन्नास | वे नहीं माँगते लोगों से |
| इल्हाफा | ज़ोर-शोर से / हड़पने की तरह |
| व-मा तुनफिकू | और जो (कुछ) तुम खर्च करते हो |
| मिन खैरिन | भलाई में से |
| फ-इन्नल्लाह | तो निश्चय ही अल्लाह |
| बिही | उससे |
| अलीमुन | जानने वाला है |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "(यह दान) उन गरीबों के लिए है जो अल्लाह की राह में (धर्मयुद्ध में लगे होने के कारण) रोक दिए गए हैं, वे धरती में (रोज़ी के लिए) चल-फिर नहीं सकते। अनजान व्यक्ति उन्हें उनके संयम के कारण अमीर समझता है। तुम उन्हें उनके चेहरे के चिह्नों से पहचान लोगे, वे लोगों से ज़ोर-शोर से नहीं माँगते। और तुम जो कुछ भलाई (दान) में से खर्च करते हो, निश्चय ही अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है।"
सरल व्याख्या:
यह आयत एक विशेष वर्ग के गरीबों का वर्णन करती है जो दान के सबसे ज्यादा हकदार हैं। ये वे लोग हैं जो अल्लाह की राह में इतने व्यस्त हैं कि दुनिया कमाने का अवसर नहीं रखते।
इन गरीबों की विशेषताएँ:
"उह्सिरू फी सबीलिल्लाह": "अल्लाह की राह में रोक दिए गए हैं।"
ये वे मुजाहिदीन या इल्म के तलबगार (विद्यार्थी) हैं जो पूरी तरह से अल्लाह के दीन की सेवा में लगे हुए हैं और रोज़ी कमाने के लिए दौड़-धूप नहीं कर सकते।
"ला यसततीऊना जर्बन फिल अर्ज़": "वे धरती में चल-फिर नहीं सकते।"
उनके पास व्यापार या नौकरी करने का समय या अवसर नहीं है।
"यह्सबुहुमुल जाहिलु अग़निया मिनत तअफ़्फुफ": "अनजान व्यक्ति उन्हें उनके संयम के कारण अमीर समझता है।"
ये लोग इतने संयमी और स्वाभिमानी होते हैं कि अपनी गरीबी और जरूरत को छिपाए रखते हैं। उनके साफ-सुथरे कपड़े और विनम्र व्यवहार देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे गरीब हैं।
"ता'रिफुहुम बि-सीमाहुम": "तुम उन्हें उनके चिह्नों से पहचान लोगे।"
हालाँकि वे गरीबी छिपाते हैं, लेकिन उनके चेहरे की पीलापन, कमजोरी और तकलीफ के निशान उनकी हकीकत बयान कर देते हैं।
"ला यसअलूनन्नास इल्हाफा": "वे लोगों से ज़ोर-शोर से नहीं माँगते।"
ये लोग कभी भीख नहीं माँगते। न ही वे लोगों को तंग करते हैं। वे इतने स्वाभिमानी होते हैं कि अपनी जरूरत का जिक्र तक नहीं करते।
आयत का अंत इस याद दिलाने के साथ होता है कि अल्लाह तुम्हारे हर दान को जानता है और वह ऐसे ही लोगों को दान देने का पूरा बदला देगा।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
दान के असली हकदारों की पहचान: इस्लाम हमें सिखाता है कि दान सबसे पहले उन लोगों को देना चाहिए जो अल्लाह के दीन की सेवा में लगे हुए हैं।
संयम और स्वाभिमान की कद्र: ऐसे लोग जो गरीब होते हुए भी अपना संयम और स्वाभिमान नहीं छोड़ते, वे अल्लाह के नजदीक बहुत सम्मानित हैं।
सूक्ष्म अवलोकन का महत्व: मुसलमान को चाहिए कि वह समाज में ऐसे लोगों को तलाशे जो वास्तव में जरूरतमंद हैं लेकिन शर्म के मारे माँग नहीं सकते।
दान की जिम्मेदारी: दान देना सिर्फ एक रिवाज नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी को समझदारी से निभाना चाहिए।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
सहाबा-ए-सुफ्फा के लिए: मदीना में "अहले सुफ्फा" नाम के गरीब सहाबा थे जो पूरी तरह से इल्म और जिहाद में लगे हुए थे। यह आयत विशेष रूप से उनके लिए उतरी और मुसलमानों को उनकी मदद के लिए प्रेरित किया।
धर्मयुद्ध के लिए वित्तीय समर्थन: उस समय धर्मयुद्ध चल रहा था। यह आयत लोगों को उन सहाबाओं की मदद के लिए प्रोत्साहित करती थी जो मोर्चे पर थे।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
इल्म के तलबगार (विद्यार्थी): आज मदरसों और इस्लामिक संस्थानों में पढ़ने वाले गरीब विद्यार्थी इसी श्रेणी में आते हैं। उनकी मदद करना सबसे ज्यादा सवाब का काम है।
इस्लामी कार्यकर्ता: वे लोग जो पूरे समय दावत-ए-इस्लाम और इस्लामी काम में लगे हैं, वे अक्सर आर्थिक तंगी में रहते हैं। उनकी मदद करना इस आयत का पालन है।
स्वाभिमानी गरीबों की पहचान: समाज में ऐसे कई गरीब हैं जो माँगते नहीं हैं। इस आयत की रोशनी में हमें ऐसे लोगों को तलाशकर उनकी मदद करनी चाहिए।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक इस्लाम रहेगा, दीन की सेवा में लगे लोगों की मदद की जरूरत रहेगी। यह आयत हमेशा मुसलमानों को इसके लिए प्रेरित करती रहेगी।
शिक्षा और शोध को प्रोत्साहन: भविष्य में इस्लामिक शिक्षा और शोध को बढ़ावा देने के लिए, ऐसे विद्यार्थियों और विद्वानों को वित्तीय सहायता देना जारी रहेगा।
सामाजिक संवेदनशीलता: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को सिखाती रहेगी कि समाज में छिपे हुए जरूरतमंदों की पहचान करें और उनकी इज्जत बचाते हुए उनकी मदद करें।
निष्कर्ष: आयत 2:273 हमें दान की "प्राथमिकता" (Priority) सिखाती है। यह बताती है कि दान का पहला हकदार वह व्यक्ति है जो अल्लाह के दीन की सेवा में इतना व्यस्त है कि अपनी दुनियावी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता। यह आयत हमें समाज के "अनदेखे गरीबों" की ओर ध्यान आकर्षित कराती है जो अपनी गरिमा और स्वाभिमान के कारण मदद के लिए हाथ नहीं फैलाते। इस प्रकार, यह आयत मुसलमानों में सूक्ष्म दृष्टि, संवेदनशीलता और सही जगह दान करने की समझ विकसित करती है।