﴿يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ﴾
सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 278
1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)
| अरबी शब्द | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| या अय्युहल्लज़ीना आमनू | हे ईमान वालों! |
| इत्तकुल्लाह | अल्लाह से डरो |
| व-ज़रू | और छोड़ दो |
| मा बक़िया | जो बाकी रह गया है |
| मिनर रिबा | सूद (ब्याज) में से |
| इन कुंतुम | यदि तुम हो |
| मु'मिनीन | ईमान वाले |
2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)
अनुवाद: "हे ईमान वालों! अल्लाह से डरो और जो कुछ सूद (ब्याज) बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो।"
सरल व्याख्या:
यह आयत सूद (ब्याज/रिबा) के प्रतिबंध पर अंतिम और सबसे स्पष्ट आदेश देती है। यह एक Practical Order (व्यावहारिक आदेश) है जो मुसलमानों से तत्काल कार्रवाई की माँग करता है।
आयत के तीन मुख्य बिंदु:
"हे ईमान वालों! अल्लाह से डरो" (इत्तकुल्लाह):
यह हर मुसलमान के लिए बुनियादी आदेश है। तक्वा (अल्लाह का भय) ही वह शक्ति है जो इंसान को गुनाहों से रोकती है।
सूद जैसे गंभीर गुनाह से बचने के लिए तक्वा जरूरी है।
"और जो कुछ सूद बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो" (व-ज़रू मा बक़िया मिनर रिबा):
यह एक सीधा और स्पष्ट आदेश है। इस आयत के उतरने के बाद सूद की कोई भी मात्रा, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, लेना या देना हराम है।
"मा बक़िया" (जो बाकी रह गया है) से तात्पर्य है कि अगर किसी पर सूद का कर्ज चल रहा है, तो उसे तुरंत रद्द कर दो। भविष्य में कोई भी सूद का लेन-देन बिल्कुल न करो।
"यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो" (इन कुंतुम मु'मिनीन):
यह एक Challenge (चुनौती) और Test (परीक्षा) है। अल्लाह कह रहा है कि अगर तुम्हारा ईमान सच्चा है, तो तुम इस आदेश का पालन करोगे।
जो व्यक्ति इस आदेश को मानने से इनकार करेगा, उसके ईमान पर सवाल उठेंगे।
3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)
ईमान और आज्ञापालन: सच्चा ईमान अल्लाह के आदेशों को बिना किसी सवाल के मानने में है। सूद से दूरी ईमान की एक कसौटी है।
तत्काल पालन की आवश्यकता: पापों से तौबा और अल्लाह के आदेशों का पालन करने में देरी नहीं करनी चाहिए। जैसे ही हिदायत मिले, तुरंत अमल करना चाहिए।
पूर्ण समर्पण: इस्लाम आधा-अधूरा मानने का धर्म नहीं है। सूद को पूरी तरह और हमेशा के लिए छोड़ना होगा।
तक्वा (अल्लाह का भय) ही सुरक्षा कवच है: अल्लाह का डर ही इंसान को सूद जैसे गंभीर पाप से बचा सकता है।
4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता:
स्पष्ट प्रतिबंध: जब यह आयत उतरी, तो इसने सूद के हर रूप पर पूर्ण और अंतिम रोक लगा दी। इससे पहले की सभी सहनशीलताएँ समाप्त हो गईं।
तत्काल पालन: सहाबा ने इस आदेश का तुरंत पालन किया और उन्होंने सूद के सभी लेन-देन तुरंत बंद कर दिए।
वर्तमान में प्रासंगिकता:
आधुनिक बैंकिंग व्यवस्था के लिए चुनौती: आज की पूरी की पूरी वित्तीय व्यवस्था ब्याज पर आधारित है। यह आयत हर मुसलमान से माँग करती है कि वह ब्याज वाले सभी लेन-देन (बैंक खाते, लोन, क्रेडिट कार्ड आदि) से तुरंत ताल्लुक तोड़े।
ईमान की कसौटी: आज सूद से दूरी एक सच्चे मुसलमान की पहचान बन गई है। जो व्यक्ति जानबूझकर सूद के लेन-देन में शामिल रहता है, उसके ईमान पर सवाल उठता है।
इस्लामिक बैंकिंग को बढ़ावा: यह आयत मुसलमानों को ब्याज-मुक्त वित्तीय विकल्पों (इस्लामिक बैंकिंग और फाइनेंस) की तलाश और उन्हें मजबूत करने के लिए प्रेरित करती है।
भविष्य में प्रासंगिकता:
शाश्वत प्रतिबंध: कयामत तक, सूद इस्लाम में पूर्ण रूप से हराम रहेगा। यह आयत हर युग के मुसलमानों के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है।
आर्थिक नैतिकता का आधार: भविष्य की अर्थव्यवस्थाएँ जब नैतिकता की ओर लौटेंगी, तो यह आयत ब्याज-मुक्त आर्थिक मॉडल के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करेगी।
व्यक्तिगत जवाबदेही: यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को याद दिलाती रहेगी कि उन्हें अपने वित्तीय लेन-देन की अल्लाह के सामने जवाबदेही देनी है।
निष्कर्ष: आयत 2:278 सूद के प्रतिबंध पर अल्लाह का "अंतिम और सर्वोच्च आदेश" (Final and Supreme Command) है। यह कोई सलाह या सिफारिश नहीं, बल्कि एक "अल्टीमेटम" (Ultimatum) है। यह आयत हर मुसलमान के सामने एक स्पष्ट विकल्प रखती है: "या तो अल्लाह के इस आदेश को मानो और सूद को पूरी तरह छोड़ दो और सच्चे मोमिन साबित हो, या फिर इसकी अवहेलना करो और अपने ईमान को संकट में डालो।" यह आयत हमें सिखाती है कि ईमान की सच्चाई आज्ञापालन में है, और आज्ञापालन में कोई देरी या ढील स्वीकार्य नहीं है।