क़ुरआन की आयत 2:279 (सूरह अल-बक़ारह) - पूर्ण विवरण
1. अरबी आयत (Arabic Verse):
فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِّنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ ۖ وَإِن تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُءُوسُ أَمْوَالِكُمْ لَا تَظْلِمُونَ وَلَا تُظْلَمُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا: "अतः यदि तुमने (यह) न किया"
فَأْذَنُوا: "तो (अपने लिए) घोषणा कर लो" (यहाँ चेतावनी के अर्थ में है)
بِحَرْبٍ: "एक युद्ध की"
مِّنَ اللَّهِ: "अल्लाह की तरफ से"
وَرَسُولِهِ: "और उसके रसूल की तरफ से"
وَإِن تُبْتُمْ: "और यदि तुमने तौबा कर ली (पश्चाताप कर लिया)"
فَلَكُمْ: "तो तुम्हारे लिए है"
رُءُوسُ أَمْوَالِكُمْ: "तुम्हारे मूल धन (मूल पूँजी)"
لَا تَظْلِمُونَ: "तुम ज़ुल्म न करोगे"
وَلَا تُظْلَمُونَ: "और न ही तुमपर ज़ुल्म किया जाएगा"
3. आयत का हिंदी अनुवाद और पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi):
यह आयत सूद (ब्याज/ब्याज) के गंभीर पाप पर चर्चा करने वाली आयतों की श्रृंखला की अंतिम और सबसे सख्त आयत है। पिछली आयतों में सूद लेने और देने वालों के लिए कठोर चेतावनी दी गई थी। इस आयत में अल्लाह अपना अंतिम फैसला सुनाते हैं।
व्याख्या:
पहले भाग "फ़ा इन लम तफ़'अलू फ़अज़नू बि हर्बिम मिनल्लाहि व रसूलिहि" का अर्थ है: "अगर तुमने (सूद छोड़ने का) ऐसा नहीं किया (यानी सूद लेना बंद नहीं किया), तो अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से होने वाले युद्ध की घोषणा सुन लो।"
यहाँ "युद्ध की घोषणा" एक बहुत ही गंभीर चेतावनी है। इसका मतलब यह नहीं है कि अल्लाह सीधे तलवार लेकर लड़ेंगे, बल्कि इसका अर्थ है:
ऐसे व्यक्ति का अल्लाह की दया और रहमत से कोई संबंध नहीं रह जाता।
वह अल्लाह की नाराज़गी और आखिरत (प्रलय) में सख्त अज़ाब का भागीदार हो जाता है।
दुनिया में भी, एक सच्चे मुसलमान का फर्ज बनता है कि वह सूदखोरी के इस system का विरोध करे और उसे खत्म करने की कोशिश करे। यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है।
दूसरा भाग "व इन तुबतुम फ़लकुम रुसूसु अमवालिकुम, ला तज़लिमूना व ला तुज़लमून" कहकर रास्ता खोलता है: "और अगर तुमने तौबा कर ली (सूद लेना छोड़ दिया), तो तुम्हें अपना केवल मूल धन (Asal Maal/Principal) लेने का हक है। न तो तुम ज़ुल्म करोगे और न ही तुमपर ज़ुल्म किया जाएगा।"
यह इस्लामी अर्थव्यवस्था का एक मौलिक सिद्धांत स्थापित करता है। लेन-देन न्याय पर आधारित होना चाहिए। सूद लेना एक तरफा और अनुचित लाभ है, जो उधार लेने वाले पर ज़ुल्म है। इसे छोड़कर ही न्याय स्थापित हो सकता है। अल्लाह साफ कहता है कि तुम्हारा पैसा तो सुरक्षित है, लेकिन उससे अतिरिक्त लाभ कमाना हराम (वर्जित) है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
सूद की गंभीरता: सूद (ब्याज) केवल एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि अल्लाह और उसके रसूल के खिलाफ एक प्रकार की "जंग" है। यह इतना बड़ा पाप है कि इसके लिए दुनिया और आखिरत दोनों में सजा है।
तौबा का दरवाजा: अल्लाह बहुत मेहरबान है। भले ही कोई व्यक्ति जीवनभर सूद लेता रहा हो, अगर उसने सच्चे दिल से तौबा कर ली और भविष्य के लिए इसे छोड़ दिया, तो अल्लाह की रहमत का दरवाजा खुला है।
न्यायपूर्ण अर्थव्यवस्था: इस्लाम एक ऐसी economic system चाहता है जहाँ शोषण न हो। पूँजी पर एक निश्चित और गारंटीड रिटर्न (सूद) लेना, चाहे उधार लेने वाले को लाभ हो या नुकसान, अन्याय है। इस्लाम में लाभ और हानि दोनों को साझा करने पर जोर दिया गया है।
समाज की जिम्मेदारी: सूदखोरी सिर्फ व्यक्तिगत पाप नहीं, बल्कि एक सामाजिक बुराई है। इसलिए, पूरे समाज का फर्ज बनता है कि वह इससे लड़े और इसे खत्म करने के लिए काम करे।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत में (In the Past): इस आयत के उतरने के बाद, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और खुलफा-ए-राशेदीन के जमाने में सूदखोरी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस्लामी राज्य में इस नियम का सख्ती से पालन किया जाता था, जिससे एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज का निर्माण हुआ।
वर्तमान में (In the Present): आज पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ब्याज (Interest) पर टिकी हुई है। बैंक, लोन, क्रेडिट कार्ड, निवेश - हर जगह ब्याज का सिस्टम मौजूद है। एक मुसलमान के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
प्रासंगिकता: इस आयत की वर्तमान प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है। यह मुसलमानों को याद दिलाती है कि वे ब्याज से दूर रहने की पूरी कोशिश करें, भले ही यह मुश्किल क्यों न हो।
विकल्प: इसी कारण इस्लामिक बैंकिंग और वित्त (Islamic Banking and Finance) का विकास हुआ है, जो Profit-and-Loss Sharing (PLS) के सिद्धांतों जैसे मुदारबा और मुशारका पर काम करती है। यह आयत ही उन सभी प्रयासों की बुनियाद है।
भविष्य में (In the Future): जैसे-जैसे दुनिया आर्थिक संकटों (मंदी, महंगाई, आय असमानता) का सामना कर रही है, दुनिया के कई अर्थशास्त्री भी ब्याज-आधारित अर्थव्यवस्था के दोषों को पहचान रहे हैं।
भविष्य की दृष्टि: यह आयत भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक है। यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था का blue-print प्रस्तुत करती है जो टिकाऊ (Sustainable) और न्यायसंगत (Equitable) है। भविष्य में, जब लोग शोषण मुक्त आर्थिक मॉडल की तलाश करेंगे, तो इस आयत में दिए गए सिद्धांत "तुम्हारा मूल धन तुम्हारा है, न तुम जुल्म करो और न जुल्म सहो" ही मार्गदर्शन करेंगे।
निष्कर्ष: कुरआन की यह आयत केवल एक धार्मिक आदेश नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए एक सार्वभौमिक आर्थिक और सामाजिक न्याय का घोषणा पत्र है। यह हर जमाने में प्रासंगिक रहेगी, चाहे अर्थव्यवस्था का स्वरूप कुछ भी हो।