﴿الَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمْوَالَهُم بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ سِرًّا وَعَلَانِيَةً فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 274
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| अल्लज़ीना | वे लोग जो |
| युन्फिकूना | खर्च करते हैं |
| अम्वालहum | अपने माल को |
| बिल्लैली | रात को |
| वन्नहार | और दिन को |
| सिर्रन | छिपकर |
| व-अलानियतन | और खुलकर |
| फ-लहum | तो उनके लिए है |
| अज्रुहum | उनका प्रतिफल |
| इन्द रब्बिहim | उनके पालनहार के पास |
| व-ला खौफुन | और न कोई डर होगा |
| अलैहim | उन पर |
| व-ला हum | और न वे |
| यह्ज़नून | दुखी होंगे |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "जो लोग अपना धन रात-दिन, छिपकर और खुलकर (अल्लाह की राह में) खर्च करते हैं, उनके लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिफल है, और न उन पर कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे।"
सरल व्याख्या:
यह आयत उन आदर्श मोमिनों का चित्रण करती है जो दान-खैरात को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बना लेते हैं। यह पिछली आयतों में दिए गए दान के सिद्धांतों का सार प्रस्तुत करती है।
सच्चे दानी की विशेषताएँ:
"बिल्लैली वन्नहार" (रात और दिन):
ये लोग हर समय दान करते रहते हैं। उनका दान मौसमी या अवसर विशेष तक सीमित नहीं है।
यह दर्शाता है कि दान उनकी आदत और स्वभाव बन गया है।
"सिर्रन व-अलानियतन" (छिपकर और खुलकर):
छिपकर (सिर्रन): वे गुप्त दान करते हैं ताकि दिखावे और रिआ से बचे रहें और गरीब की इज्जत बनी रहे।
खुलकर (अलानियतन): वे सार्वजनिक दान भी करते हैं ताकि दूसरे लोग प्रेरित हों और सामूहिक भलाई के काम आगे बढ़ें।
यह दर्शाता है कि वे हर तरह के दान में संतुलन बनाए रखते हैं।
सच्चे दानी का प्रतिफल (बदला):
"फ-लहुम अज्रुहुम इन्द रब्बिहिम" (तो उनके लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिफल है):
उनका पूरा और सर्वोत्तम बदला अल्लाह के पास सुरक्षित है।
"व-ला खौफुन अलैहिम" (और न उन पर कोई भय होगा):
आखिरत में हिसाब-किताब, जहन्नुम आदि का कोई डर उन्हें नहीं होगा।
"व-ला हुम यह्ज़नून" (और न वे दुखी होंगे):
उन्हें न तो अतीत के गुनाहों का पछतावा होगा और न भविष्य (जन्नत की नेमतों के छूट जाने) का दुख।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
दान एक निरंतर इबादत है: दान सिर्फ रमजान या ईद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है जो हर समय चलती रहनी चाहिए।
संतुलित दृष्टिकोण: इस्लाम दान के हर तरीके को मान्यता देता है - गुप्त भी और सार्वजनिक भी, बशर्ते नीयत शुद्ध हो।
पूर्ण आश्वासन: अल्लाह ने सच्चे दानियों को पूर्ण सुरक्षा और शांति का वादा किया है, जो ईमान वाले के लिए सबसे बड़ी सफलता है।
दान को जीवनशैली बनाएँ: दान को केवल एक कर्मकांड न समझें, बल्कि इसे अपनी जीवनशैली और चरित्र का हिस्सा बना लें।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
सहाबा का आदर्श: पैगंबर (स.अ.व.) के सहाबा इस आयत का जीता-जागता उदाहरण थे। वे हर समय और हर तरह से दान करते थे।
दान की संस्कृति: इस आयत ने इस्लामी समाज में दान की एक जीवंत संस्कृति को जन्म दिया।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
निरंतर दान की आदत: आज के भौतिकवादी युग में, यह आयत हमें याद दिलाती है कि दान की आदत को बनाए रखना चाहिए।
गुप्त और सार्वजनिक दान का संतुलन: सोशल मीडिया के युग में, यह आयत हमें सिखाती है कि कब दान छिपाकर करना है और कब खुलकर (ताकि दूसरे प्रेरित हों)।
मानसिक शांति: आज के तनाव भरे जीवन में, "ना डर, ना दुख" का वादा सबसे बड़ी मानसिक शांति प्रदान करता है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत आदर्श: जब तक दुनिया रहेगी, यह आयत मोमिनों के लिए एक आदर्श जीवनशैली प्रस्तुत करती रहेगी।
सामाजिक सुरक्षा का आधार: यह आयत हमेशा इस्लामी समाज में एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा तंत्र (ज़कात और सदक़ा) की नींव बनी रहेगी।
आध्यात्मिक सफलता का मार्ग: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत यह स्पष्ट करती रहेगी कि सच्ची सफलता और शांति अल्लाह की राह में दान देने में है।
निष्कर्ष: आयत 2:274 दान-खैरात के इस्लामी दर्शन का सार प्रस्तुत करती है। यह हमें एक "संपूर्ण दानी" का चित्रण देती है जो हर समय और हर तरह से दान करता है। यह आयत हर मुसलमान के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करती है कि वह अपने दान को केवल एक औपचारिकता न बनाए, बल्कि उसे अपनी "जीवनशैली" बना ले। इस तरह का दान ही इंसान को दुनिया और आखिरत, दोनों जगह सच्ची कामयाबी और शांति की ओर ले जाता है।