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क़ुरआन की आयत 2:277 की पूरी व्याख्या

 

﴿إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ﴾

सूरतुल बक़ारह (दूसरा अध्याय), आयत नंबर 277


1. अरबी आयत का शब्दार्थ (Word-by-Word Meaning)

अरबी शब्दहिंदी अर्थ
इन्नल्लज़ीनानिश्चय ही जो लोग
आमनूईमान लाए
व-अमिलुस सालिहातऔर नेक अमल किए
व-अक़ामुस सलातऔर नमाज़ कायम की
व-आतवुज़ ज़कातऔर ज़कात अदा की
ल-हumउनके लिए है
अज्रुहumउनका प्रतिफल
इन्द रब्बिहimउनके पालनहार के पास
व-ला खौफुनऔर न कोई डर होगा
अलैहimउन पर
व-ला हumऔर न वे
यह्ज़नूनदुखी होंगे

2. आयत का पूर्ण अनुवाद और सरल व्याख्या (Full Translation & Simple Explanation)

अनुवाद: "निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक अमल किए, नमाज़ कायम की और ज़कात अदा की, उनके लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिफल है, और न उन पर कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे।"

सरल व्याख्या:
यह आयत सूद (ब्याज) के खंडन के लंबे प्रसंग का समापन करते हुए उन लोगों के लिए सफलता का सूत्र पेश करती है जो सही मार्ग पर चलते हैं। यह एक सकारात्मक और आश्वस्तिदायक संदेश देती है।

सफल मोमिन की पहचान (चार स्तंभ):

  1. "आमनू" (ईमान लाए): अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों, उसके पैगंबरों और आखिरत के दिन पर दृढ़ विश्वास रखना।

  2. "व-अमिलुस सालिहात" (और नेक अमल किए): ईमान के बाद उस पर अमल करना। हर प्रकार के अच्छे कर्म, चाहे वे अल्लाह के हक़ में हों या बंदों के हक़ में।

  3. "व-अक़ामुस सलात" (और नमाज़ कायम की): नमाज़ को उसके सभी नियमों, समय और नियमितता के साथ अदा करना। यह अल्लाह के साथ बंदे के संबंध का प्रतीक है।

  4. "व-आतवुज़ ज़कात" (और ज़कात अदा की): अपने धन में से गरीबों का हक़ अदा करना। यह समाज में आर्थिक न्याय और भाईचारे का प्रतीक है।

सफल मोमिन का प्रतिफल (तीन वादे):

  1. "लहुम अज्रुहुम इन्द रब्बिहिम" (उनके लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिफल है): उनका पूरा और सर्वोत्तम बदला अल्लाह के पास सुरक्षित है, जो आखिरत में मिलेगा।

  2. "वला खौफुन अलैहिम" (और न उन पर कोई भय होगा): कयामत के दिन के भय, हिसाब-किताब का डर और जहन्नुम का खतरा उनसे दूर कर दिया जाएगा।

  3. "वला हुम यह्ज़नून" (और न वे दुखी होंगे): उन्हें न तो अतीत (छूटे हुए अवसरों) का पछतावा होगा और न भविष्य (जन्नत की नेमतों के छूट जाने) का दुख।


3. शिक्षा और संदेश (Lesson and Message)

  1. ईमान और अमल का अटूट रिश्ता: सच्चा ईमान वही है जो अमल (कर्म) में दिखाई दे। केवल जुबानी दावा काफी नहीं है।

  2. इबादत और मुआमलात (लेन-देन) का संतुलन: इस्लाम सिर्फ इबादत (नमाज़) का ही नहीं, बल्कि मुआमलात (ज़कात, सामाजिक न्याय) का भी धर्म है। दोनों को साथ लेकर चलना जरूरी है।

  3. पूर्ण सुरक्षा और शांति का वादा: जो लोग इस मार्ग पर चलेंगे, उन्हें दुनिया और आखिरत, दोनों जगह पूर्ण मानसिक शांति और सुरक्षा का वादा किया गया है।

  4. सकारात्मक जीवन दृष्टि: यह आयत मुसलमानों को एक सकारात्मक और आशावादी जीवन दृष्टि देती है कि अगर वे इन चार बातों पर चलें, तो उनका भविष्य उज्ज्वल और सुरक्षित है।


4. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

अतीत में प्रासंगिकता:

  • सहाबा के लिए मार्गदर्शन: मदीना के नए इस्लामी समाज के लिए यह आयत एक संविधान की तरह थी, जिसने उन्हें बताया कि एक सफल मुसलमान की पहचान क्या है।

  • सूदखोरों के विकल्प: सूद के प्रतिबंध के बाद, यह आयत लोगों को एक बेहतर विकल्प देती थी - ईमान, नेकी, नमाज़ और ज़कात का मार्ग।

वर्तमान में प्रासंगिकता:

  • मुसलमान की पहचान: आज के युग में, जहाँ मुसलमानों पर कई तरह के आरोप लगते हैं, यह आयत एक सच्चे मुसलमान की असली पहचान बताती है।

  • आध्यात्मिक और सामाजिक संतुलन: यह आयत मुसलमानों को याद दिलाती है कि उन्हें नमाज़ (व्यक्तिगत इबादत) और ज़कात (सामाजिक जिम्मेदारी) के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।

  • मानसिक शांति का स्रोत: आज के तनावग्रस्त जीवन में, "ना डर, ना दुख" का वादा सबसे बड़ी मानसिक शांति प्रदान करता है।

भविष्य में प्रासंगिकता:

  • शाश्वत सफलता का सूत्र: जब तक दुनिया रहेगी, यह आयत इंसानों के लिए सफलता का यही सूत्र प्रस्तुत करती रहेगी।

  • व्यक्तिगत और सामाजिक सुधार का आधार: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत एक संपूर्ण जीवन प्रणाली का आधार बनी रहेगी जो व्यक्तिगत आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय दोनों पर जोर देती है।

  • आशा और प्रेरणा का स्रोत: यह आयत हमेशा मोमिनों के लिए आशा और प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी, जो उन्हें बताती है कि उनका अंतिम लक्ष्य क्या है और उसे कैसे प्राप्त करना है।

निष्कर्ष: आयत 2:277 पूरे सूद के प्रसंग का सार प्रस्तुत करती है। यह एक "सकारात्मक घोषणापत्र" (Positive Manifesto) है। एक तरफ यह सूदखोरों के लिए विनाश का संदेश देती है, तो दूसरी तरफ ईमान वालों के लिए शाश्वत सफलता का वादा करती है। यह आयत हर मुसलमान के लिए एक "जीवन-मंत्र" (Life Mantra) है - "ईमान लाओ, नेकी करो, नमाज़ पढ़ो और ज़कात दो; इसी में दुनिया और आखिरत की सफलता है।" यह संदेश स्पष्ट, सरल और सार्वभौमिक है, जो हर युग में प्रासंगिक रहेगा।